युग प्रवर्तक ऋषि दयानन्द विक्रम की २० वीं शताब्दी के युगप्रवर्तक भारतीय महापुरुषों में ऋषि दयानन्द का स्थान बहुत ऊँचा है ।
भारत जैसे रूढ़िवादी पद दलित घोर पिछड़े हुए देश को विचार स्वातन्त्र्य और आत्मसम्मान की गौरवमयी भावना से भरकर स्वतन्त्रता के पथ पर अग्रसर करने वालों में वे अग्रणी थे । उन्होंने आसेतु – हिमाचल प्रदेश को अपने भविधान्त प्रचार , भाषण और लेखन द्वारा हिला दिया । महर्षि का जन्म काठियावाड़ प्रान्त के मोरवी प्रदेशान्तर्गत टङ्कारा नामक ग्राम में सं ० १८८१ में हुआ था । उनके पिता कर्शन जी तिवारी एक सम्पन्न प्रौर सम्भ्रान्त व्यक्ति थे ।
भगवान् बुद्ध की भांति वे भी युवावस्था के प्रारम्भ में ही अमरत्व और सच्चे शिव की खोज में घर से निकल पड़े ।उसकी प्राप्ति के लिये संवत् 1901 – 1920 तक प्राय : बीस वर्ष हिमाच्छादित दुर्लङ्घ्य पर्वत शिखरों , बीहड़ वन प्रान्तों और तीर्थों में भ्रमण करते रहे । इस विशाल भ्रमण में उन्हें भारत के कोने – कोने में जाने और सघन निर्धन , शिक्षित प्रशिक्षित तथा शज्जन -दुर्जन प्रत्येक प्रकार के व्यक्तियों से मिलने और उन्हें वास्तविक रूप में देखने का अवसर मिला । इसीलिये ऋषि दयानन्द विदेशी साम्राज्य विरोधी विचारधारा को जन्म देने में समर्थ हो सके और तत्कालीन भारतीय जनता की आशा अभिलाषाघ्रों का सफल प्रतिनिधित्व कर सके ।
गुरु विरजानन्द द्वारा संस्कृतवाङ मयरूपी समुद्र के मन्वन से समुप लब्ध श्रार्ष ज्ञान रूपी अमृत को प्राप्त कर ऋषि प्रचार के महान् कार्य क्षेत्र में उतरे , उन्होंने मौन रहने की अपेक्षा सत्य का प्रचार करना श्रेष्ठ समझा ।
Kapil Arya –
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