वेदोद्यान के चुने हुए फूल
Vedodyaan Ke Chune Hue Phool

230.00

AUTHOR: Priyavrata Vedavachaspati (प्रियव्रत वेदवाचस्पति)
SUBJECT: वेदोघान के चुने हुए फूल | Vedodyaan Ke Chune Hue Phool
CATEGORY: Vedic Dharma
PAGES: 223
EDITION: 2008
LANGUAGE: Hindi
BINDING: Hardcover
WEIGHT: 480 g.
Description

भूमिका

श्रद्धानन्द स्मारकनिधि के सदस्यों की सेवा में

प्रिर महोदय

नये वर्ष के साथ स्वाध्याय-मंजरी का यह 23वाँ पुष्प आपको समर्पित है। महर्षि पतंजलि ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ महाभाष्य में एक स्थान पर वेदों के सम्बन्ध में लिखते हुए कहा है कि ‘एकः शब्दः सम्यग् ज्ञातः सुप्रयुक्तः स्वर्गे लोके कामधुग् भवति’ । अर्थात् यदि वेद के एक शब्द को भी भली-भांति समझ लिया जाये और समझ कर उसके अनुसार आचरण किया जाये तो वह हमारे इस संसार को स्वर्ग बनाने की शक्ति रखता है तथा हमारे लिये कामधेनु बन जाता है।

वेद के एक-एक शब्द में हमारे जीवन को सुन्दर और सफल बनाने की इतनी शक्ति है। यदि वेद के किसी एक पूरे मन्त्र, पूरे सूक्त, पूरे मण्डल, कांड या अध्याय और अन्त में पूरे वेद को ही कोई भली-भांति समझ ले और उसके अनुसार अपना आचरण भी बना ले तो उसे जो सुख-मंगल प्राप्त होगा उसकी तो कल्पना भी सुगमता से नहीं की जा सकती। तब तो हमारा जीवन सर्वधा दिव्य हो जायेगा।

भगवान् वेद ऐसा महिमाशाली है। ‘वेदोद्यान के चुने हुए फूल’ में भिन्न-भिन्न विषयों से सम्बन्ध रखने वाले कुछ महत्वपूर्ण वेद-मन्त्रों और सूक्तों का संग्रह किया गया है। इनमें से एक-एक मन्त्र निराला उपदेश देने वाला है। एक-एक मन्त्र और उसके एक-एक शब्द में हमारे जीवन को महान् बना देने की शक्ति है। यदि पाठक इन मन्त्रों का गम्भीरता से स्वाध्याय करेंगे तो उनका यह संसार भी स्वर्ग बन जायेगा और वे भगवान् के दर्शन पाकर उन रसनिधि के साक्षात्कार से मिलने वाले परम-आनन्द-समुद्र में निमग्न रहने के अधिकारी भी बन जायेंगे।

इसी अभिप्राय से सम्वत् 2011 की यह भेंट आपको समर्पित की जा रही है। यदि इन वेदोद्यान के चुने हुए फूलों के स्वाध्याय से आपकी आध्यात्मिक भूख की कुछ भी परितृप्ति हो सकी तो मैं गुरुकुल की इस भेंट को सार्थक समझेंगा।

प्रियव्रत वेदवाचस्पति

                                                                                                                                                                                                                     आचार्य

गुरुकुल विश्वविद्यालय कांगड़ी।

गुरुकुल धरा के वैदिक ऋषि आचार्य प्रियव्रत वेदवाचस्पति

आचार्य प्रियव्रत वेदवाचस्पति गुरुकुल के उन सुप्रसिद्ध स्नातकों की श्रृखंला में सिरमौर स्थान रखते थे जिन्होंने गुरुकुल के यश एवं उसकी कीर्तिपताका को देश-विदेश में चारों ओर फैलाया। आचार्य जी ने वेद की सार्वभौमिकता के संदेश को अपनी कथनी तथा करनी, अपनी वक्तृत्व प्रतिभा तथा अपनी सजीव लेखनी से सराबोर कर दिग दिगन्त तक जीवनपर्यंत फैलाया।

गुरुकुल में वेद के पढ़ाने वाले वे ऐसे शिक्षक थे जो हमेशा वेदों के चितंन में खोए रहते थे। वे कहा करते थे कि उन्हें वेदमंत्रों के चिंतन, मनन में अखंड आनंद की अनुभूति होती थी। वे वेदरूपी समुद्र में गहराई से उतरते थे तथा पलक झपकते ही किसी ने किसी वेदमंत्र से माणिक मोती सा अनूठा विचार उनमें समाहित हो जाता था और वे अपनी वाणी से उस विचारधारा को जीवन-ज्योति के रूप में परिवर्तित कर देते थे।

आचार्य प्रियव्रत जी के इसी प्रकार के गंभीर विचारों एवं चिंतन से भरा उनका सुप्रसिद्ध ग्रंथ वेदोद्यान के चुने हुए फूल का पुनः प्रकाशन करते हुए हम गुरुकुलवासी अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं।

आचार्य प्रियव्रत जी ने वेद के संबंध में इस अवधारणा का प्रबल समर्थन उक्त पुस्तक में किया जिसके अनुसार वेद में सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान निहित हैं। वे वेद के अधिकारी विद्वान् थे जिन्होंने गुरुकुल में तीन दशाब्दी तक वेद विभाग में अध्यापन का कार्य किया। गुरुकुल के आचार्य के रूप में, फिर कुलपति के रूप में तथा पश्चात परिद्रष्टा के रूप में उनकी सेवायें गुरुकुल इतिहास में अपनी अलग पहचान रखती हैं।

आचार्य जी की वेदफुलवारी में खिले अन्य ग्रंथ, वेद का राष्ट्रीय गीत, वरुण की नौका, मेरा धर्म तथा तीन खंडों में प्रकाशित वेदों के राजनीतिक सिद्धांत, आदि सभी ग्रंथ वेदरूपी सागर से निकले ऐसे अनमोल रत्न हैं, जिनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। प्रस्तुत ग्रंथ में उन्होंने वेदों में वर्णित भौतिक और सामाजिक विज्ञान के सिद्धांतों का जहाँ प्रस्फुटन किया है वहाँ यह भी सिद्ध किया है कि वेद केवल आध्यात्मिक ज्ञान के भंडार से ओतप्रोत ही नहीं हैं बल्कि वेद मानव-सविधान की आधारभूत सामग्री को भी उद्भूत करते हैं। इस दृष्टि से उनक। लिखा अमरग्रंथ, वेदों के राजनीतिक सिद्धातं, राजनीति के विविध आयामों पर सर्वांग प्रकाश डालता है।

गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय तो आचार्य प्रियव्रत जी के आचार्यत्व से ही लंबे समय तक पुरातन ज्ञान तथा आधुनिक ज्ञान विज्ञान को समन्वित करने के स्वप्न को साकार करने में जुटा है। गुरुकुल में आचार्य के रूप मेमं अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए प्रियव्रत जी, स्वामी श्रद्धानन्द के उस स्वप्न को कभी नहीं भूलते थे कि गुरुकुल में पूराने एवं आधुनिक दोनों विषयों का ज्ञान प्रवाहित किया जाना चाहिए।

आचार्य जी का यह उद्बोधन होता था कि भारत में रहने वाले प्रत्येक प्राणी को वेद का स्वाध्याय करना अभीष्ट हैं वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है। वेद ही भारतीय संस्कृति को समझने के आधारभूत ग्रन्थ हैं। वे कहा करते थे कि भारतीय संस्कृति का शुद्ध एवं मूलभूत रूप वेद में उपलब्ध होता है। गुरुकुल का यह दायित्व बनता है कि वेदविषयक उत्तम साहित्य जनता के आगे लाया जाये, तथा प्रस्तुत कृति इसी दिशा में एक प्रयत्न है। लेखक की इस कृति में वेद खंड, ईश्वर खण्ड सृष्टि खंड, गृहस्थ खंड, राष्ट्र निर्माण खंड और विविध खंड आदि वर्गों में अलग अलग विषयों का विवेचन किया गया है।

प्रस्तुत ग्रन्थ की भूमिका में लेखक ने यह विश्वास व्यक्त किया है कि वैदिक संस्कृति और विचारधारा को उज्ज्वल रूप में में समझने के लिए यह ग्रन्थ जिज्ञासु पाठक को आधारभूत सामग्री प्रदान करेगा तथा स्वाध्याय प्रेमी पाठक इस ग्रन्थ के माध्यम से यह जान लेंगे कि वेद किस प्रकार के उच्चस्तरीय उपदेश देने वाले ग्रन्थ है।

गुरुकुल के वेद मनीषी आचार्य प्रियव्रत वेदवाचस्पति की यह कृति वेद का स्वाध्याय करने वाले प्रत्येक पाठक के लिये अमृत सरोवर की भांति वेद की पीयूष धारा को प्रवाहित करने में सार्थक सिद्ध होगी।

वेद एवं भारतीय संस्कृति के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर डा० वासुदेव शरण अग्रवाल की दृष्टि में आचार्य जी की यह कृति मानवीय कल्याण और वैदिक अध्यात्म चेतना को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। मंत्रों के चुनाव में वैदिक आध्यात्मिक धारा का प्रवाह अविरल रूप से दृष्टिगोचर होता है। वेद मंत्रों का यह संग्रह बहुत उपादेय है।

पुस्तक की भूमिका में लेखक ने पश्चिम की भौतिकवादी संस्कृति को केवल भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साधन के रूप में बतलाया है जबकि विश्व ब्रह्माण्ड में परमात्मा के वैभव को समझने के लिये आध्यात्मिक शक्ति से ओतप्रोत होना इस जीवन एवं जगत् के स्वरूप को समझने के लिये परम आवश्यक है।

भौतिक संस्कृति मनुष्य जीवन में जीवात्मा के आधार को नहीं पहचानती वह मनुष्य के प्राकृतिक अंश को ही देखती है जबकि वेद की संस्कृति विश्व ब्रह्माण्ड में केवल प्रकृति को नहीं देखती, वरन् प्राकृति के जगत् की तह में परमात्मा के आधार को पहचानती हैं वेद के इस दृष्टिकोण को आचार्य श्री ने इस ग्रंथ में पतिपादित करने का प्रयास किया है।

आचार्य प्रियव्रत जी ने इस ग्रंथ में यह बतलाने का प्रयास किया है कि सब जगत् के रचयिता परमात्मा ने हमें शरीर देकर जीवन प्रदान किया है और हमारे जीवन की रक्षा, उन्नति और सुख समृद्धि के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के पदार्थों से भरा यह जगत् बनाकर हमें दिया। जीवन एवं जगत् का ऐसा दृष्टिकोण इस ग्रंथ में आचार्य जी ने वेद मंत्रों की व्याख्या द्वारा बड़े मनोहर तरीके से प्रस्तुत किया है! पाठक यह सब बोध पुस्तक को पढ़ कर ही प्राप्त कर सकेंगे।

विश्वविद्यालय में श्रद्धानन्द अनुसंधान प्रकाशन केन्द्र के द्वारा गत कुछ वर्षों से वैदिक साहित्य, आर्य साहित्य, संस्कृत, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति, हिन्दी तथा आर्य समाज से सम्बद्ध साहित्य के प्रकाशन की महती योजना पर कार्य किया जा रहा है। तथा इस प्रकाशन केन्द्र द्वारा अब तक 25 उत्कृष्ट ग्रन्थों का निर्माण किया जा चुका है।

इसी केन्द्र के द्वारा कुछ वर्ष पूर्व आचार्य प्रियव्रत जी द्वारा रचित वेद और उसकी वैज्ञानिकता, तथा वेद का राष्ट्रिय गीत का प्रकाशन किया गया जिसकी आर्य जनता ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की। आर्य जनता से मिले उत्साह के परिणामस्वरूप हमने विगत समय में उनके एक अन्य अप्राप्य ग्रन्थ ‘मेरा धर्म’ के प्रकाशन का दायित्व लिया जिसे आर्य जनता एवं विद्वानों ने तुरन्त आत्मसात् कर लिया।

यह प्रकाशन केन्द्र जहाँ प्राचीन वैदिक साहित्य, संस्कृत साहित्य, भारतीय संस्कृति से जुड़े बहुमूल्य ग्रन्थों के प्रकाशन में नियोजित है वहीं गुरुकुल के पुराने दुर्लभ साहित्य के पुनर्मुद्रण का कार्य भी प्रकाशन केन्द्र ने अपने हाथ में ले रखा है।

प्रकाशन केन्द्र का यह संकल्प है कि प्राचीन संस्कृति का संरक्षण जहाँ इस केन्द्र के माध्यम से उत्तरोत्तर स्तरीय ग्रन्थों के प्रकाशन से किया जाएगा वहीं आधुनिक ज्ञान विज्ञान को प्राचीन सांस्कृतिक वैभव से जोड़कर हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को निरन्तर समृद्ध करने में अपने दायित्व का निर्वाह करेंगे। पाठकों का सहयोग तथा आर्य जनता की आकाँक्षा हमारा संबल है। के চাটি কয় এটি

हम इस श्रृंखला को जारी रखेंगे तथा इस क्रम में प्रकाशन का 26वां उपहार प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है। हमें आचार्य जी की तेजोमयी वाणी, उनके हार्दिक भावों की रम्य झांकी उनके वेद मंत्रों की व्याख्या की गहन चिंतनात्मक शैली तथा जीवन की समस्या पर उनका सुलझा हुआ वैदिक दृष्टिकोण सब कुछ एक ही स्थान पर आचार्य ऋषि की इस मनोरम कृति में उपलब्ध होगा।

आचार्य श्री का प्रस्तुत ग्रन्थ वेदोद्यान के चुने हुए फूल गुरुकुल के द्वारा सर्वप्रथम 1954 में प्रकाशित हुआ था। ग्रन्थ की अनुपलब्धता को देखते हुए तथा गुरुकुल की इस प्राचीन गौरवपूर्ण धरोहर को आर्य जनता को उपलब्ध कराने का दायित्व श्रद्धानंद अनुसंधान प्रकाशन ने लिया तथा उसका परिणाम इस ग्रन्थ के रूप में आपके समाने है।

आचार्य प्रियव्रत गुरुकुल के आचार्य ऋषि रहे, वे जो बोलते थे तो अन्तर्मानस के ध्यान पीठ से उसका साक्षात्कार करते थे। उनकी देद मन्त्रों की व्याख्याएं उनके गहन चिंतन का आत्मस्वीकारात्मक दस्तावेज हुआ करती थीं। तभी तो उनकी वाणी से निःसृत स्फुट शब्द जीवन्त जीवन की शाश्वत प्रेरणा बनकर जनमानस को उत्तेजित करते थे। ऐसी ही वाणी एवं लेखनी से निःसृत उनके चुने हुए वेद मंत्रों की व्याख्या का यह अद्भुत संकलन आज आर्य जनता के सामने प्रस्तुत करते हुए मुझे अपार प्रसन्नता है।

ग्रन्थ की प्रस्तावना में साहित्य जगत् के उद्भट विद्वान् और सुप्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य विष्णुदत्त राकेश ने जो छटा बिखेरी है उससे इस ग्रन्थ की उपयोगिता और भी बढ़ गयी है। आकर्षक प्रस्तुति के लिए डॉ जगदीश विद्यालंकार पुस्तकालयाध्यक्ष बधाई के पात्र हैं। आशा है आर्य जनता इस ग्रन्थ को वही सम्मान प्रदान करेगी जो ऋद्धानन्द अनुसंधान के अन्य ग्रन्थों को अपनाकर दिया है।

Additional information
Weight 480 g
Author

Language

Reviews (0)

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “वेदोद्यान के चुने हुए फूल
Vedodyaan Ke Chune Hue Phool”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shipping & Delivery