ऋषि दयानन्द सरस्वती के ग्रन्थों का इतिहास
Rishi Dayanand Sarswati ke Granthon ka Itihas

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350.00

AUTHOR: Yudhishthir Mimansaka
Subject : About Rishi Dayanand’s Books History
LANGUAGE: HINDI
Category : History
Description

युग प्रवर्तक ऋषि दयानन्द विक्रम की २० वीं शताब्दी के युगप्रवर्तक भारतीय महापुरुषों में ऋषि दयानन्द का स्थान बहुत ऊँचा है ।

भारत जैसे रूढ़िवादी पद दलित घोर पिछड़े हुए देश को विचार स्वातन्त्र्य और आत्मसम्मान की गौरवमयी भावना से भरकर स्वतन्त्रता के पथ पर अग्रसर करने वालों में वे अग्रणी थे । उन्होंने आसेतु – हिमाचल प्रदेश को अपने भविधान्त प्रचार , भाषण और लेखन द्वारा हिला दिया । महर्षि का जन्म काठियावाड़ प्रान्त के मोरवी प्रदेशान्तर्गत टङ्कारा नामक ग्राम में सं ० १८८१ में हुआ था । उनके पिता कर्शन जी तिवारी एक सम्पन्न प्रौर सम्भ्रान्त व्यक्ति थे ।

भगवान् बुद्ध की भांति वे भी युवावस्था के प्रारम्भ में ही अमरत्व और सच्चे शिव की खोज में घर से निकल पड़े ।उसकी प्राप्ति के लिये संवत् 1901 – 1920  तक प्राय : बीस वर्ष हिमाच्छादित दुर्लङ्घ्य पर्वत शिखरों , बीहड़ वन प्रान्तों और तीर्थों में भ्रमण करते रहे । इस विशाल भ्रमण में उन्हें भारत के कोने – कोने में जाने और सघन निर्धन , शिक्षित प्रशिक्षित तथा शज्जन -दुर्जन प्रत्येक प्रकार के व्यक्तियों से मिलने और उन्हें वास्तविक रूप में देखने का अवसर मिला । इसीलिये ऋषि दयानन्द विदेशी साम्राज्य विरोधी विचारधारा को जन्म देने में समर्थ हो सके और तत्कालीन भारतीय जनता की आशा अभिलाषाघ्रों का सफल प्रतिनिधित्व कर सके ।

गुरु विरजानन्द द्वारा संस्कृतवाङ मयरूपी समुद्र के मन्वन से समुप लब्ध श्रार्ष ज्ञान रूपी अमृत को प्राप्त कर ऋषि प्रचार के महान् कार्य क्षेत्र में उतरे , उन्होंने मौन रहने की अपेक्षा सत्य का प्रचार करना श्रेष्ठ समझा ।

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Reviews (1)

1 review for ऋषि दयानन्द सरस्वती के ग्रन्थों का इतिहास
Rishi Dayanand Sarswati ke Granthon ka Itihas

  1. Kapil Arya

    इस पुस्तक को पढ़कर मेरे जीवन में बहुत परिवर्तन आया है आर्ष साहित्य वैदिक बुक स्टोर और आप एक बहुत ही श्रेष्ठ कार्य राष्ट्र के लिए कर रहे हैं और हम सब हमेशा आपके साथ हैं आप इसी प्रकार वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार करते रहे आपका धन्यवाद

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