प्रकाशकीय
सत्यार्थ-प्रवचनम्
सत्यार्थ सुधा (सत्यार्थप्रकाश के प्रत्येक समुल्लास पर शीर्षस्थ आर्य – विद्वानों के लेख) | Satyartha Sudha (The Top Arya – Scholarly Articles on Each of Satyarth Prakash’s Stories)
महर्षि दयानन्द के तेजोदीप्त जीवन की तरह ही उनकी रचना भी है-सत्यार्थप्रकाश। यह बात डंके की चोट पर कही जा सकती है कि महर्षि से पूर्व इस प्रकार का कोई ग्रन्थ विश्व के साहित्य में नहीं पाया जाता जो एक-साथ ही धर्म, समाज, अध्यात्म, राजनीति, दर्शन और समकालीन मत-मतान्तरों के सभी पक्षों का प्रामाणिकतया स्पर्श करता हो। यह ग्रन्थरत्न महर्षि की विमल मेधा, घोर तपश्चर्या, दीर्घकालीन चिन्तन, दृढ़ ईश्वरभक्ति, क्रान्तदृष्टि और प्राणिमात्र के प्रति उनकी करुणार्द्र सद्भावना का प्रतिफल है।
इस ग्रन्थ के लेखन काल में महर्षि ग्रन्थों का संग्रह लेकर नहीं चलते थे, पुनरपि इसमें विभिन्न शास्त्रों, वेदों, पुराणों, स्मृतियो, उपनिषदों इत्यादि के कुल मिलाकर सहस्रों प्रमाण उद्धृत हैं। यह महर्षि की अद्भुत स्मरणशक्ति का चमत्कार ही कहा जाएगा। सहस्त्रों प्रमाणों से पुष्ट, वैदिक सिद्धान्तों की प्रहेलिकाओं को सुलझाता हुआ और धर्म व अध्यात्म के ऋजुमार्ग को सहजता से प्रशस्त करता यह अमूल्य ग्रन्थ महर्षि ने लगभग साढ़े तीन मास की अवधि में लिखवा दिया।
इसे एक फक्कड़ योगी, भ्रमणशील यतिराज-परिव्राजक की अलौकिक प्रतिभा, आर्षमेधा, दिव्य धारणाशक्ति का चमत्कार ही कहना चाहिए। नित्य वैदिक सिद्धान्तों पर आधारित एवं मानवमात्र के लिए परमोपयोगी यह ग्रन्थ आर्यों के लिए प्राचीन कल्पसूत्रान्तर्गत धर्मसूत्र ग्रन्थों के तुल्य ही है। सत्यार्थप्रकाश के द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ और दशम समुल्लास इसकी धर्मसूत्रता के प्रबल प्रमाण हैं। इस प्रकार यह ऋषिप्रणीत ग्रन्थों के समान ही प्रामाणिक ग्रन्थ है। महर्षि के जीवनकाल में ही विपक्षियों ने इस ग्रन्थ पर आक्षेप प्रारम्भ कर दिए थे, जो उनके देहावसान के पश्चात् भी चलते रहे, अद्ययावत् भी चल रहे हैं।
किन्तु महर्षि के विद्वान् अनुयायियों और भक्त मण्डली ने सारे आक्षेपों के यथोचित उत्तर देकर प्रतिपक्षियों के मुँह बन्द कर दिए। सत्य अर्थ का प्रकाश करनेहारे इस ग्रन्थ के प्रत्येक सम्-उल्लास पर आर्यविद्वानों ने विशेष लेख और भाष्य रचकर इसकी प्रामाणिकता को सिद्ध करने का सफल प्रयास समय-समय पर किया। ऐसा ही प्रयत्न पंजाब आर्य प्रतिनिधि सभा की साप्ताहिक पत्रिका ‘आर्योदय’ ने संवत् २०२० वि. में किया जब उसने सत्यार्थप्रकाश के विभिन्न विषयों पर आर्यसमाज के दिग्गज विद्वानों और विदुषियों से साग्रह लेख लिखवाकर विषेशांक के रूप में छपवाए।
सम्पादकाचार्य पं. भारतेन्द्रनाथ के सम्पादकीय ‘अपनी बात’ के साथ यह विशेषांक दो खण्डों में छपा। पत्रिका के वरिष्ठ सम्पादक आचार्य रघुवीर सिंह शास्त्री थे। आर्यजनता ने इस विशेषांक के लेखों का ऐसा हार्दिक स्वागत किया कि सात हजार प्रतियाँ भी कम पड़ गई थी।
उक्त विशेषांक के सत्यार्थप्रकाश विषयक लेखों से इतर अन्य लेखों के सार्वकालिक महत्त्व को देखते हुए ‘परोपकारी’ ने अपने पिछले अंकों में उसमें से कुछ लेखों को क्रमशः अनेक अंकों में छापा और अब सुधी पाठकों की इच्छा के अनुरूप उनको पुस्तकाकार रूप में सभा की ओर से प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा है, सुविज्ञ पाठक इन निबन्धों से लाभ उठाएँगे और अपने पूर्वज आर्यपुरुषों के श्रम को जानकर आह्लादित होंगे।
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