आपकी पुस्तक “भारत – निर्माता” को जितने ध्यानपूर्वक मैंने देखा , उतनी ही वह मुझे विशेष रुची । लोक में संतत प्रवाहित मानवधारा के बीच – बीच में कौंधनेवाले शक्तिपुञ्ज ही महापुरुष हैं । लोक – जीवन की सोई हुई कुंडलिनी में जब नई चेतना की बाढ़ आती है , तभी महापुरुष का जन्म होता है । आपने निखरे हुए शब्दों में प्रत्येक का संक्षिप्त मार्मिक परिचय देकर पुस्तक को हृदयग्राही बना दिया –
( डॉ० ) वासुदेवशरण अग्रवाल
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