अभेद्य वेद
Abhedya Ved

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AUTHOR: Acharya Agnivrat Naishthik (आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक) 
SUBJECT: वैदिक संध्या | Vedic Sandhya
CATEGORY: Vedic Science
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2024
PAGES: 224
BINDING: Paper Back
WEIGHT: 300 GRM
Description

वेद सम्पूर्ण सृष्टि का ग्रन्थ है। प्रारम्भ से लेकर महाभारत काल पर्यन्त यह सम्पूर्ण मानव जाति का विद्या व धर्म का ग्रन्थ रहा है और सत्य सनातन वैदिक धर्म ही मानव का एकमात्र धर्म रहा है। दुर्भाग्यवश तमोगुण की प्रबलता से महाभारत काल के पश्चात् वेदविद्या का अपेक्षाकृत तीव्रता के साथ लोप होता चला गया। इससे संसार में नाना मत-पन्थों का प्रादुर्भाव हुआ अ और मानव जाति खण्ड-खण्ड में विभाजित हो गई। इनमें से कुछ मत-पन्थ तो वेद के मिध्या अथ अर्थ ग्रहण करने के कारण उत्पन्न हुए, जिससे मानव समाज में धर्म के नाम पर नाना पापों की प्रवृत्ति होने लगी, तो कुछ मत पन्थ इनकी प्रतिक्रिया में उत्पन्न हुए। दोनों ही प्रकार के मत-पन्थों में जो-जो सत्य व कल्याणकारी बातें हैं, वे वैदिक परम्परा से ही ली गई हैं और जो-जो कल्पित व मिथ्या बातें हैं, वे वे उन मत-पन्थों के प्रवर्तकों के मस्तिष्क की उपज हैं।

आज अनेक मत-पन्थ वेद के नाम पर नाना पापों व अन्धविश्वासों को ढो रहे हैं, तो प्रतिक्रियावादी वेदविरोधी मत वेद के मिथ्या अर्थों को लक्ष्य बनाकर वेद पर ही आक्रमण कर रहे हैं। ऐसा करके वे वेदविरोधी (ईसाई, मुस्लिम, नव बौद्ध एवं वामपन्थी) वैदिक सनातनधर्मियों की सन्तानों को वेद से विमुख करके न केवल धर्मान्तरित कर रहे हैं, अपितु उन्हें भारतविरोधी भी बना रहे हैं। हमने संसार के सभी वेदविरोधियों को वेदों व आर्ष ग्रन्थों पर आक्षेप करने की खुली चुनौती दी थी, उस पर हमें उनके आक्षेप प्राप्त हुए, परन्तु दुर्भाग्यवश हमें कोई भी आक्षेपकर्ता न तो योग्य ही प्रतीत हुआ और न ही ईमानदार सत्यपिपासु। हमने इन आक्षेपों का उत्तर देने के लिए देश के अनेक वैदिक विद्वानों का आह्वान किया, परन्तु सभी मौन साध गए। वेदादि शास्त्रों पर होते प्रहारों को देखकर भी मौन बैठ जाना अपराध है। ध्यान रहे यदि आप वेद के सम्मान को नहीं बचा पाये, तो आपकी पीढ़ी को धर्मान्तरित होने से कोई नहीं रोक सकता।

हमने उन आक्षेपों में से 30 प्रमुख आक्षेपों का संक्षिप्त में उत्तर इस पुस्तक में दिया है। यह पुस्तक प्रत्येक सनातनधर्मी के घर में होनी चाहिए, क्योंकि इस पुस्तक के रहते कोई विधर्मी हमारी आगामी पीढ़ियों को पथभ्रष्ट वा धर्मान्तरित नहीं कर सकता।

आचार्य अग्निव्रत

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