शाश्वत प्रज्ञा
Shashwat Pragya

350.00

AUTHOR: Acharya Balkrishna (आचार्य बालकृष्ण)
SUBJECT: Shaswat Pargya | शाश्वत प्रज्ञा
CATEGORY: Vedic Literature
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2021
PAGES: 236
ISBN:  9788195428151
PACKING: Paperback
WEIGHT: 337 g.
Description

ओ३म्

आत्म निवेदन

युगपुरुष, योगपुरुष, युगनिर्माता, युगदृष्टा परम पावनी ऋषि परम्परा के गौरव, नूतन भारत के शिल्पी, बहुआयामी प्रतिभाओं के सम्राट, जिन्होंने गुरुता, दिव्यता, सौम्यता, श्रेष्ठता, वैज्ञानिकता, करुणा, प्रेम, सत्य, ज्ञान, सेवा को अपने जीवन में उतारा है, जो एक प्रामाणिक आचार्य, महान् लेखक, ऋषिधर्म के साक्षात विग्रह तथा समर्थ एवं ब्रह्मनिष्ठ गुरु हैं, शाश्वत के प्रतिनिधि हैं। उनकी शाश्वत प्रज्ञा से निःसृत यह शाश्वत ज्ञान जो पिछले 40 वर्षों से अजस्रधारा के रूप में इस धरा धाम पर प्रवाहित हो रहा है

उसमें से कण-भर जो प्रतिमाह योग सन्देश पत्रिका के प्रथम पृष्ठ पर आप पढ़ते हैं, उसे एक जगह एकत्रित करके शाश्वत सत्य में संकलित करने का एक लघु प्रयास हमारे बहुत ही विनम्र एवं पुरुषार्थी आचार्य श्रीकान्त जी ने किया है, जो हम सबके लिए गुरुदेव के एक दिव्य मधुर प्रसाद के रूप में उपस्थित हैं। इस पुस्तक में गुरुदेव के आध्यात्मिक, धार्मिक, वैज्ञानिक, आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, पारिवारिक, नैतिक, व्यावहारिक और एक वाक्य में कहें तो जीवन के उन समग्र पहलुओं के शाश्वत सत्यों का समावेश है। वे स्वयं चेतना के सर्वोच्च धरातल पर जीते हैं और हमारे जैसे मध्यम स्तर में जीने वाले आत्माओं का भी उसी धरातल आरोहण करवाना चाहते हैं।

यह भी एक शाश्वत सत्य है कि हम यदि एक ऐसे परम पराक्रमी, श्रोत्रिय व ब्रह्मनिष्ठ गुरु की शरण (गर्भ) में आये हैं तो अनुमान-प्रमाण से पता लगता है कि भगवान् के दिव्य विधान के अनुसार यह हमारे पिछले कई जन्मों के पुण्य कर्मों का फल उद्घटित हुआ है। ऐसे गुरु की शाश्वत प्रज्ञा का आश्रय लेकर हमारा दिव्य जन्म प्रकट हो, हम इस जन्म में द्विज बनकर पूज्य स्वामी जी महाराज का अनुसरण करें। इस पुस्तक में परम पूज्य गुरुदेव ने अत्यन्त गम्भीर व चिर विवादित शाश्वत सत्यों को अत्यन्त सरलता व व्यवहारिक रूप से समझाया है, जिसे एक सामान्य ज्ञान से युक्त व्यक्ति भी बड़ी सहजता से समझ सकता है।

उदाहरण के लिए मुक्ति का विषय जो प्रत्येक मतावलम्बी अपने जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मानता है, उसे भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों ने अत्यन्त जटिल व अति अल्प व्यक्तियों की पहुँच का विषय बताया है। इतने गम्भीर सत्य को परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने इतना व्यावहारिक व सरल बना दिया कि प्रत्येक व्यक्ति उसे आत्मसात कर सकता है, उन्होंने बताया कि हमें मस्तिष्क में अज्ञान से, हृदय में अश्रद्धा से तथा हाथों में अकर्मण्यता से मुक्त होना है तथा दिव्य ज्ञान, दिव्य श्रद्धा व अखण्ड प्रचण्ड पुरुषार्थ से युक्त होना है, यही जीवन मुक्ति है। इसी विषय पर अनेक अमूल्य शब्दों में यह शाश्वत ज्ञान प्रस्तुत किया है जो आप सभी सुधीजनों की सेवा में प्रस्तुत है।

हम सब इस जन्म में दिव्य बनकर सूर्य से प्रज्ज्वलित दीपक की भाँति चमचमाते हुए अपने अज्ञान का नाश करके अपने गुरु की शिक्षाओं, सिद्धान्तों व सेवाओं का विस्तार करने में एक निमित्त बनकर अपने जीवन को यशस्वी बनायें। मुझे लगता है कि प्रतिदिन इन शाश्वत सत्यों के सरल अभ्यास से साधना और सेवा में संतुलन बनाने का पर्याप्त बल हमें उपलब्ध होगा। यदि हम जीवन में समस्याएं देखने लगे तो हर कदम पर पूरा संसार समस्या बनकर खड़ा हो जायेगा और यदि समाधान ढूँढने लगे तो अनन्त समाधान हमारे समक्ष उपस्थित होने लगते हैं, लेकिन यह तभी सम्भव हो पाता है

जब किसी समर्थ गुरु के आनुभूतिक सत्यों का आलम्बन लेकर अत्यन्त प्रीति, पूर्ण विवेक, नम्रता व निरभिमानिता से युक्त होकर गुरु निर्देश का पालन करते हुए सात्विक व सहज जीवन जीने का अभ्यास करें। इस अमूल्य ज्ञानकोष का अति उदारता से अपने जीवन में प्रयोग करें। हम सब श्रद्धेय स्वामी जी व पूज्य आचार्यश्री के प्रतिरूप व यन्त्र बनकर उनके संकल्पों को धरा पर प्रतिष्ठापित करने के लिए साधना व सेवा पथ पर चलते हुए आत्मकल्याण व विश्वकल्याण में अपने जीवन की आहुतियाँ समर्पित करें। इसी आत्मनिवेदन के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूँ तथा परम पूज्य गुरुदेव एवं पूज्य आचार्यश्री के चरण कमलों में अपना साष्टांग प्रणाम समर्पित करती हूँ।

– साध्वी देवप्रिया

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