पुस्तक परिचय
इस पुस्तक में एक परिकल्पना प्रस्तुत की गई है जिसमें चारों वेदों व वैदिक साहित्य में नैनो कणों का ज्ञान तथा उसकी तकनीकी के विषय में चर्चा की गई है।
इस पुस्तक को 11 अध्यायों में विभक्त किया गया है। सर्वप्रथम भूमिका में वेदों व वैदिक साहित्य का संक्षिप्त परिचय देते हुए वैदिक ज्ञान व अन्य के बीच संबन्ध स्थापित करने पर चिन्तन प्रस्तुत किया है। नैनो कणों व उनकी सूक्ष्मता को समझाने का प्रयास किया गया है। एक सेन्टीमीटर क्यूब सोने से एक नैनोमीटर परिमाप के एक करोड़ करोड़ करोड़ अर्थात् (10)21 कण बनेंगे। ब्रह्म के स्वरूप तथा आत्मा के स्वरूप पर चर्चा की गई है।
इसके पश्चात् यज्ञ, उसकी प्रक्रिया, यज्ञ में उपयोग होने वाली सामग्री, मन्त्रोच्चारण क्रिया तथा उनके द्वारा भौतिक व मनोवैज्ञानिक लाभ की चर्चा की गयी है। इसी प्रकार आयुर्वेद का विषय लिया गया है और सूक्ष्म कणों के योगदान पर चर्चा है। सूक्ष्म कणों पर आधारित आयुर्वेदिक औषधियां अधिक उपयोगी होती हैं।
वैशेषिक दर्शन तथा उसके दार्शनिक विषय में सूक्ष्म कणों के दर्शन व उनकी उपयोगिता पर चर्चा है।
इस्पात के नैनो कणों की कोटिंग से हथियारों की वजिता बढ़ती है तथा रंगों में सूक्ष्म कणों के उपयोग तथा सूक्ष्म कणों के ज्ञान के आधार पर सांस्कृतिक प्रथाओं पर चर्चा की है। सूक्ष्म कणों पर आधारित आधुनिक विज्ञान व तकनीकी पर विवेचना है और अष्टांग योग की चर्चा करते हुए उससे शरीर पर होनेवाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव के विषय में कहा गया है। यह पुस्तक नैनो तकनीकी से सम्बन्धित विभिन्न परिकल्पनाओं एवं दर्शन का अध्ययन है जिसमें धर्म ग्रन्थों की परिकल्पनायें, समानतायें एवं सूक्ष्म प्रभाव दर्शाये गये हैं।
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