मुग़ल साम्राज्य का क्षय और उसके कारण
Mughal Samrajya Ka Kshay Aur Uske Karan

Original price was: ₹400.00.Current price is: ₹350.00.

AUTHOR: Pandit Indra Vidyavachaspati (पंडित इन्द्र विद्यावाचस्पति)
SUBJECT: Mughal Samrajya Ka Kshay Aur Uske Karan | मुग़ल साम्राज्य का क्षय और उसके कारण
CATEGORY: History
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2022
PAGES: 480
BINDING: Paper Back
WEIGHT: 550 g.
Description

मैंने सन् १९२५ में इस पुस्तक के लिखने का संकल्प किया। विषय का अनुशीलन करने और पहले भाग का ख़ाका तैयार करने में लगभग दो वर्ष लगे। १९२७ के आरम्भ में मैं प्रथम भाग की तैय्यारी कर चुका था। उसी वर्ष लेख का कार्य प्रारम्भ कर दिया, परन्तु अन्य बीसियों तरह की फसावटों के कारण वह बहुत ही सुस्ती से चला। वर्ष भर में केवल तीन परिच्छेद लिखे गये। मैं दिल में डरने लगा कि यदि लेख की गति ऐसी ही रही, तो पहले भाग को समाप्त करने में ही छह-सात वर्ष लग जायेंगे, परन्तु चिन्ताओं को काटने वाला भगवान् है। १३ दिसम्बर, १९२८ के दिन दिल्ली की अदालत ने मुझे साढ़े तीन साल की कठोर जेल का दण्ड दिया। वह दण्ड सेशन की अपील पर केवल ६ मास महज़ क़ैद का ही रह गया, परन्तु इस पुस्तक के प्रथम भाग को समाप्त करने के लिए छह मास भी बहुत थे।

दिल्ली-जेल के अंग्रेज सुपरिटेंडेंट ने मेरी इस प्रार्थना को सहर्ष स्वीकार कर लिया कि मुझे इतिहास लिखने की सामग्री दे दी जाय। इस अनुग्रह के लिए मैं उस भले आदमी का कृतज्ञ हूँ।

जेल में कोई दूसरा कार्य तो था नहीं, मैं था और मेरी कोठरी थी। पढ़ना और लिखना- दो ही काम थे। खूब पढ़ा और खूब लिखा। जिस कार्य को सालों में समाप्त करने की आशंका थी, वह पहला भाग लगभग तीन मास में समाप्त हो गया। मैं १३ दिसम्बर, १९२८ को दिल्ली जेल में गया, और १५ मार्च, १९२९ को फिरोजपुर-जेल की कोठरी नं० १३ में दिन के ११ बजे के लगभग मैंने पहला भाग लिखकर समाप्त कर दिया।

पहला भाग पाठकों की सेवा में समर्पित है। पाठक इसे यह समझकर न पढ़ें कि किसी लेखक की कलम में खुजली पैदा हुई या कोई दूसरी आजीविका न थी, इसलिए किताब ही लिख डाली। यह पुस्तक हृदय में उत्पन्न हुए एक बलबले का परिणाम है। यह गहरे प्रेम और प्रयत्न का फल है। सम्भवतः इसकी समाप्ति में चार पाँच वर्ष लगेंगे। जब तक लेखक इसे समाप्त न कर लेगा, तब तक उसे रात को चैन से नींद न आयेगी। इसे लिखने के लिए पर्याप्त समय न मिलना असम्भव प्रतीत हुआ, तो शायद लेखक फिर एक दो बार सरकार का मेहमान बनने को भी तैय्यार हो जायेगा, परन्तु इस संकल्प को तो पूरा करेगा ही।

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