इस महर्षि दयानन्द पर इतिहास बोल पड़ा पुस्तक को क्यों पढ़ें ?
१. यह अपने विषय की पहली मौलिक पुस्तक है।
२. इसमें महर्षि दयानन्द तथा आर्यसमाज की उपलब्धियों तथा इतिहास में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए देश-विदेश से प्राप्त कई दस्तावेज़ों का अनावरण किया गया है।
३. अमेरिका के एक पत्र में आर्यसमाजोदय के काल में जिस भारतीय विचारक पर, सुधारक पर सबसे पहले सचित्र लेख छपा था, वह महर्षि दयानन्द जी ही थे। वह पूरा लेख तथा उसका विवेचन प्रथम बार इसी पुस्तक में छप रहा है।
४. कौन जानता था कि अंग्रेज़ों ने सन् १९०० में ही आर्यसमाज को अंकुरित होते ही कुचलने का दृढ़ निश्चय कर लिया था ? इस विषय का दस्तावेज़ (Document) हमने खोज निकाला है। इसमें इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त करिए। महात्मा मुंशीराम जी ने आश्चर्यजनक साहस से कार्य लेकर आर्यसमाज की कैसे रक्षा की ? इसमें पढ़िये ।
५. जब क्रियाशील समाजों की संख्या मात्र दस-बारह थी महर्षि कैसे समृद्ध विशाल परकीय मतावलम्बी संगठनों पर चाँदापुर में भारी पड़े, ये सप्रमाण तथ्य इस पुस्तक में पहली बार दिये गये हैं।
६. भारत में विद्रोह की आशंका से विदेशी सरकार ने आर्यों का दलन-दमन आरम्भ कर दिया। उस आशंका विषयक दस्तावेज़ का छायाचित्र इसमें पढ़िए। ‘प्रकाश’ तथा महाशय कृष्ण की लण्डन में चर्चा कैसे पहुँची ? ‘प्रकाश’ ने क्यों हड़कम्प मचाया ? पटियाला राजद्रोह अभियोग से बहुत पहले सन् १९०६ के प्रकाश के जोश संचारक मुखपृष्ठ का अलभ्य छाया चित्र इसमें देखिए। इतिहास बोल रहा है ?
७. ‘इतिहास बोल पड़ा’ को पाठक ‘महर्षि दयानन्द सरस्वती-सम्पूर्ण जीवन-चरित्र’ का तीसरा भाग समझें।
प्रकाशकीय
महर्षि दयानन्द द्वारा स्थापित परोपकारिणी सभा धर्म-प्रेमी, इतिहास-प्रेमी और ऋषिभक्त जनता के हाथों में अपने विषय की पहली, अनूठी व मौलिक पुस्तक ‘इतिहास बोल पड़ा’ भेंट करते हुए स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रही है। यह पुस्तक महर्षि दयानन्द पर इतिहास बोल पड़ा राष्ट्रभक्त, देशप्रेमी जनता के लिए भी एक बौद्धिक टॉनिक है। इसको पढ़कर कौन कर्त्तव्यनिष्ठ नागरिक गदगद नहीं होगा।
इसकी सामग्री की खोज, इसके लेखन व प्रकाशन की कहानी बड़ी लम्बी और रोचक है। इस विषय में बहुत कुछ तो आप पुस्तक के लेखक की लेखनी से इस में पढ़ेंगे। अकोला (महाराष्ट्र) में एक धर्मनिष्ठ दृढ़ आर्य परिवार रहता है। वर्षों पहले यह परिवार राजस्थान से चलकर विदर्भ जा बसा। परिवार में मुखिया श्री प्रदीप जी अत्यन्त दर्शनप्रेमी और स्वाध्यायशील आर्यपुरुष हैं। आचार्य उदयवीर जी के गम्भीर साहित्य पर इस व्यवसायी आर्य पुरुष के असाधारण अधिकार को देखकर डॉ० धर्मवीर जी की कोटि का विद्वान् भी मुग्ध रहा। कई वर्ष से मेरा तथा श्री जिज्ञासु जी का भी इस परिवार से घनिष्ठ सम्बन्ध और आना जाना है।
श्री प्रदीप जी का इकलौता युवा पुत्र प्रिय राहुल आर्य भी एक मेधावी कर्मठ आर्यवीर है। सारा परिवार ही सभा से जुड़ा हुआ है। महर्षि दयानन्द सरस्वती सम्पूर्ण जीवन चरित्र के सम्पादन व प्रकाशन के समय स्वतः प्रेरणा से दस्तावेज़ों व अलभ्य सामग्री के खोज में ‘जिज्ञासु’ जी को राहुल जी ने जो सहयोग किया वह इतिहास का विषय बन चुका है। उस कार्य के सम्पन्न होते ही आपने जिज्ञासु जी से “कोई और सेवा ? कोई और कार्य बतायें” रट लगा दी।
अपने पुत्र की इस धुन व लगन को देखकर राहुल जी आर्य की माता श्रीमती पुष्पा जी भी दंग रह गई। महर्षि दयानन्द जी तथा आर्यसमाज से जुड़े ऐसे-ऐसे दस्तावेज़ राहुल जी ने खोज निकाले जिनका मूल्यांकन अब इतिहास के गम्भीर विद्वान् करेंगे। इस परियोजना पर श्री राहुल, उनकी युवा मित्र मण्डली तथा लेखक ने अपने पास से पर्याप्त धन व्यय किया है। समय का मूल्य तो प्रबुद्ध पाठक स्वयं जान लें।
मुनिवर गुरुदत्त की धरती में जन्मे वयोवृद्ध आर्यदानी व आर्य साहित्य प्रेमी श्री रामभज जी मदान दिल्ली भी इन समाचारों को परोपकारी में पढ़कर ईश्वरीय प्रेरणा से मैदान में कूद पड़े। आपने इस पुस्तक के प्रकाशनार्थ जिज्ञासु जी को एक बड़ी राशि भेंट करके अपने कुल का नाम उज्जवल कर दिया ? लेखक ने यह राशि आगे सभा को भेंट कर दी। इस पुस्तक महर्षि दयानन्द पर इतिहास बोल पड़ा को सब बड़ी-बड़ी भाषाओं में अनुवाद करवाकर छपवाया जाएगा।
विस्मृति की परतों के नीचे से मूल्यवान् बौद्धिक सम्पदा की खोज किसी चमत्कार से कम नहीं है। ऋषि दयानन्द प्रथम भारतीय थे जिन पर इस युग में अमरीका में सबसे पहला लेख उनके चित्र सहित छपा। क्या यह कोई साधारण खोज है। लेखक के श्रम, चिन्तन, सूझ व धुन को सारा आर्यजगत् जानता है। सम्पूर्ण आर्य जगत् को इस उपलब्धि पर सभा की ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार हो।
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