पंचम् संस्करण की भूमिका ‘ भारतीय दर्शन की रूप – रेखा ‘ के पंचम् संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण को पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है । चतुर्थ संस्करण एंव पंचम् संस्करण की अवधि के मध्य पुस्तक का पुनर्मुद्रण अनेकों बार हुआ , जिससे पुस्तक की लोकप्रियता प्रमाणित होती है । इस लोकप्रियता को बनाये रखने के उद्देश्य से मैंने पुस्तक का यथासंभव परिवर्तन एवं परिमार्जन किया है ।
इस संस्करण में ऋग्वेद के दार्शनिक विकास के त्रिविध स्तर- वैदिक बहुदेववाद , वैदिक एकेश्वरवाद , वैदिक एकवाद को समाविष्ट किया गया है । उपनिषद् – दर्शन के केन्द्रीय संप्रत्ययों – ब्रह्म , आत्मा , ब्रह्म और आत्मा की तादात्म्यता , माया तथा मोक्ष की व्याख्या विस्तारपूर्वक की गई है । गीता के ज्ञान – योग , भक्ति- योग और कर्म – योग में नई सामग्री का समावेश किया गया है । जैन – दर्शन में अनेकान्तवाद को जोड़ा गया है ।
न्याय – दर्शन में ज्ञान के प्रकार तथा प्रमा और अप्रमा का विश्लेषण ‘ एंव ‘ व्याप्ति ‘ की सर्वांगीण व्याख्या की गई है । शंकर के अद्वैत वेदान्त तथा रामानुज के विशिष्टाद्वैत दर्शन में नवीन विषय समाविष्ट किये गये हैं । यत्र – तत्र मुद्रण सम्बन्धी दोषों में भी सुधार हुआ है ।
विगत संस्करणों में यत्र – तत्र जो त्रुटियां रह गई थीं , उन्हें इस संस्करण में निराकृत कर दिया गया है । आशा है , इन प्रयत्नों के फलस्वरूप पुस्तक का यह नवीन संस्करण विगत संस्करणों की अपेक्षा अधिक उपयोगी सिद्ध होगा । अन्त में मैं प्राध्यापक मित्रों एवं पाठकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ , जिन्होंने पुस्तक को उदारतापूर्वक अपनाकर मुझे प्रोत्साहित किया है ।
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