नव जागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द सरस्वती
Nav Jagaran Ke Purodha Maharshi Dayanand Sarswati

650.00

  • By :Dr. Bhavanilal Bharatiya
  • Subject :About life of Dayanand Sarswati
  • Category :History
  • Packing :2 Volumes
  • Binding :Hard Cover

Only 1 left in stock

Description

पुस्तक का नाम – नव जागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द सरस्वती जी
लेखक का नाम – ड़ॉ. भवानीलाल भारतीय

भारतीय इतिहास में उन्नीसवीं शताब्दी का काल धार्मिक एवं सामाजिक नवजागरण की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसी युग में जन्म लेकर महर्षि दयानन्द सरस्वती ने धर्म, समाज, संस्कृति तथा राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रों में नवचेतना का संचार किया था। मूलतः धर्म-प्रचारक एवं आध्यात्मिक भावापन्न पुरुष होने पर भी उन्होनें अपनी व्यापक दृष्टि से विश्व मानव के समक्ष प्रस्तुत समस्याओं और प्रश्नों का व्यवहारिक समाधान रखा। देशवासियों में व्याप्त हीन भावना और पराजय के भावों को दूर कर उनके आत्म गौरव तथा स्वाभिमान को जगाया। भारतीय तत्त्व चिन्तक तथा स्वस्थ वैदिक दर्शन के आधार पर उन्होनें नवजागरण के उस आन्दोलन को आरम्भ किया जो कालान्तर में भारत की राष्ट्रीय अस्मिता को मुखर कर सका।

महर्षि दयानन्द सरस्वती यद्यपि आर्यावर्त्त के विगत गौरव तथा आर्य संस्कृति की उत्कर्षता के सर्व श्रेष्ठ व्याख्याता थे तथापि उन्होनें पश्चिम के नवीन ज्ञान – विज्ञान तथा औद्योगिक क्रान्ति से उद्भूत नवीन जीवन मूल्यों की वास्तविकता को स्वीकार किया। इस प्रकार वे भारत की आध्यात्मिक चेतना एवं यूरोप के कला-कौशल एवं विज्ञानामिश्रत भौत्तिक संस्कृति में सामंञ्जस्य लाना चाहते थे। शताब्दियों से धार्मिक रूढिवादिता, साम्प्रदायिकता संकीर्णता तथा सामाजिक उत्पीड़न से त्रस्त, अभिशप्त एवं पीडित जनों को बुद्धिवाद, विवेक तथा वैज्ञानिक सोच के आधार पर स्वकर्तव्यों का स्मरण कराना उनकी विशेषता थी।

प्रस्तुत ग्रन्थ भारतीय नवजागरण के इस अग्र गन्ता महापुरुष के जीवन, व्यक्तित्व एवं विचारों की समीक्षा का एक विनम्र प्रयास है।

यह ग्रन्थ दो भागों में है जिनके विषयों का वर्णन निम्न प्रकार है –
1) प्रथम भाग – इस भाग में महर्षि की शैशावस्था का वर्णन किया है। उसके पश्चात् उनके अध्ययन काल का वर्णन किया गया है। अध्ययन काल के दौरान महर्षि दयानन्द जी ने उत्तराखंड, गंगा और नर्मदा आदि की यात्रा की थी इसका वर्णन इस भाग में किया है। महर्षि का विरजानन्द जी से मिलना तथा मथुरा में वेदांङंगों की शिक्षा लेने का वर्णन किया गया है। काशी शास्त्रार्थ, मुम्बई शहर का वर्णन और आर्यसमाज की स्थापना आदि विषय इस भाग में प्रस्तुत किये हैं।
2) द्वितीय भाग – इसमें महर्षि द्वारा पश्चिमोत्तर प्रदेशों में धर्मप्रचार, वैदिक यंत्रालय की स्थापना, देशी रजवाड़ों में सुधार और अन्त में विषप्रकरण का वर्णन किया है।
उपसंहार में महर्षि दयानन्द जी के विचारों का विश्लेषण प्रस्तुत किया है। स्वामी जी के प्रसिद्ध शास्त्रार्थों का वर्णन किया है। स्वामी दयानन्द जी की दिनचर्या का भी उल्लेख किया है।

आशा है पाठक इस ग्रन्थ से स्वामी जी के जीवन विषय जानकारियों का लाभ लेंगे।

Additional information
Author

Reviews (0)

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “नव जागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द सरस्वती
Nav Jagaran Ke Purodha Maharshi Dayanand Sarswati”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shipping & Delivery