हितोपदेश श्री नारायण पंडित
Hitopadesh by Shri Narayan Pandit

175.00

AUTHOR: Shri Narayan Pandit(श्री नारायण पंडित)
SUBJECT: Hitopadesh | हितोपदेश
CATEGORY: Kid Learning
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2022
PAGES: 160
BINDING: Paper Back
WEIGHT: 220 GM
Description

‘भगवान् दत्तात्रेय’ चौबीस अवतारों में से एक थे। उनके गुरु थे कौए और कबूतर, मगर और अजगर, हिरण और शेर आदि। इन्हीं की रोमांचक कहानियों का भंडार है ‘हितोपदेश’, जिसे पढ़ने के लिए संसारभर के लोग भारत आते थे। मूल रूप में श्री नारायण पंडित ने यह संस्कृत में रचा था। राष्ट्र-भाषा का स्थान अब हिन्दी ले चुकी है, इसलिए समूचे ग्रंथ का मुहावरेदार हिन्दी में ऐसा प्रामाणिक रूपान्तर प्रस्तुत है जिसकी सभी ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है।

यह सर्वतोमुखी ज्ञान का भण्डार है। इसका एक-एक वाक्य एक-एक लाख रुपये का है। सर्वागीण विकास के लिए इसे बच्चों को भेंट करें, इसे हर लायब्रेरी, हर घर की टेबल पर सजाएँ. ‘हितोपदेश’ सर्वज्ञ और अंतर्यामी बना देगा।

धरती में आम बोयेंगे, तो आम उगेंगे और मिर्च बोयेंगे, तो मिर्चें लगेंगी। इसी प्रकार बच्चों में आप जैसे संस्कार डालेंगे, बच्चे वैसे ही बनेंगे। यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चे गुणी, समझदार, सच्चे और नीति-कुशल बनें, तो उन्हें ‘हितोपदेश’ ज़रूर पढ़ायें-सुनायें। इसमें संसार-भर के अनमोल वचनों का निचोड़ भरा पड़ा है। विशेषता यह है कि सब कुछ जीव- जन्तुओं की रोचक कहानियों के द्वारा समझाया गया है।

यह रूपान्तर सम्पूर्ण तो है, श्लोकों के अर्थ भी बातचीत की शैली में किये गये हैं और बच्चों जैसी सरल-सुबोध बोली में हैं। श्लोकों की तरह अलग-अलग अर्थ होने पर भी उनमें बातचीत का चुटीला अन्दाज़ भी है। इसे पढ़कर बच्चे जहाँ मुहावरेदार भाषा सीखेंगे, वहाँ अच्छे दृष्टान्त देकर बड़ों को भी मुग्ध करेंगे।

यह वही ‘हितोपदेश’ है, जिसका अनुवाद संसार की सभी भाषाओं में हो चुका है। बच्चों के लिए यह इतनी अनमोल भेंट है कि इसके संस्कार जन्म-जन्मान्तर तक अमिट रहेंगे।

हितोपदेश की उपयोगिता

इसको पढ़ने-सुनने से संस्कृत भाषा के अनमोल वचनों का भण्डार मिल जाता है, बोलचाल में निखार आ जाता है और नीति-शास्त्र में निपुणता प्राप्त होती है।

विद्या की महिमा बुद्धिमान् व्यक्ति को चाहिये कि विद्या और धन बटोरने में तो अपने को अजर-अमर समझे, परन्तु धर्म का पल्लू इस प्रकार थामे रहे, मानो मौत ने आकर बालों से दबोच लिया हो।

सब प्रकार के धनों में ‘विद्या’ ही उत्तम धन मानी गयी है; क्योंकि न कोई इसे चुरा सकता है, न इसका मोल-भाव हो सकता है और न कभी इसका नाश हो सकता है।

जिस प्रकार नदी अपने साथ घास-फूस को भी महासागर तक पहुँचा देती है, उसी प्रकार विद्या मामूली से आदमी को भी शाही दरबारों में आदर और शोभा के आसन पर बिठा देती है।

‘विद्या’ से ‘विनम्रता’ आती है, विनम्रता से ‘सुपात्र’ बनने का सौभाग्य मिलता है, ‘सुपात्र’ ही धन कमाते हैं, ‘धन’ से धर्म-कर्म करके सब सुख भोगे जा सकते हैं।

संसार में विद्याएँ दो हैं-शस्त्र विद्या और शास्त्र विद्या। निर्बल और जर्जर स्थिति में शस्त्र-विद्या हँसी भी उड़वा देती है, परन्तु शास्त्रों का ज्ञान सदा आदर और प्रशंसा दिलवाता है।

जिस प्रकार बर्तन बनाते समय फूल-पत्तियों के डाले गये निशान बर्तन टूट जाने पर भी अमिट रहते हैं, उसी प्रकार नीति-शास्त्र के सुन्दर संस्कार बचपन में ही डाल दिये जायें, तो जीवन-भर साथ देते हैं।

Additional information
Weight 220 g
Author

Language

Reviews (0)

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “हितोपदेश श्री नारायण पंडित
Hitopadesh by Shri Narayan Pandit”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shipping & Delivery