वैदिक इतिहासार्थ निर्णय
Vedic Itihasarth Nirnaya

565.00

AUTHOR: Pt. Shivshankar Kavyateertha (पं. शिवशंकर काव्यतीर्थ)
SUBJECT: वैदिक इतिहासार्थ निर्णय | Vedic Itihasarth Nirnaya
CATEGORY: History
PAGES: 544
EDITION: 2021
LANGUAGE: Hindi
BINDING: Hardcover
WEIGHT: 691 G.
Description

पण्डित्त शिवशंकर शर्मा ने महर्षि दयान जीवन से प्रेरणा लेकर उनके वेदप्रचार के कार्य को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया और बिद्वता की काष्ठा प्राप्त की उसमें उन्होंने स्वयं का कल्याण ही नहीं किया अपितु इसे देश व विश्व को प्रस्तुत कर महर्षि दयानन्द के मिशन को सफल बनाया।

पण्डित शिवशंकर काव्यतीर्थ जी का जन्म बिहार में दरभंगा के चिंहुटा ग्राम डाकखाना कमतौल में एक सुप्रतिष्ठित मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह स्थान उन दिनों संस्कृत व्याकरण, नव्यन्याय दार्शनिकों के लिए प्रसिद्ध था। पण्डित जी के जन्म व मृत्यु की तिथि व वर्ष का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है लेकिन इनका जन्म अनुमानतः सन् 1870 और मृत्यु सन् 1931 के आस-पास माना जाता है। आपकी शिक्षा-दीक्षा अपनी कुल परम्परा के अनुसार हुई। संस्कृत साहित्य के पूर्ण अवगाहन को आपने अपना ध्येय निश्चित किया।

पण्डित शिवशंकर शर्माजी के हृदय में महर्षि दयानन्द के ग्रन्थों के अध्ययन की प्रेरणा उनके गुरु पण्डित अम्बिकादत्त व्यास से मिली। उन्होंने अध्ययन आरम्भ किया तो उन्हें ज्ञात हुआ कि उनका उस समय तक सारा समय और परिश्रम व्यर्थ हो गया है।

वेदों के ज्ञान के बिना उनकी सम्पूर्ण विद्या और योग्यता निष्फल है। अतः उन्होंने वेदों के अध्ययन में विशेष परिश्रम करना आरम्भ किया और अपना सम्पूर्ण जीवन वेदों के मनन, पठन-पाठन, उच्चकोटि के शास्त्रीय ग्रन्थ लेखन, शास्त्रार्थ, उपदेश शिक्षण और प्रचार में लगा दिया। पण्डित जी अपने विद्याध्ययन और पुरुषार्थ से वैदिक साहित्य के गम्भीर व उच्चकोटि के विद्वान बन गये। आप जहां एक कुशल लेखक, गवेषक एवं विचारक थे वहीं एक सिद्धहस्त शास्त्रार्थ महारथी भी थे।

आपके कालजयी ग्रन्थों में ओंकार निर्णय, त्रिदेव-निर्णय, जाति-निर्णय, श्राद्ध-निर्णय, वैदिक इतिहासार्थ-निर्णय आदि प्रमुख अन्य ग्रन्थों में चतुर्दश भुवन, वशिष्ठनन्दन, वैदिक विज्ञान, वैज्ञानिक सिद्धान्त अलौकिक *माला, श्रीकृष्ण मीमांसा, ईश्वरीय पुस्तक कौन? आदि मुख्य हैं। सन् 1898 से 1900 तक आप बंगाल-बिहार आर्यप्रतिनिधि सभा के साथ मिलकर वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य किया।

कुछ दिन गुरुकुल कांगड़ी में वेदाध्ययन कराने हेतु प्रथम वेदोपाध्याय को क्द पर कार्य किया। सन् 1903 से 1906 तक परोपकारिणी सभा अजमेर में रहे जहां पर आपके वेदप्रचार के साथ-साथ छान्दोग्य तथा वृहदारण्यक उपनिषदों पर वृहद भाष्य की रचना की। पण्डितजी ने जो साहित्य सृजन किया वह बहुमूल्य निधि है जिनके लिये वेदों का स्वाध्याय करने वाला व्यक्ति, शोधकर्ता और विद्वान सदैव उनका ऋणी रहेगा।

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