वैदिक वांग्मय में भाषा चिंतन
Vedic Vangmay Men Bhasha Chintan

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Vedic Vangmay Men Bhasha Chintan

वैदिक वांग्मय में भाषा चिंतन

वैदिक भाषा चिंतन

 ऋषियों की दृष्टि में भाषा का महत्त्व : ऋग्वेद-संहिता के ऋषि जीवन में भाषा के महत्त्व से सुपरिचित हैं। उन्होंने अपने मन्त्रों में भाषा के व्यावहारिक और दार्शनिक महत्त्व का वणन यत्र-तत्र किया है। गृत्समद ऋषि इन्द्र से श्रेष्ठ घनों की कामना करते समय वाणी के माधुर्य (स्वागन) की कामना को नहीं भुला पाय है ।

यह वाक् का स्वाद बोलने और सुनने वाले को पानन्द की अनुभूति के रूप में ही हो सकता है । बृहस्पति पाङ्गिरस ऋषि का कथन है कि जैसे बुद्धिमान् लोग सत्तू को छालनी से छान कर काम में लाते हैं,

वैसे ही वे लोग वाक् को मन में छान कर सम्यक् विचार से उसे निर्दोष कर के, बोलते हैं वे पहले तोलते हैं, फिर बोलते हैं। ऐसी वाणी बोलने वाले के सब लोग मित्र होते हैं; तथा ऐसी वाणी पर जीवन में सफलता निहित है । अगम्त्य मैत्रा-वरुरिण ऋषि वाक् को ही रमणीय द्रव्यों वाली (रनिनी) मानते हैं ।

ऋग्वेद संहिता के श्रेष्ठतम दार्शनिक ऋषि ममता-पुत्र दीर्घ-तमस् प्रौचथ्य के अनुसार वाणी (सरस्वती) मनुष्य रूपी बच्चे के लिये माँ के समान है। उसका स्तन अर्थात् शब्द सुख की खान (मयो-भू) है। उस से मनुष्य सब प्रकार के प्रभीष्ट (वार्याणि) पदार्थों की पुष्टि पाता है। वह (शब्द) उसे श्रेष्ठ पदार्थ देता है;

उसे धन-सम्पत्ति प्राप्त कराता (वसु-विद्) है। वास्तव में वह मनुष्य को क्या नहीं देता? वह श्रेष्ठ दाता (या श्रेष्ठ धन वाला, ‘सु-दत्त’) है। शशकर्ण काण्व वाक् को देवी मानते हैं और स्वयं को वाणी के साथ ही जागरित मानते हैं । यह वाक् मनुष्यों को मति और श्रेष्ठ वस्तु प्रदान करती हैं ।

पदार्थों (नाम-धेयं दधाना.) का जो गुप्त श्रेष्ठ और परि-पूर्ण भाव होता है, बहस्पति पाङ्गिरस उसे वाक् से प्रकट होता मानते हैं। दीर्घ-तमस् का कथन है कि वाणी

१. इन्द्र, श्रष्ठानि द्रविणानि घेहि चित्ति दक्षस्य सु-भगत्वमस्मे ।

पोषं रयीणामरिष्टि तनूना, स्वाद्यानं वाचः, सु-दिनत्वमह्नाम् ।।२।२१।६। २. सक्तुपिय तितउना पुनन्तो यत्र धीरा मनसा वाचमक्रत । अत्रा सखायः सख्यानि जानते; भद्रेयां लक्ष्मीनि-हिताऽधि वाचि ।।१०।७१।२।। तुलना करें : मनः-पूता बदेवाचं, वस्त्र-पूतं पिबेज्जलम् ।

दृष्टि-पूतं क्षिपेत्पादं, शास्त्र-पूतं समाचरेत् ॥ ३. वाचं-वाचं जरितू रत्निनी कृतमुभा शंसं नासत्याऽवतं मम । १।१२।४।।

ऋषियों की दृष्टि में भाषा का महत्त्व : ऋग्वेद-संहिता के ऋषि जीवन में भाषा के महत्त्व से सुपरिचित हैं। उन्होंने अपने मन्त्रों में भाषा के व्यावहारिक और दार्शनिक महत्त्व का वणन यत्र-तत्र किया है। गृत्समद ऋषि इन्द्र से श्रेष्ठ घनों की क

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