Srishti Utpatti सृष्टि उत्पत्ति
₹550.00
AUTHOR: | Dr. SHIV PRAKASH AGGARWAL |
SUBJECT: | Srishti Utpatti – सृष्टि उत्पत्ति(वैदिक, पौराणिक एवं ज्योतिष मान्यताओ पर वैज्ञानिक चिन्तन) |
CATEGORY: | Research |
LANGUAGE: | Sanaskrit – Hindi |
EDITION: | 2023 |
PAGES: | N/A |
PACKING: | Hard Cover |
WEIGHT: | 350 GRMS |
पुस्तक परिचय
इस पुस्तक में एक चिन्तन प्रस्तुत किया गया है जिसमें चारों वेदों में जो सर्व प्राचीन हैं, पुराण जो 600 वर्षों से 5000 वर्षों प्राचीन हैं तथा ज्योतिष शास्त्र जो वैदिक काल से ही प्रचलित हैं; की सृष्टि उत्पत्ति परिकल्पना आधुनिक विज्ञान जो लगभग 500 वर्ष पूर्व यूरोप तथा अमेरिका से प्रारम्भ होकर अन्य देशों में विकसित हुआ, के अनुसार की गई है। आधुनिक विज्ञान को प्रथम विचार वैदिक ज्ञान से ही मिला है।
इस पुस्तक को 6 अध्यायों में विभक्त किया गया है। भूमिका नामक प्रथम अध्याय में वेदों, पुराणों तथा ज्योतिष का संक्षिप्त परिचय देते हुए वैदिक ज्ञान व अन्य के बीच संबन्ध स्थापित करने पर चिन्तन प्रस्तुत किया है।
अध्याय 2 से अध्याय 6 पर्यन्त वेदों, पुराणों तथा ज्योतिष की अवधारणों का संकलन करते हुए उन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विवेचित किया गया है।
द्वितीय अध्याय में सृष्टि के आदि में स्थिति की परिकल्पना वैदिक वाङ्मय के अनुसार, शिवपुराण के अनुसार, ज्योतिष शास्त्र व आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में विवेचना की गई है।
तृतीय अध्याय में ईश्वर का स्वरूप वैदिक वाङ्मय के अनुसार महर्षि दयानन्द के विचार सहित ईश्वर के 101 नामों की विवेचना, शिवपुराण में ईश्वर का स्वरूप, ज्योतिष शास्त्र में ईश्वर व आधुनिक विज्ञान में इस विषय की व्याख्या करते हुए विवेचना की है।
चतुर्थ अध्याय में वैदिक वाङ्मय में सृष्टि उत्पत्ति में स्वामी दयानन्द के विचार वैदिक मन्त्रों की व्याख्या, निर्माणकर्मी शक्ति, माया, आपः, आपः लोकों के सन्तुलन में हेतुभूत, बृहत अग्निपिण्ड की उत्पत्ति, अश्व सूक्त की ऋचाओं की व्याख्या, वज्ञ का आधारभूत द्रव्य, वज्र सूर्य की तरह प्रज्ज्वलित था
हिरण्यगर्भः का विवरण, महान् ज्योतिर्मय पिण्ड की उत्पत्ति, आद्य विस्फोट, महाग्नि ताण्डव (Big Bang) का कारण वज्रपात तथा शिवपुराण के अनुसार जल की उत्पत्ति, ब्रह्मा की उत्पत्ति, शिव तथा ब्रह्मा, विष्णु व रुद्र के विषय में, निर्जीव अणु के दो भाग, गायत्री आदि मंत्र व वेद ज्ञान, स्वेत कल्प, अण्ड से ब्रह्माण्ड की रचना, सृष्टि रचना, जीवन उत्पत्ति, जीव रचना, अर्धनारीश्वर ज्योतिष शास्त्र व आधुनिक विज्ञान के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति पर विवेचना ।
पंचम अध्याय में पुनर्जन्म एवं कर्म फल विधान पर तुलनात्मक चर्चा व षष्ठ अध्याय में वैदिक वाङ्मय के अनुसार शिव पुराण के अनुसार ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार व आधुनिक विज्ञान के अनुसार काल गणना तथा विवेचना की है।
यह पुस्तक विभिन्न परिकल्पनओं एवं दर्शन का अध्ययन है जिसमें धर्म ग्रन्थों की परिकल्पनायें, समानतायें एवं सूक्ष्म विरोधाभास दशयि गये है।
प्राक्कथन
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूर्ण करने के उपरान्त अपने तकनीकी तथा प्रवन्धन कार्य का प्रारम्भ करने पर वेदों के आशिक ज्ञान से ऐसा प्रतीत हुआ कि वेदों में जीवन शैली, सामाजिक तन्त्र, राष्ट्रीय प्रबन्धन, सृष्टि उत्पत्ति, वैज्ञानिक ज्ञान व प्रबंधन ज्ञान भरा पड़ा है। जैसे जैसे विज्ञान व अभियान्त्रिकी की दिशा में आगे बढ़ता गया, इस सत्य की प्रमुखता बढ़ती गयी।
तकनीकी तथा प्रबन्धन कार्य से सेवा निवृत्ति के बाद वेदाध्ययन की ओर आगे बढ़ा तथा इस विचार को मूर्त रूप पाया।
इस पुस्तक में एक चिन्तन प्रस्तुत किया गया है जिसमें चारों वेदों में जो सर्व वर्ष प्राचीन हैं, पुराण जो 600 वर्षों से 5000 वर्ष प्राचीन हैं तथा ज्योतिष शास्त्र जो वैदिक काल से ही प्रचलित हैं की सृष्टि उत्पत्ति परिकल्पना आधुनिक वैज्ञानिक जो लगभग 500 वर्ष पूर्व यूरोप तथा अमेरिका से प्रारम्भ होकर अन्य देशों में विकिसित हुआ, के अनुसार की गई है। आधुनिक विज्ञान को प्रथम विचार वैदिक ज्ञान से ही मिला है।
इस पुस्तक को 6 अध्यायों में विभक्त किया गया है। भूमिका नामक प्रथम अध्याय में वेदों, पुराणों तथा ज्योतिष का संक्षिप्त परिचय देते हुए वैदिक ज्ञान व अन्य के बीच संबन्ध स्थापित करने पर चिन्तन प्रस्तुत किया है।
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