वैदिक वाङ्मय का इतिहास
Vedic Vangmay Ka Itihas

1,500.00

AUTHOR: Pandit Bhagvaddutt Research Scholar (पंडित भगवद्दत्त रिसर्च स्कॉलर)
SUBJECT: Vedic Vangmay Ka Itihas | वैदिक वाङ्मय का इतिहास
CATEGORY: Research
PAGES: 912
EDITION: 2023
ISBN: 9788170771108
LANGUAGE: Sanskrit-English
PACKING: 3 Volumes
BINDING: Hard Cover
WEIGHT: 2350 g.

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Description

पुस्तक का नाम – वैदिक वाङ्मय का इतिहास

लेखक – पंडित भगवद्दत्त जी

प्रस्तुत् ग्रन्थ वैदिक वाङ्मय का इतिहास नाम से तीन भागों में है। इसमें प्रथम भाग में अपौरुषेय वेद और उसकी शाखा का परिचय है। द्वितीय भाग में वेदों के भाष्यकारों का परिचय दिया है। तृतीय भाग में ब्राह्मण तथा आरण्यकग्रन्थों का स्वरूप बताया है। पंडित भगवद्दत्त जी ने डी.ए.वी. कालेज लाहौर में शोधार्थी अध्यक्ष के रूप में कार्य किया तथा स्वयम् के द्वारा सङ्ग्रहित लगभग सात हजार पांडूलिपियों के सङ्ग्रह से इस विशालकाय ग्रन्थ को लिखा है।

इस ग्रन्थ की अनेकों सामग्री पौराणिक, आर्य जगत के कई विद्वानों ने अपनी पुस्तकों में ली है । लेखक ने ग्रन्थ में भाषा शास्त्र तथा भारत के प्राचीन इतिहास विषयक अपने मौलिक चिन्तन का सार प्रस्तुत किया है।

प्रथम अध्याय में भाषा की उत्पत्ति के विषय में पाणिनि, पतञ्जलि, भर्तृहरि के प्राचीन मत को प्रस्तुत किया है। भाषा की उत्पत्ति के आर्ष सिद्धांत को प्रमाणित किया है। दूसरे अध्याय में पाश्चात्य भाषा विज्ञानं की आलोचना की है। तीसरे अध्याय में सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है, इसका प्रतिपादन किया है। पाँचवे से लेकर नौवें अध्याय तक वेद विषयक निबन्धों का सङ्ग्रह है, जिसमें अनेकों जानकारियाँ दी हुई है। तेरहवें अध्याय से उन्नीस तक वेदों की विभिन्न शाखाओं, उनके प्रवक्ताओं का वर्णन है।

द्वितीय भाग वेदों के भाष्यकार नाम से है। इसमें ऋग्वेद के भाष्यकारों में सर्वाधिक प्राचीन स्कन्ध स्वामी से लेकर स्वामी दयानन्द जी, यजुर्वेद के शौनक से लेकर स्वामी दयानन्द जी, सामवेद के माधव से लेकर गणविष्णु, अथर्ववेद के एकमात्र सायण का उल्लेख है। पांचवे अध्याय में पदपाठकारों का परिचय है। इस ग्रन्थ में निरुक्तकारों पर भी एक स्वतंत्र अध्याय है।

तृतीय खंड का नाम “ब्राह्मण तथा आरण्यक ग्रन्थ” है। इसमें लेखक ने स्वामी दयानन्द जी की मान्यता “ब्राह्मण ग्रन्थ” ऋषि प्रोक्त है मूल वेद नही, का सप्रमाण प्रतिपादन किया है। इसके साथ ही प्राप्त और अप्राप्त ब्राह्मणों का उल्लेख ग्रन्थकार ने किया है। इन ब्राह्मणों पर किये गये भाष्यों का भी यथा-स्थान परिचय दिया है। ब्राह्मण, आरण्यक विषयक सामग्री का उल्लेख करने के पश्चात् लेखक ने उनके रचनाकाल तथा अन्य आवश्यक तथ्य भी प्रस्तुत किये है।

पाठकों के लिए वैदिक साहित्य का इतिहास जानने के लिए यह अद्वितीय ग्रन्थ अपरिहार्य है।

प्रस्तुत ग्रन्थ वैदिक वांग्मय का इतिहास नाम से तीन भागो में है |

इसमें प्रथम भाग में अपौरुषेय वेद और शाखा का परिचय है | द्वितीय भाग में वेदों के भाष्यकारो का परिचय दिया है | तृतीय भाग में ब्राह्मण तथा आरण्यकग्रंथो का स्वरूप बताया है | पंडित भगवत्त दत्त जी ने डी. ए . वी कालेज लाहोर में शोधार्थी अध्यक्ष के रूप में कार्य किया तथा स्वयम के द्वारा संग्रहित लगभग सात हजार पांडुलिपियों के संग्रह से इस विशालकाय ग्रन्थ को लिखा है |

वैदिक वांग्मय के इतिहास के प्रथम खंड जिसमे वेदों और वेदों की शाखाओं पर विचार प्रकट किया है | इस ग्रन्थ की अनेको सामग्री पौराणिक ,आर्य जगत के कई विद्वानों ने अपनी पुस्तको में ली है लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उन्होंने बिना आभार व्यक्त किये इस ग्रन्थ से सामग्री का उपयोग किया | ऐसे लेखक की सूचि में चतुरसेन शास्त्री जी , बलदेव उपाध्याय , बटकृष्ण घोष , रामगोविन्द त्रिवेदी आदि विद्वान है |

लेखक ने ग्रन्थ में भाषा शास्त्र तथा भारत के प्राचीन इतिहास विषयक अपने मौलिक चिन्तन का सार प्रस्तुत किया है | प्रथम अध्याय में भाषा की उत्पत्ति के विषय में पाणिनि ,पतंजलि , भर्तृहरि के प्राचीन मत को प्रस्तुत किया है | भाषा की उत्पत्ति के आर्ष सिद्धांत को प्रमाणित किया है | दूसरे अध्याय में पाश्चात्य भाषा विज्ञान की आलोचना की है | तीसरे अध्याय में सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है इसका प्रतिपादन किया है | पांचवे से लेकर नवे अध्याय तक वेद विषयक निबन्धों का संग्रह है जिसमे अनेको जानकारियाँ दी हुई है | तेरहवे अध्याय से उन्नीस तक वेदों की विभिन्न शाखाओं ,उनके प्रवक्ताओं का वर्णन है |

द्वितीय भाग वेदों के भाष्यकार नाम से है | इसमें ऋग्वेद के भाष्यकारो में सर्वाधिक प्राचीन स्कन्ध स्वामी से लेकर स्वामी दयानन्द जी , यजुर्वेद के शौनक से लेकर स्वामी दयानन्द जी , सामवेद के माधव से लेकर गणविष्णु , अथर्ववेद के एकमात्र सायण का उल्लेख है | पांचवे अध्याय में पदपाठकारो का परिचय है | इस ग्रन्थ में निरुक्तकारो पर भी एक स्वतंत्र अध्याय है |

तृतीय खंड का नाम “ ब्राह्मण तथा आरण्यक ग्रन्थ “ है | इसमें लेखक ने स्वामी दयानन्द जी की मान्यता “ ब्राह्मण ग्रन्थ “ ऋषि प्रोक्त है मूल वेद नही ,का सप्रमाण प्रतिपादन किया है | प्राप्त और अप्राप्त ब्राह्मणों का उल्लेख ग्रन्थकार ने किया है | इन ब्राह्मणों पर किये गये भाष्यों का भी यथा स्थान परिचय दिया है | ब्राह्मण ,आरण्यक विषयक सामग्री का उल्लेख करने के पश्चात् लेखक ने उनके रचनाकाल तथा अन्य आवश्यक तथ्य भी प्रस्तुत किये है |

पाठको के लिए वैदिक साहित्य का इतिहास जानने के लिए यह अद्वितीय ग्रन्थ अपरिहार्य है |

वैदिक वाङ्गमय का इतिहास

वैदिक वाङ्गमय का इतिहास 3 खण्ड में प्रकाशित किया गया है।

इसके प्रथम खण्ड में मुख्यतः वैदिक शाखाओं पर विचार किया गया है। विद्वान लेखक पं0 भगवद्दत्त ने भाषा शास्त्र तथा भारत के प्राचीन इतिहास विषयक अपने मौलिक चिन्तन का सार भी प्रस्तुत किया है।

पं0 भगवद्दत्त जी की धारणाऐं और उपपत्तियां विद्वत् संसार में हड़कम्प मचा देने वाली थीं।

इसके द्वितीय खण्ड में लेखक ने ब्राहाण और आरण्यक साहित्य का विचार किया। उपलब्ध और अनुपलब्ध ब्राहाणों के विवरण के पश्चात् ग्रन्थों पर लिखे गये भाष्यों और भाष्यकारों की पूरी जानकारी दी गई है।

इस ग्रन्थ के तीसरे खण्ड में अनेक ऐसे भाष्यकारों की चर्चा हुई है जिनके अस्तित्व की जानकारी भी लोगों को नहीं थी।

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