आयुर्वेद का प्राण वनौषधि विज्ञान
Ayurveda Ka Pran Vanaushadhi Vigyan

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AUTHOR: Brahmavarchas
SUBJECT: Ayurveda Ka Pran Vanaushadhi Vigyan | आयुर्वेद का प्राण वनौषधि विज्ञान
CATEGORY: Ayurveda
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2024
PAGES: 504
BINDING: Hard Cover
WEIGHT: 475 g.

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Description

भूमिका

मनुष्य आज जिस जीवन पद्धति का आदी हो चुका है, वह स्वाभाविक रूप से उसे रोगी बनाती है। नोरोग जीवन प्रकृति का एक अनुदान है, सृजेता की रीति-नीति का एक अंग है जबकि रोग विकृति का नाम है। उस भोगवादी संस्कृति के विकास ने आज घट-घट में स्थान बना लिया है। हम जो खाते हैं, पीते हैं-श्वास लेते हैं, सभी में कहीं न कहीं जहर घुला हुआ है। इसके अतिरिक्त बढ़ते लालच एवं दौड़ती आधुनिकता के तनाव ने मनुष्य को खोखला बना दिया है।

जो भी कुछ शरीरगत मनोगत कष्ट आज मानव भुगतता दिखाई देता है, उसके मूल में वह अशक्ति ही है- मनोबल का हास ही है, जो उसकी रचनाधर्मी जीवनचर्या को खण्डित करता रहता है। यह अशक्ति सर्वाधिक आज की परिस्थितियों में जन्मे तनाव से (स्ट्रेस से) हो रही है। प्रायः सभी प्रकार के रोग उससे होते सिद्ध किये जा सकते हैं।

चिकित्सा पद्धति की त्वरित परिणाम दिखाने की गुणवत्ता के कारण एलोपैथी लोकप्रिय होती चली गयी पर किसी ने भी उसके दुष्परिणामों पर ध्यान नहीं दिया। आज सारी मानव जाति पाश्चात्य औषधि प्रणाली की विषाक्तता से पीड़ित है। ऐसी परिस्थिति में एक मात्र चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद ही ऐसी नजर आती है जो प्रकृति के सर्वाधिक समीप है एवं समग्र स्वास्थ्य के संरक्षण की बात कहती है। परम पूज्य गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने इस आयुर्वेद का पुनर्जीवन कर इसे सार्वजनीन सर्वसुलभ बना दिया। आज सभी प्रकार की काष्ठ औषधियाँ परिष्कृत रूप में उपलब्ध हैं। इनके कोई दुष्परिणाम भी नहीं होते। आयुर्वेद की यही विशिष्टता उसे सर्वोपरि बनाती है एवं सबके लिये सुलभ भी।

आयुर्वेद का प्राण है वनौषधि विज्ञान। जन-जन के मन में आज जो यत्किंचित् आशंका-दुविधा दिखाई देती है तो वह आयुर्वेद के उस प्रस्तुतीकरण के कारण जिसमें घुन लगी औषधियाँ, जो प्रभाव खो चुकी है- पंसारी द्वारा दी जाती है एवं गलत तरीके से ग्रहण की जाती हैं। यदि शुद्ध रूप में इन वनौषधियों को जन-जन तक पहुँचाया जा सके तो कोई कारण नहीं कि सबको स्वास्थ्य इस सदी के प्रारंभिक दशक में ही सुलभ न हो सके।

“आयुर्वेद का प्राण-वनौषधि विज्ञान” पुस्तक जो स्व० डॉ. एस. बी. नरूला के अथक प्रयासों तथा ब्रह्मवर्चस के सामूहिक पुरुषार्थ द्वारा लिखी गई, जन-जन के लिए प्रस्तुत है। शरीर को स्वस्थ बनाए रखना सबसे बड़ा धर्म है, यह मानकर परिजन इसे पुनः उसी लोकप्रियता के साथ जन-जन तक पहुँचाएँगे – स्वास्थ संरक्षण की क्रांति का एक निमित्त इसे बनाएँगे- ऐसी इच्छा है। इस स्तुत्य प्रयास के लिए हमारी हार्दिक मंगल कामनाएँ।

(डॉ. प्रणव पण्ड्या)

Reviews (1)

1 review for आयुर्वेद का प्राण वनौषधि विज्ञान
Ayurveda Ka Pran Vanaushadhi Vigyan

  1. Yogesh

    औषधि की जानकारी प्राप्त हुई आपकी यह बुक ज्ञानवर्धक है

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