वेद-विमर्श
Veda Vimarsha (Swadhyay Manjari Ka 18 Va Pushpa)

300.00

AUTHOR: Pandit Bhagvaddutt (Research Scholar)
SUBJECT: वेद-विमर्श | Veda Vimarsha (Swadhyay Manjari Ka 18 Va Pushp)
CATEGORY: Vedas
PAGES: 209
EDITION: 2012
LANGUAGE: Hindi
BINDING: Hardcover
WEIGHT: 390 g.

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Description

प्रस्तावना

प्राचीन विद्याओं के गवेषण, संरक्षण, उन्नयन और प्रोत्साहन देने का जहाँ तक प्रश्न है, गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय का इस क्षेत्र में महनीय योगदान रहा है। जब यह विश्वविद्यालय नहीं था, तब भी साहित्य साधना के क्षेत्र में इसने अभूतपूर्व कार्य किया है। उस समय एक ऐसी परम्परा गुरुकुल में चलती थी, जिसमें स्थायी निधि के रूप में दान प्राप्त होता था, उसका उद्देश्य भी निश्चित हुआ करता था। ऐसी ही एक निधि स्व०श्री पं०ठाकुरदास शर्मा अमृतधारा स्थिर निधि थी। इस निधि से अनेकों पुस्तकों का प्रकाशन हुआ।

तत्कालीन मुख्याधिष्ठाता श्री धर्मपाल विद्यालङ्कार ‘वेद-विमर्श’ का प्रकाशन करते हुए कहते हैं-‘आपको यह ज्ञात ही है कि स्व०श्री पं० ठाकुरदत्त शर्मा अमृतधारा स्थिर निधि से गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय में स्थापित वेदानुसन्धान विभाग द्वारा तैय्यार की गई ‘विष्णु-देवता’ ‘ऋषि-रहस्य’ आदि अनेकों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इस वर्ष सन् १९६६ में इस निधि से ‘वेद- विमर्श’ नामक पुस्तक वेदानुसन्धान विभाग द्वारा तैय्यार कराकर प्रकाशित की जा रही है। आशा है धर्मप्रेमी सज्जन इसे अपनाकर वेदानुसन्धान कार्य को प्रोत्साहन देंगे।’

उक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि वेद के क्षेत्र में अनुसन्धान और उस कार्य को प्रकाशित करने के लिये उस समय भी विश्वविद्यालय परिवार सचेष्ट था, तभी इस प्रकार के कार्य अस्तित्व में आ सके। मेरे मन में भी इस प्रकार की योजना चलाते रहने की इच्छा है। भगवान् हमारे पर ऐसी अनुकम्पा करे कि जिससे ज्ञान का आलोक ‘अमृतधारा’ सदृश योजनाओं के माध्यम से गुरुकुल के गौरव को निरन्तर बढ़ाता रहे।

पं. भगवद्दत्त वेदालङ्कार गुरुकुल के ऐसे प्रतिभासम्पन्न विद्वानों की श्रेणी में आते हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी से वैदिक ज्ञान-विज्ञान को ऐसी विधाओं को आविष्कृत किया, जो इससे पूर्व लगभग अज्ञात थीं। इसी क्रम में आपने ‘वैदिक-स्वप्न-विज्ञान’, ‘ऋषि-रहस्य’ नामक ग्रन्थों को मूर्तरूप प्रदान किया। उनकी लेखनी निरन्तर चलती रही, उससे जो अवदान प्राप्त हुआ. वह आगे आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करता रहे, इस उद्देश्य से ‘वेद-विमर्श’ नामक ग्रन्थ का पुनः प्रकाशन कराया जा रहा है। इस ग्रन्थ में वेदान्तर्गत विविध विषयों, समस्याओं आदि का सूक्ष्म विवेचन प्रस्तुत किया गया है।

इससे जहाँ बेद के छात्र लाभान्वित होंगे, वहीं वेद के क्षेत्र में गहन अनुसन्धान करने की इच्छा करते हैं. उनका पथ भी प्रशस्त होगा। जीवन के लिये बहुमूल्य विधा का वेद में से अवगाहन करके नवनीत के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने वाले इस मनीषी को मैं अपने श्रद्धासुमन समर्पित करता है। माननीय कुलाधिपति पं० सुदर्शन शर्मा, विश्वविद्यालय प्रशासन तथा समस्त गुरुकुल परिवार वेद और उसको लेकर हुए ऐसे कार्य जो आज अप्राप्य है, उनके प्रकाशन के लिये कृतसंकल्प है। इसी श्रृंखला में वो पं० भगवदत्त वेदालङ्कार निर्मित ‘वेद-विमर्श’ नामक का जो पिछले काफी समय से अप्राप्य चल रहा था, को श्रद्धानन्द-अनुसन्धान-प्रकाशन- केन्द्र से प्रकाशित करते हुए अत्यन्त हर्ष का अनुभव हो रहा है।

विश्वविद्यालय में पिछले कई वर्षों से महर्षि दयानन्दकृत वेदभाष्य के सम्पादन और प्रकाशन का कार्य चल रहा है, यह सारा अध्यवसाय प्रो. ज्ञान प्रकाश शास्त्री के निर्देशन में हो रहा है। अब तक सम्पूर्ण यजुर्वेदभाष्य तीन खण्डों में प्रकाशित हो चुका है, साथ ही ऋग्वेदभाष्य के चतुर्थ मण्डल पर्यन्त सात भाग प्रकाशित होकर आ चुके हैं, शेष कार्य भी प्रगति पर है। हम गत वर्ष पं० भगवद्दत्तकृत ‘वैदिक स्वप्नविज्ञान’ ग्रन्थ को प्रकाशित कर चुके हैं। मैं इस अवसर पर गुणवत्ता पूर्ण सम्पादन के लिये प्रो.ज्ञान प्रकाश शास्त्री, प्रोफेसर श्रद्धानन्द वैदिक शोधसंस्थान, को साधुवाद देता हूँ।

मेरी इच्छा है कि भविष्य में भी गुरुकुल इसी प्रकार के वेद और उससे सम्बन्धित साहित्य का प्रकाशन कराता रहे और हम वेद की सेवा करके अपने जीवन को धन्य बना सकें, यही मेरी प्रभु से प्रार्थना है।

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