नम्र निवेदन
वर्तमान समयमें ‘कर्म’ सम्बन्धी कई भ्रम लोगोंमें फैले हुए हैं। इसलिये इसको समझनेकी वर्तमानमें बड़ी आवश्यकता है। हमारे परमश्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने श्रीमद्भगवद्गीताकी ‘साधक-संजीवनी’ हिन्दी-टीकामें इसका बड़े सुन्दर और सरल ढंगसे विवेचन किया है।
उसीको इस पुस्तकके रूपमें अलगसे प्रकाशित किया जा रहा है। प्रत्येक भाई-बहनको यह पुस्तक स्वयं भी पढ़नी चाहिये तथा दूसरोंको भी पढ़नेके लिये प्रेरित करना चाहिये। इस पुस्तकके पढ़नेसे कर्मसे सम्बन्धित अनेक शंकाओंका समाधान हो सकता है।
वैदिक संस्कृति में हमारे कार्यों को गीता प्रेस गोरखपुर के कर्म रहस्य जैसे प्राचीन ग्रंथों की शिक्षाओं के अनुसार कर्म माना जाना चाहिए। कर्म की अवधारणा व्यक्ति के कर्मों और उनके परिणामों के महत्व पर जोर देती है, नैतिक व्यवहार और नैतिक जिम्मेदारी के महत्व को उजागर करती है। अपने कार्यों को कर्म के सिद्धांतों के साथ जोड़कर, हम न केवल अपने आध्यात्मिक विकास में सकारात्मक योगदान देते हैं, बल्कि ब्रह्मांड के सामंजस्य और संतुलन में भी योगदान देते हैं।
कर्म की शिक्षाओं का पालन करने से हमारे कार्यों में जवाबदेही और सजगता की भावना बढ़ती है, जो सत्य, धार्मिकता और करुणा के मूल्यों को बनाए रखने वाली एक सद्गुणी और धार्मिक जीवन शैली को बढ़ावा देती है। संक्षेप में, हमारे दैनिक जीवन में कर्म के सार को एकीकृत करना आत्म-सुधार, सामाजिक कल्याण और आध्यात्मिक ज्ञान की दिशा में एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करता है।
The book Karm Rahasya is published separately by Gita Press Gorakhpur. It delves into the significance of karma in Vedic culture. It is essential for individuals to align their actions with the teachings of this sacred text. Reading Karm Rahasya can offer solutions to various uncertainties related to karma. It is recommended for both personal enlightenment and inspiring others to explore its profound wisdom.
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