सत्यार्थ सुधा
Satyartha Sudha

150.00

AUTHOR: Dr. Dharamvir (डॉ. धर्मवीर)
SUBJECT: Satyartha Sudha (The Top Arya – Scholarly Articles on Each of Satyarth Prakash’s Stories) | सत्यार्थ सुधा (सत्यार्थप्रकाश के प्रत्येक समुल्लास पर शीर्षस्थ आर्य – विद्वानों के लेख)
CATEGORY: Aryasamaj
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2021
PAGES: 280
BINDING: Paper Back
WEIGHT: 285 g.
Description

प्रकाशकीय

सत्यार्थ-प्रवचनम्

सत्यार्थ सुधा (सत्यार्थप्रकाश के प्रत्येक समुल्लास पर शीर्षस्थ आर्य – विद्वानों के लेख) | Satyartha Sudha (The Top Arya – Scholarly Articles on Each of Satyarth Prakash’s Stories)

महर्षि दयानन्द के तेजोदीप्त जीवन की तरह ही उनकी रचना भी है-सत्यार्थप्रकाश। यह बात डंके की चोट पर कही जा सकती है कि महर्षि से पूर्व इस प्रकार का कोई ग्रन्थ विश्व के साहित्य में नहीं पाया जाता जो एक-साथ ही धर्म, समाज, अध्यात्म, राजनीति, दर्शन और समकालीन मत-मतान्तरों के सभी पक्षों का प्रामाणिकतया स्पर्श करता हो। यह ग्रन्थरत्न महर्षि की विमल मेधा, घोर तपश्चर्या, दीर्घकालीन चिन्तन, दृढ़ ईश्वरभक्ति, क्रान्तदृष्टि और प्राणिमात्र के प्रति उनकी करुणार्द्र सद्भावना का प्रतिफल है।

इस ग्रन्थ के लेखन काल में महर्षि ग्रन्थों का संग्रह लेकर नहीं चलते थे, पुनरपि इसमें विभिन्न शास्त्रों, वेदों, पुराणों, स्मृतियो, उपनिषदों इत्यादि के कुल मिलाकर सहस्रों प्रमाण उद्धृत हैं। यह महर्षि की अद्भुत स्मरणशक्ति का चमत्कार ही कहा जाएगा। सहस्त्रों प्रमाणों से पुष्ट, वैदिक सिद्धान्तों की प्रहेलिकाओं को सुलझाता हुआ और धर्म व अध्यात्म के ऋजुमार्ग को सहजता से प्रशस्त करता यह अमूल्य ग्रन्थ महर्षि ने लगभग साढ़े तीन मास की अवधि में लिखवा दिया।

इसे एक फक्कड़ योगी, भ्रमणशील यतिराज-परिव्राजक की अलौकिक प्रतिभा, आर्षमेधा, दिव्य धारणाशक्ति का चमत्कार ही कहना चाहिए। नित्य वैदिक सिद्धान्तों पर आधारित एवं मानवमात्र के लिए परमोपयोगी यह ग्रन्थ आर्यों के लिए प्राचीन कल्पसूत्रान्तर्गत धर्मसूत्र ग्रन्थों के तुल्य ही है। सत्यार्थप्रकाश के द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ और दशम समुल्लास इसकी धर्मसूत्रता के प्रबल प्रमाण हैं। इस प्रकार यह ऋषिप्रणीत ग्रन्थों के समान ही प्रामाणिक ग्रन्थ है। महर्षि के जीवनकाल में ही विपक्षियों ने इस ग्रन्थ पर आक्षेप प्रारम्भ कर दिए थे, जो उनके देहावसान के पश्चात् भी चलते रहे, अद्ययावत् भी चल रहे हैं।

किन्तु महर्षि के विद्वान् अनुयायियों और भक्त मण्डली ने सारे आक्षेपों के यथोचित उत्तर देकर प्रतिपक्षियों के मुँह बन्द कर दिए। सत्य अर्थ का प्रकाश करनेहारे इस ग्रन्थ के प्रत्येक सम्-उल्लास पर आर्यविद्वानों ने विशेष लेख और भाष्य रचकर इसकी प्रामाणिकता को सिद्ध करने का सफल प्रयास समय-समय पर किया। ऐसा ही प्रयत्न पंजाब आर्य प्रतिनिधि सभा की साप्ताहिक पत्रिका ‘आर्योदय’ ने संवत् २०२० वि. में किया जब उसने सत्यार्थप्रकाश के विभिन्न विषयों पर आर्यसमाज के दिग्गज विद्वानों और विदुषियों से साग्रह लेख लिखवाकर विषेशांक के रूप में छपवाए।

सम्पादकाचार्य पं. भारतेन्द्रनाथ के सम्पादकीय ‘अपनी बात’ के साथ यह विशेषांक दो खण्डों में छपा। पत्रिका के वरिष्ठ सम्पादक आचार्य रघुवीर सिंह शास्त्री थे। आर्यजनता ने इस विशेषांक के लेखों का ऐसा हार्दिक स्वागत किया कि सात हजार प्रतियाँ भी कम पड़ गई थी।

उक्त विशेषांक के सत्यार्थप्रकाश विषयक लेखों से इतर अन्य लेखों के सार्वकालिक महत्त्व को देखते हुए ‘परोपकारी’ ने अपने पिछले अंकों में उसमें से कुछ लेखों को क्रमशः अनेक अंकों में छापा और अब सुधी पाठकों की इच्छा के अनुरूप उनको पुस्तकाकार रूप में सभा की ओर से प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा है, सुविज्ञ पाठक इन निबन्धों से लाभ उठाएँगे और अपने पूर्वज आर्यपुरुषों के श्रम को जानकर आह्लादित होंगे।

Additional information
Weight 285 g
Author

Language

Reviews (0)

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “सत्यार्थ सुधा
Satyartha Sudha”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About Dr. Dharamvir
सारस्वत पुत्र आचार्य धर्मवीर जी महर्षि दयानन्द सरस्वती की उत्तराधिकारिणी 'परोपकारिणी सभा' अजमेर के यशस्वी प्रधान थे। परोपकारिणी सभा के मुख-पत्र एवं आर्यसमाज की अग्रणी पत्रिका 'परोपकारी' में आपके द्वारा लिखे गये सम्पादकीय राष्ट्रीय, सामाजिक, दार्शनिक व आध्यात्मिक विषयों पर सटीक चिन्तन प्रदान करते रहे हैं। आप आर्यसमाज के दिग्गज नेता, वेदों के मर्मज्ञ एवं प्रखर राष्ट्रवादी थे। महर्षि दयानन्द के विचारों के सशक्त व्याख्याता ही नहीं अपितु वेदों के विरुद्ध किसी भी विचार का सप्रमाण उत्तर देना आपकी अनुपम विशेषता थी। आपका जन्म महाराष्ट्र के उदगीर में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा एवं व्याकरण की शिक्षा गुरुकुल झज्जर में हुई। पश्चात् गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय से स्नातक एवं स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। कानपुर विश्वविद्यालय से आयुर्वेदाचार्य (B.A.M.S.) प्रथम श्रेणी में किया। काँगड़ी विश्वविद्यालय में चरक संहिता का अध्यापन किया। पंजाब विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। १९७४ से २००६ तक डी.ए.वी. कॉलेज, अजमेर के संस्कृत-विभागाध्यक्ष के पद पर रहते हुये अध्यापन कार्य किया। ज्योतिपुञ्ज आचार्य धर्मवीर जी के निर्देशन में अनेकशः छात्र/छात्राओं ने शोधकार्य पूर्ण किया है। विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र लिखकर प्रबुद्धचेता आचार्य धर्मवीर जी ने वैदिक संस्कृति के चिन्तन की श्रीवृद्धि की है, जो विद्वानों के लिये नवीन आलोक सिद्ध हुआ है। आप ही के सत्प्रयासों से विश्वविद्यालयों में दयानन्द शोधपीठ की स्थापना हुई। १९८३ से आजीवन परोपकारिणी सभा में विभिन्न पदों पर रहते हुए आपने भारतीय संस्कृति, वेद, गुरुकुल परम्परा एवं राष्ट्रीय विचारों को जनमानस तक पहुँचाने का कार्य किया। आस्था, आस्था भजन एवं वैदिक चैनल पर आपकी 'वेद-विज्ञान' एवं 'उपनिषद् सुधा' की व्याख्यान श्रृंखला से वेद एवं उपनिषद् घर-घर तक पहुँचे। आचार्य धर्मवीर जी ने वैदिक साहित्य के अलभ्य एवं मूल्यवान् ग्रन्थों का अंकरूपण (डिजिटलीकरण) का अद्वितीय कार्य किया है। विचारक के रूप में, वेदवेत्ता, राष्ट्रभक्त, निडर-लेखक, प्रखर वक्ता, अद्वितीय विद्वान् एवं आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में उनका योगदान स्मरणीय है।
Shipping & Delivery