वेदों में आयुर्वेद
Vedon Mein Ayurved

250.00

AUTHOR: Dr. Kapildev Dwivedi
SUBJECT: वेदों में आयुर्वेद | Vedon Mein Ayurved
CATEGORY: Ayurveda
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2018
PAGES: 286
BINDING: Paper Back
WEIGHT: 365 GM
Description

ओम्

प्राक्कथन

वेदों का महत्त्व वेद आर्यजाति के सर्वस्व हैं और मानवमाव के लिए प्रकाशस्तम्भ एवं शक्तिस्रोत हैं। वेदों का ज्ञान ही मानव जाति को सुख और शान्ति दे सकता है। वही ‘अज्ञान, निराशा, अनाचार और आधि-व्याधि से मुक्त करके जीवन का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

वेद और आयुर्वेद-मनु का कथन है कि ‘सर्वज्ञानमयो हि स.’ (मनु० २.७) वेदों में सभी विद्याओं का भंडार है। वेदों में आयुर्वेद-विषयक सैकड़ों मन्त्र हैं, जिनमें विविध रोगों की चिकित्सा वर्णित है। अथर्ववेद को भेषज अर्थात् भिषग्वेद के नाम से पुकारा गया है। चरक और सुश्रुत में आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपांग बताया गया है। इससे ज्ञात होता है कि आयुर्वेद का उद्गम स्रोत अथर्ववेद है। ऋग्वेद और यजुर्वेद में भी आयुर्वेद-विषयक पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है।

ऋग्वेद आदि में ओषधियों का भी यथास्थान उल्लेख है। ऋग्वेद में ६७ वनस्पतियों का उल्लेख है, यजुर्वेद में ८२ और अथर्ववेद में २८८ का। इनका विस्तृत विवरण अध्याय १२ में दिया गया है।

अध्यायों का विभाजन- अध्यायों के विभाजन में चरक, सुश्रुत आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों की विभाजन-प्रक्रिया को अपनाया गया है। इस प्रकार क्रमशः सूत्रस्थान, शारीर-स्थान, निदान स्थान और चिकित्सा स्थान अध्यायों को रखा गया है। शरीरांगों आदि के अनुसार रोगों को क्रमबद्ध किया गया है। प्राकृतिक चिकित्सा का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया है। शल्य- चिकित्सा पर महत्त्वपूर्ण सामग्री एकत्र की गई है।

बेदामृतम्-ग्रन्थमाला- इस ग्रन्थमाला के १२ पुष्प जनता की सेवा में अर्पित किए जा चुके हैं। भाग १३. शरीर-विज्ञान, भाग १४. रोग चिकित्सा, भाग १५. विष-चिकित्सा और भाग १६. विविध ओषधियाँ, ये चारों भाग इस ग्रन्थ में एकत्र किए गए हैं। इससे आयुर्वेद-विषयक समस्त सामग्री एक स्थान पर संगृहीत हो सकी है। उपयोगिता की दृष्टि से चारों भागों को इकट्ठा छापना उचित समझा गया। छपाई की कुछ कठिनाइयों के कारण सभी पाद- टिप्पणियाँ प्रत्येक अध्याय के अन्त में क्रमशः दी गई हैं। पाठक उन्हें वहाँ देखने का कष्ट करें ।

आयुर्वेद आयुर्वेद जीवन का अंग है। जन्म से लेकर मृत्यु तक आयुर्वेद की आवश्यकता होती है। कालिदास का यह कचन सर्वथा उपयुक्त है कि- ‘शरीरमाद्य खुल धर्मसाधनम्’ यह स्वस्थ शरीर ही धर्म का साधन है। स्वस्थ रहने की पद्धति का उपदेष्टा आयुर्वेद है। आधि और व्यार्थियों की चिकित्ता आयुर्वेद द्वारा ही संभव है, अतः यह शात्र हमारे जीवन का अभिव अंग है।

मैंने प्रयत्न किया है कि विषय से संबंद्ध कोई भी आवश्यक सामग्री छूटने न पावे । साथ ही विषय को जितना अधिक सुबोध बनाया जा सके, उतना सुबोध बनाया जाए । ओषधियों के विवरण आदि में भी विषय का स्पष्टीकरण आवश्यक समझा गया है।

सूत्रस्थान, शारीर स्थान, निदान स्थान और चिकित्सा स्थान अध्यायों के लेखन में चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांगहृदय का पर्याप्त सहयोग लिया गया है। शल्यचिकित्सा अध्याय के लेखन में डा० रामजीत विश्वकर्मा प्रणीत ‘वैदिक साहित्य में शल्य चिकित्सा’ से विशेष सहायता मिली है। ‘विवेिव ओषधियाँ’ अध्याय के लेखन में भावप्रकाश निघण्टु, आचार्य प्रियव्रत शर्मा कृत ‘द्रव्यगुण विज्ञान’ (भाग ४), डा० राजीव कमल के ग्रन्थ ‘Economy of Plants in the Vedas’ से विशेष सहायता मिली है। श्री स्वामी ब्रह्ममुनि कृत ‘अथर्ववेदीय चिकित्साशास्त्र’ ग्रन्थ से भी उपयोगी सामग्री ली गई है। तदर्थ इनका आभारी हूँ।

ग्रन्थ के प्रकाशन की व्यवस्था ज्येष्ठ पुत्र डा० भारतेन्दु द्विवेदी ने की है। प्रूफ रीडिंग आदि कार्यों में परिवार के इन सदस्यों से विशेष सहयोग मिला हैः- धर्मेन्दु, ज्ञानेन्दु, विश्वेन्दु, आर्येन्दु एवं पुत्रवधुएँ श्रीमती सविता, जया एवं सुनीता । इन सभी को हार्दिक आशीर्वाद है ।

आशा है यह ग्रन्थ वेद एवं आयुर्वेद के प्रति जन-साधारण की रुचि जागृत करेगा और उनके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। यदि इस ग्रन्थ के द्वारा जनता- जनार्दन की कुछ भी अर्चना हो सकी तो मैं अपना प्रयत्न सफल समझेंगा ।

शान्दि निकेतन
ज्ञानपुर (वाराणसी)
दिनांक १४.१.१६६३ ई०
(मकर संक्रान्ति २०४६ वि०)
– डा० कपिलदेव द्विवेदी

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