Four Vedas Pt. Harisharan Siddhantalankar
चार वेद भाष्यकार पं.हरिशरण सिद्धान्तालङ्कार
Four Vedas Pt. Harisharan Siddhantalankar
₹9,750.00 Original price was: ₹9,750.00.₹9,500.00Current price is: ₹9,500.00.
In stock
Four Vedas Pt. Harisharan Siddhantalankar
सम्पूर्ण वेदभाष्यम्
भाष्यकार – पं.हरिशरण सिद्धान्तालङ्कार
वेद संस्कृति, विज्ञान, शिक्षा के मूलाधार है। वेद विद्या के अक्षय भण्डार और ज्ञान के अगाध समुद्र है। संसार में जितना भी ज्ञान, विज्ञान, कलाएँ हैं, उन सबका आदिस्रोत वेद है। वेद में मानवता के आदर्शों का पूर्णरूपेण वर्णन है। सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों का पथ-प्रदर्शन वेदों के द्वारा ही हुआ था। वेद न केवल प्राचीन काल में उपयोगी थे अपितु सभी विद्याओं का मूल होने के कारण आज भी उपयोगी है और आगे भी होगें। मनुष्यों की बुद्धि को प्रबुद्ध करने के लिए उसे सृष्टि के आदि में परमात्मा द्वारा चार ऋषियों के माध्यम से वेद ज्ञान मिला। ये वेद चार हैं, जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद के नाम से जाने जाते हैं। हम इन चारों वेदों का संक्षिप्त परिचय देते हैं –
ऋग्वेद – इस वेद में तृण से ईश्वर पर्यन्त सब पदार्थों का विज्ञान बीज रूप में है। इस वेद में प्रमुख रूप से सामाजिक विज्ञान, विमान विद्या, सौर ऊर्जा, अग्नि विज्ञान, शिल्पकला, राजनीति विज्ञान, गणित शास्त्र, खगोल विज्ञान, दर्शन, व्यापार आदि विद्याओं का वर्णन हैं।
प्रस्तुत भाष्य पं.हरिशरण जी द्वारा रचित है। यह भाष्य पण्डित हरिशरण सिद्धान्तालङ्कार जी ने स्वामी दयानन्द की निर्दिष्ट पद्धति के अनुसार किया है। यह ऋग्वेदभाष्य सप्त खण्डों में सम्पूर्ण है। इस भाष्य में वेद मन्त्रों की शास्त्रीय दृष्टि से व्याख्या की गई है तथा भाष्य को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। यह भाष्य हिन्दी भाषा में होने से सामान्य नागरिकों के लिए अत्यन्त लाभदायक है। भाष्य में प्रत्येक पद का पृथक्-पृथक् हिन्दी अनुवाद किया है तत्पश्चात् विस्तृत व्याख्या की गई है। प्रत्येक सूक्त के पूर्व, सूक्त के विषय को शीर्षक रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक मन्त्र के छन्द, देवता, ऋषि और स्वर का निर्देश भाष्य में किया गया है।
यजुर्वेद – इस वेद की प्रशंसा करते हुए, फ्रांस के विद्वान वाल्टेयर ने कहा था – “इस बहुमूल्य देन के लिए पश्चिम पूर्व का सदा ऋणी रहेगा।
यज्ञों पर प्रकाश करने से इस वेद को यज्ञवेद भी कहते हैं। इस वेद में यज्ञ अर्थात् श्रेष्ठकर्म करने की और मानवजीवन को सफल बनाने की शिक्षा दी गई है। जो कि पहले ही मन्त्र – “सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मणे” के द्वारा दी गई है। इस वेद में धर्मनीति, समाजनीति, अर्थनीति, शिल्प, कला-कौशल, ज्यामितीय गणित, यज्ञ विज्ञान, भाषा विज्ञान, स्मार्त और श्रौत कर्मों का ज्ञान दिया हुआ है। इस वेद का चालीसवाँ अध्याय आध्यात्मिक तत्वों से परिपूर्ण है। यह अध्याय ईशावस्योपनिषद् के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रस्तुत यजुर्वेदभाष्य पं.हरिशरण सिद्धान्तालङ्कार जी द्वारा रचित है। यह भाष्य दो खण्डों में सम्पूर्ण है। यह भाष्य अत्यन्त सरल और रोचक है। प्रत्येक मन्त्र को जीवन के साथ जोडा है। इस वेद भाष्य में वेदों के अनेकों रहस्यों का उद्घाटन किया गया है।
ये वेद आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है, परन्तु महत्व की दृष्टि से अन्य वेदों के समान ही है। इस वेद में उच्चकोटि के आध्यात्मिक तत्वों का विशद वर्णन है, जिनपर आचरण करने से मनुष्य अपने जीवन के चरम लक्ष्य प्रभु-दर्शन की प्राप्ति कर सकता है।
इस वेद द्वारा संगीतशास्त्र का विकास हुआ है। इस वेद में आध्यात्मिक विषय के साथ-साथ संगीत, कला, गणित विद्या, योग विद्या, मनुष्यों के कर्तव्यों का वर्णन है। छान्दोग्य उपनिषद् में “सामवेद एव पुष्पम्” कहकर इसकी महत्ता का प्रतिपादन किया है।
प्रस्तुत सामवेदभाष्य पं. हरिशरण सिद्धान्तालङ्कार जी द्वारा रचित है। यह भाष्य दो खण्डों में सम्पूर्ण है। यह भाष्य सरल, व्याकरण के अनुकूल और गौरवपूर्ण है। इस भाष्य में वेद की गहराई तक उतरने का प्रयत्न किया गया है। कुछ ऐसे तत्त्वों को उजागर करने का प्रयास किया गया है, जो अन्य किसी भाष्य में देखने को नहीं मिलेंगे।
इस वेद में ज्ञान, कर्म, उपासना का सम्मिश्रण है। इसमें जहाँ प्राकृतिक रहस्यों का उद्घाटन है, वहीं गूढ आध्यात्मिक रहस्यों का भी विवेचन है। अथर्ववेद जीवन संग्राम में सफलता प्राप्त करने के उपाय बताता है। इस वेद में गहन मनोविज्ञान है। राष्ट्र और विश्व में किस प्रकार से शान्ति रह सकती है, उन उपायों का वर्णन है। इस वेद में नक्षत्र-विद्या, गणित-विद्या, विष-चिकित्सा, जन्तु-विज्ञान, शस्त्र-विद्या, शिल्प-विद्या, धातु-विज्ञान, स्वप्न-विज्ञान, अर्थनीति आदि अनेकों विद्याओं का प्रकाश है।
प्रस्तुत अथर्ववेद भाष्य पं.हरिशरण सिद्धान्तालङ्कार जी द्वारा रचित है। यह भाष्य तीन खण्डों में पूर्ण है। यह भाष्य अत्यन्त सरल है। इस भाष्य में पूर्ण सत्यता के साथ अर्थ किया गया है। भाष्य में कहीं भी अर्थों के साथ खेंचातानी और मनमाना अर्थ नहीं किया गया है। जहाँ कोई विशेष अर्थ किया है, वहाँ प्रमाण में प्राचीन ग्रन्थों – यथा ब्राह्मणग्रन्थों, निरूक्त, उणादिकोश, निघण्टु, व्याकरण आदि के उद्धरण दिये हैं।
अनेकों शास्त्रीय प्रमाणों से युक्त यह भाष्य जहां उद्भट विद्वानों के लिए विचार विमर्श की सामग्री प्रस्तुत करता है वहीं सामान्य पाठक के लिए यह अत्यन्त प्रेरणादायक, रोचक, सरल, सुबोध एवं सहज में ही हृदयंगम हो जाने वाला है।
आशा है कि पाठक इस दिव्य वाणी के अनुवाद और विस्तृत व्याख्या से लाभान्वित होंगे।
No account yet?
Create an AccountChat Now
Reviews
There are no reviews yet.