अपनी बात
कुछ लिखा बालपन में, कुछ लिखा वैराग्य में, कुछ कराया परिस्थितियों ने, कुछ किया चाहत से, कुछ परिस्थितियाँ जगत् की, कुछ अवस्थाएं मन की और कुछ लिखा ज्ञान से। जो अच्छा है वह तो है शास्त्र का, गुरुजनों का, परमात्मा की कृपा का। शब्द कमजोर हो सकता है क्योंकि शिथिलता हमारी है, कमी रह गई होगी शिक्षा पाने में, पर कोई कसर बाकी न छोड़ी किसी ने इस छोटे से जीवन को शिक्षा देने में, जानता हूँ जो अल्पज्ञता है वह मेरी अपनी है।
परमात्मा से प्रकृति तक, व्यक्ति से समष्टि तक, जगत् से जंगल तक, जब-जब जो पाया, जो महसूस किया उसी को शब्दों में व्यक्त करने का ये छोटा सा प्रयास है। कहीं आपके काम आए, तो प्रयास सार्थक, अन्यथा आत्मतोष का आनन्द अपने और अपनों को अवश्य ही प्राप्त होगा क्योंकि शब्द अपने थे और संगृहीत कराने का आग्रह अपनों का था। अपनों की चाहत में बनाया इस ‘मन के मनके’ को अतः यह समर्पित करता हूँ उन्हीं को।
भवदीय,
आचार्य बालकृष्ण
शुभकामना
वेद एवं अधिकांश वैदिक संस्कृत साहित्य काव्यमय है। सम्पूर्ण सृष्टि को भगवान् का काव्य तथा परमेश्वर को कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभूः (यजुर्वेद) वेदों में कवि कहा है। आयुर्वेद एवं ऋषियों की परम्परा के मूर्तरूप दिव्य ज्ञान, अखंड प्रचण्ड पुरुषार्थ या दिव्य कर्म ‘स्वेन क्रूरता संवदेत (ऋग्वेद)’ के उच्च आदर्श में जीने वाले आचार्यश्री में अतुल्य अप्रतिम सामर्थ्य है।
उस सामर्थ्य एवं दिव्य शिव संकल्प को आचार्य जी ने ‘मन के मनके’ में सहज काव्य के रूप में लिखा है। दो दशक से भी अधिक कालखंड के अनुभव व मन के भावों का इसमें अद्भुत व सुन्दर समावेश है। जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूते हुए इन सहज स्फुटित कविताओं से सबको यथायोग्य प्रसन्नता व प्रेरणा आदि मिलेगी, ऐसा मुझे विश्वास है।
आचार्य जी के आयुर्वेद कौशल, प्रबन्धन, पुरुषार्थ एवं विशद कार्यों को मूर्त रूप देने के सामर्थ्य का तो अनुभव पहले से ही लाखों-करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से है ही। इस रचना के प्रकाशन से आचार्य जी के ज्ञानातिरेक व कर्मातिरेक के साथ-साथ भावातिरेक की भी एक सुखद अनुभूति होगी।
योगर्षि स्वामी रामदेव
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