भूमिका
अपने युग में विराट् आन्दोलन की धाराओं को अपने अन्दर आत्मसात् कर हमारे ऋषि-मुनियों, शहीदों समाज सुधारकों व युगप्रवर्तकों ने आत्मकल्याण के साथ राष्ट्रहित को सर्वोपरि मान कर राष्ट्र के उत्थान में नई चेतना व जागृति के लिए अपने आप को आहुत किया। इसीलिए वे किसी एक के न बनकर सार्वदेशिक, सार्वकालिक हो गए। उनके उपदेश व उनके जीवन की प्रासांगिकता आज पहले से भी ज्यादा बढ़ गई है। आज़ादी का गीत गा कर प्राणोत्सर्ग करने वाले वीर, स्वतंत्रता प्रेमियों ने अपने नाम और यश के लिए काम नहीं किया। अगणित अनाम शहीद हैं। उनके प्रति नमित होना हमारा कर्त्तव्य है।
इन शहीदों के गीत पवन गाता है, सूर्य की प्रभाती रश्मियाँ उनका वंदन करती हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में शहीदों की स्मृति में स्थापित कीर्ति स्तम्भ तथा मूर्तियों पर शुभ्र चांदनी अपनी निरभ्र और शीतल छाया से उनका यशोगान करती हैं। देश भक्ति से ओत-प्रोत भावी संततियां उनका निरंतर स्मरण करेंगी। मातृभूमि और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रेरणा शक्ति और संकल्प भाव ग्रहण करेंगी। इतना सब होने के बाद भी हमने उन वीरों, संतों व शहीदों की शहादत को भुला दिया है। आज़ादी के छः दशक बाद भी आज भारत की सारी व्यवस्थाएं वही चल रही हैं जो अंग्रेजों ने चलाई थी।
भारत की शिक्षा व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, प्रशासन व्यवस्था, कृषि व्यवस्था एवं चिकित्सा व्यवस्था आदि-आदि सभी अंग्रेजों के जमाने वाली ही हैं। कैसा हमारे देश का दुर्भाग्य है, लाखों क्रान्तिवीर शहीदों ने जिन अंग्रेजी व्यवस्थाओं के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया, वही व्यवस्थाएँ भारत में आज भी बनी हुई हैं। हम शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि तभी अर्पित कर सकते हैं, जब उनका अधूरा छूटा हुआ काम पूरा करें।
प्रस्तुत पुस्तक इसी प्रयास का एक हिस्सा है। भारत के अमर शहीदों एवं क्रान्तिकारियों के जीवन चरित्रों को इसी संकल्प के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है। श्रद्धेय स्वामी रामदेव जी महाराज ने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना कर 100 प्रतिशत् योगमय भारत का निर्माण कर स्वस्थ, समृद्ध, संस्कारवान् भारत बनाने का अभियान शुरू किया है। इसी से आयेगी देश में नई आज़ादी व नई व्यवस्था और भारत बनेगा महान् और राष्ट्र की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार का होगा समाधान।
श्रद्धेय स्वामी जी महाराज के संकल्पों से संकल्पित होकर पतंजलि योगपीठ ने ‘हमारे आदर्श व्यक्तित्व’ के रूप में ऐतिहासिक प्रेरणाप्रद व्यक्तित्व व जीवन चरित्रों को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया है। स्वदेशी व राष्ट्र के प्रति जिनकी पीड़ा सर्वविदित ऐसे श्री राजीव भाई जी का एवं डॉ० राजेन्द्र विद्यालंकार जी का प्रस्तुत पुस्तक के शीघ्र प्रकाशन में महत्वपूर्ण सहयोग रहा है, उनके इस पुण्य प्रयास के लिए कोटिशः आशीर्वाद।
सम्पादन में सर्वविद सहयोग बहन सुमन जी का रहा, उनको हमारी ढेर सारी शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद। टंकण कार्य को शीघ्र पूर्ण कर मुद्रित करने के लिए भाई ऋषिदेव व इन्द्रजीत शर्मा को बहुत आशीर्वाद। पुस्तक प्रकाशन में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जिनका भी सहयोग प्राप्त हुआ उन सभी का आभार व धन्यवाद ।
ह पुस्तक अपने उद्देश्य में पूर्ण हो जिससे लोगों के जीवन में नया उत्साह भरे व नई प्रेरणा प्राप्त हो। अन्त में इस संकल्प के साथ-
जो प्राप्त वीरगति करते हैं, उन वीरों को मत भूल सखे ! जो भारत-गौरव हेतु मरे, उनको श्रद्धा से नमन करो। पद-चिह्न जो छोड़ गये उन्हीं पद-चिह्नों का अनुसरण करो। जो मनुज शहीद हुए, उनके आदर्शों का नित वरण करो ॥
आचार्य बालकृष्ण
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