भूमिका
श्रीमदभगवदगीता का विश्व साहित्य में अद्वितीय स्थान है। हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता भगवान अनन्त हैं फिर उनके श्रीमुख से निकली गीता ज्ञान गंगा के भावों का अन्त आ ही कैसे सकता है? इस ग्रन्थ का जितनी बार अध्ययन किया जाये उतनी ही बार कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है। इसीलिये अनेक विद्वानों, आचार्यों ने श्रीगीता जी की अलग-अलग व्याख्याएँ तथा टीकाएँ लिखी है किन्त फिर भी वे श्रीगीता जी के ज्ञान को पूरी तरह से प्रकट नहीं कर पाये। क्योंकि सीमित के द्वारा असीम का पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता, मनुष्य की बुद्धि सीमित है और भगवान् असीम ।
श्रीमदभगवदगीता आध्यात्मिक यौगिक व सांसारिक ग्रन्थ है। जिसमें वेदों उपनिषदों पराणों का निचोड व सारतत्त्व समाहित है।
यह श्रीमद्भगवद्गीता का यौगिक अध्ययन ग्रन्थ जीवन की सम्पूर्ण जटिलतम समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने के कारण स्वतः ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित करता है। आज के इस भाग-दौड भरे युग में हर व्यक्ति किसी न किसी मानसिक उलझन में है, जो अर्जुन के समान किंकर्त्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है।
वास्तव में भगवान ने अर्जन को निमित्त बनाकर गीतारूपी ज्ञान का उपदेश मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए ही दिया है। इस ग्रन्थ को पढकर प्रत्येक मनुष्य अपनी जीवन-यात्रा को समुचित ढंग से तय कर सकता है एवं इस लोक में सुख और शान्ति का अनुभव करता हुआ अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। प्रस्तुत श्रीमद्भगवद्गीता का यौगिक अध्ययन ग्रन्थ के द्वारा दी गई शिक्षा को अपनाकर मानव उच्च जीवन आदर्श स्थापित करते हुए मानवेतर स्थिति में पहुँच सकता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता का यौगिक अध्ययन श्रीगीता अमृत का पान करने वाले पिपासुओं के साथ-साथ योग के क्षेत्र में अध्ययनरत उन सभी छात्र/छात्राओं के लिए उपयोगी है जो विश्वविद्यालयों / महाविद्यालयों द्वारा संचालित किये जा रहे है स्नातक एवं परास्नातक (एम.ए. योग / पी.जी. डिप्लोमा योग) पाठ्यक्रम में अध्ययनरत है तथा योग और दर्शन के क्षेत्र में शोधकार्य में संलग्न हैं।
ग्रन्थ की रचना स्नातक एवं परास्नातक (एम.ए. योग / पी.जी. डिप्लोमा योग) के संशोधित पाठ्यक्रम के अनुरूप की गई है। ग्रन्थ को सरलता से बोधगम्य बनाने के लिए क्रमबद्ध ढंग से विभिन्न
विद्वानों के विचारों को संग्रहित किया गया है। छात्रों को किसी भी प्रश्न का उत्तर अन्यत्र खोजना न पडे. इस बात का ध्यान रखा गया है। हम उन सभी विद्वत्जनों के चरणकमलों में नतमस्तक हैं, जिनकी विद्वतापूर्ण व्याख्यात्मक शैली को अपनाकर यह छात्रोपयोगी ग्रन्थ पूर्ण किया गया है। इस ग्रन्थ में स्वामी रामसुखदास जी, श्री जयदयाल गोयन्दका, श्री सत्यदेव सिद्धान्तालंकार, श्री नन्दलाल दशोरा जी के विचार एवं अन्य ग्रन्थों का सहारा लेकर लेखक द्वारा इसे पूर्ण किया गया है।
इस ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता का यौगिक अध्ययन की विषय वस्तु के प्रथम अध्याय में श्रीमद्भगवद्गीता का परिचय, आधुनिक जीवन में गीता की उपादेयता, आत्मा की अमरता, योग के विभिन्न लक्षण, स्थितप्रज्ञता, सांख्ययोग का स्वरूप, अनासक्त भाव से कर्म का सिद्धान्त, यज्ञादि कर्म करने की आवश्यकता, लोक-संग्रह, अज्ञानी व ज्ञानवान् के लक्षण, रागद्वेष रहित कर्म करने की प्रेरणा पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय अध्याय में कर्म के प्रकार, योगी-महापुरूषों का आचरण, यज्ञ का स्वरूप और उसका योग से सम्बन्ध, साधना की विधि, ज्ञान का महत्त्व, संन्यास का स्वरूप, संन्यास में कर्म की उपादेयता, संन्यास के लाभ, ज्ञान और संन्यास का उल्लेख किया गया है।
तृतीय अध्याय में ध्यान में कर्म की भूमिका योगारूढ़ साधक, योगी के लक्षण, योगी का आहार-विहार, योग सिद्धि के उपाय, मनोनिग्रह के उपाय, माया का स्वरूप, भक्त एवं भक्ति के प्रकार, ब्रह्म-आध्यात्म-कर्म-अधिभूत- अधियज्ञ का स्वरूप तथा शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय की चर्चा की गई है। चतुर्थ अध्याय में सकाम और निष्काम उपासना का फल, भगवान् की विभूति और योगशक्ति, ईश्वर का विराट स्वरूप, निष्काम कर्मयोग, भक्ति योग, ज्ञान योग पर प्रकाश डालते हुए पंचम अध्याय में क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ योग, सत्त्व-रज-तम गुणों के विषय, भगवत् प्राप्ति के उपाय, संसाररूपी वृक्ष का कथन, क्षर-अक्षर वर्णन, दैवी और आसुरी सम्पदा और अन्त में त्रिविध श्रद्धा का वर्णन किया गया है।
छात्रों व अन्य पाठकों के लिए इस श्रीमद्भगवद्गीता का यौगिक अध्ययन ग्रन्थ को बोधगम्य बनाने का मेरा यह एक छोटा सा प्रयास है। आशा है कि सुधीजन मेरी त्रुटि को क्षमा करते हुए अपने विचार प्रस्तुत करने की कृपा करेंगे, जिससे यह ग्रन्थ और अधिक सरल एवं बोधगम्य हो सकें।
धन्यवाद !
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