परन्तु इस पर भी भारतीय साहित्य तथा इतिहास के ठेकेदार भी प्रायः यूरोपियन कहे जाने वाले वेद के विद्वानों का अनुकरण कर रहे प्रतीत होते हैं । वैसे वे भारतीय विद्वान् जो यूरोपीयन इंडोलोजिस्टों के कठोर आलोचक हैं , वे भी वेद का जो तिथि – काल उपस्थित करते हैं , वह भी त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है । मध्यकालीन भारतीय विद्वान् , हमारा अभिप्राय है सायण , महीधर आदि भाष्यकार भी तिथि – काल के विषय में या तो मौन हैं अथवा कुछ ऐसे विचार प्रकट कर गये हैं । जो उपस्थित प्रमाणों से सिद्ध नहीं होते । इस कारण हमने इस विषय पर अपने कुछ विचार उपस्थित करने का साहस किया है । अपने विचारों की पुष्टि के लिए युक्ति और प्रमाण भी देने का यत्न किया है ।
फिर भी हम दावा नहीं कर सकते कि जो कुछ हमने कहा है वह ध्रुव सत्य ही होगा । विषय इतना गम्भीर और दुरूह है कि हम अन्तिम सत्य तक पहुँच गये हैं . ऐसा नहीं कह सकते । अपने सीमित साधनों और ज्ञान से जो कुछ और जितना कुछ हम समझ सके हैं , वह लिख रहे हैं । महर्षि स्वामी दयानन्द ने लिखा है कि ऋक् नाम है स्तुति का स्तुति का अभिप्राय है किसी के गुण , कर्म और स्वभाव का वर्णन । अतः ऋचाएँ , पृथ्वी से लेकर परमात्मा तक के सब पदार्थों के गुण , कर्म और स्वभाव का वर्णन करती हैं । सरल भाषा में यह कहा जा सकता है कि वेद ज्ञान और विज्ञान के ग्रन्थ है । ज्ञान से अभिप्राय है अनादि मूल तत्त्वों का वर्णन और उनका परस्पर सम्बन्ध और विज्ञान है इस कार्य – जगत् के विभिन्न पदार्थों का वर्णन ये दोनों ही बातें वेद में है ऐसा महर्षि स्वामी दयानंद मानते थे और हम भी ऐसा ही मानते हैं
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