उनके ऐतिहासिक उपन्यासों का कथ्य प्राचीन होते हुए भी समकालीन जैसा ही दिखाई देने लगता है । प्रस्तुत खण्ड के उपन्यास ‘ लुढ़कते पत्थर ‘ के अशोक और ‘ पुष्यमित्र ‘ के बृहद्रथ के राज्यों की दुर्बल नीतियाँ , उनके विनाश , राज्यों के पतन और जनता के असन्तोष का कारण बनी थीं । क्या यही कुछ हम आज के राजनैतिक वातावरण में नहीं पाते ? इस दृष्टि से उनके ऐतिहासिक उपन्यासों में प्रस्तुत तथ्य उनके विशेष दृष्टिकोण का एक महत्त्वपूर्ण पहलू हैं । आज भी राज्याधिकारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार , स्वार्थवश पारस्परिक हित – चिन्तन का अभाव , अनीति , अशान्ति और अस्थिरता का साम्राज्य व्याप्त दिखाई देता है । इस उपन्यास के वर्ण्यकाल में तो केवल राजप्रासादों तथा बौद्ध विहारों में ही षड्यन्त्रों की रचना का उल्लेख पाया जाता है , किन्तु आज के वातावरण में तो नगर – नगर में ही नहीं अपितु नगर की प्रत्येक वीथि तथा ग्राम ग्राम में अपने ही प्रकार के षड्यन्त्र रचे जा रहे हैं , कहीं राज्य के विरुद्ध तो कहीं प्रजा के विरुद्ध स्व ० श्री गुरुदत्त ने अपने उपन्यासों के माध्यम से युग के ऐतिहासिक कर्णधारों को अपने वर्ण्यविषय द्वारा प्रमाण – पुष्ट चेतावनी दी है , दुर्बलता की नीति के परित्याग का आह्वान किया है और उपन्यासों के नायकों के चरित्रों द्वारा उचित और उपयुक्त मार्ग को परिलक्षित किया है । उनका प्रत्येक उपन्यास अन्यतम है । समस्या चाहे ऐतिहासिक हो अथवा राजनैतिक या कुछ अन्य , उन सबका समाधान वे अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने में समर्थ रहे हैं । अपने विस्तृत ज्ञान के आधार पर वे विषय का सम्यक् मन्थन कर पाठक के लिए नवनीत प्रस्तुत कर देते हैं । रोचकता उनके उपन्यासों की अन्य विशेषता है
-अशोक कौशिक
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