कर्तव्य-पथ की पहचान – श्रीमद्भगवद्गीता (कविता) Kartavy- Path Ki Pahachaan – Shrimad Bhagavad Gita (Poem)
|| कर्तव्य-पथ की पहचान – श्रीमद्भगवद्गीता ||
जब अधर्म, भूमण्डल पर बादल बन छा जाता है।
तेज हीन दिनकर , अपनी लाज भी न बचापाता है।।
साधु रक्षा, धर्म-ज्योति जलाने, प्रभु हर युग में आते हैं।
विधाता धरा के उत्थान में, कुरुक्षेत्र को सजाते हैं।।1
मर्यादाएं भूल, जब अपने ही अपनों को खाये ।
कुलवधु के मान को, घर आंगन में लुटवाये।।
ऐसे तिरस्कृत धर्म को , प्रभु बचाने आते हैं।।
योगेश्वर धर्म की खातिर कुरुक्षेत्र को सजाते हैं।।2
कर्मण्येवाधिकारस्ते से, वो कर्म विधान सुनाता है।
योगस्थः कुरु कर्माणि से वो सिद्ध योग समझाता है।।
बुद्धि के द्वन्दों से परे हो, निज धर्म में मन लगवाते हैं।
योगेश्वर धर्म की खातिर कुरुक्षेत्र को सजाते हैं।।3
लोकेऽस्मिन् द्विविधा निष्ठा से ज्ञान-कर्म का संयोग सुनो।
जो इन्द्रिय मोह मे फसते, उस मार्ग से तुम वियोग चुनो।।
यज्ञशिष्टः अशिनः ही, सब पापों से मुक्त हो जाते हैं।
निज-कर्म को यज्ञ बना, मन से उसी को ध्याते हैं॥4
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि से, जन्म चक्र समझाते हैं।
जो आज बने हुए है अपने, कल न किसी से कोई नाते हैं॥
यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानि में प्रभु सुदर्शन उठाते हैं।
सज्जनों की रक्षा में, वे कर्मयोग ही अपनाते हैं॥5
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं, सब-धर्म का मैं ही विधाता हूं।
न मां कर्माणि लिम्पन्ति के रहस्य को तुझे बताता हूं॥
कर्मफल स्पृहा ही तो, कर्म बन्धन में ले जाती है।
किं कर्म किं अकर्म से तो, कवि-बुद्धि भी चकराती है॥6
सर्वाणि इन्द्रियकर्माणि में, संयमी की बात बताता हूं।
जुह्वति ज्ञानदीपिते से, यज्ञाग्नि… हृदय में जलाता हूं॥
श्रद्धावान् लभते ज्ञानं, यही आत्मशान्ति का द्वार है।
संशयात्मा विनश्यति में , उलझा हुआ सब संसार है।।7
जग की उलझनों से मैं, तुझे उस पार ले जाता हूं।
जहां कर्म योग से कर्तव्यपथ , तेरे लिए सजाता हूं।।
कामक्रोधवियुक्तानां, यतियों सा जीवन बन जाता है।
संन्यास कर्मयोग से ही, निःश्रेयस पद पाया जाता है।।8
असंयमी मन ही तो, मानव को भरमाता है।
योगाभ्यास से मन, संयमी बन जाता है॥
प्रज्ञा प्रखर होती वैराग्य से, जो मुक्ति प्रदाता है।
शुचीपथ गामी योगी ही, लोक-सृजन कर पाता है॥9
अभ्यासयोगयुक्तेन, चित्त अपने का अनुसंधान करो।
परम पुरुष दिव्यता से, निज तेज का संधान धरो॥
जो उस दिव्य ज्योति से, आनन्द रस को पाता है।
वही जीवनदाता जग में , सुहृत उसका विधाता है॥10
पत्रं पुष्पं तोयं से, जो मेरी भक्ति को आता है।
सहज भाव से वो मेरा बन, मुझमें आश्रय पाता है।
सर्वकर्मबन्धनों से कर मुक्त उसे, मैं परम ज्ञान देता हूं।
आनन्द निज धाम में, उसको अपना लेता हूं॥11
वेदानां सामवेदोऽस्मि ये मेरा निज प्रकाश है।
भूतानां अस्ति चेतना, जो जीवन की आश है॥
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां, ये तुझे बतलाता हूं।
मुझमें आश्रय पाओ तुम, तुझे इस ओर बुलाता हूं॥12
दिव्यं ददामि ते चक्षुः, तुझे विश्वरूप दिखाता हूं।
बुद्धि निर्मल हो तेरी, अज्ञान आवरणों को हटाता हूं॥
तू देख मैं ही अर्जुन, मैं ही विश्व विधाता हूं।
सूर्यादि लोकों को मैं ही रचता और टीकाता हूं॥13
सत्वं रजस्तमः प्रकृति मुझमें आश्रय पाती है।
मेरी योगमाया से वो, विविध रूप सजाती है॥
मैं ही सबका स्वामी, मैं ही जगपालन हार हूं।
मैं ही जन्म-मरण का कारण, मैं ही मोक्ष द्वार हूं॥14
ऊर्ध्वमूल अधः शाखा से निज स्वरूप बताता हूं।
छन्दांसि यस्य पर्णानि , वेद ज्ञान से सबको पाता हूं॥
मुझमें ही सब प्राणी, जीवन को धारण करते है।
योगीजन अहर्निश , नित मेरा ही चिन्तन करते है॥15
देव असुर ये दोनों, जग जीवन की छाया है।
प्रजा ने अपने कर्मों से , निज जीवन को पाया है।।
देव तप- ध्यान –योग से , अमरता को पाते है।
असुर माया में फसकर, जीवन व्यर्थ गवातें है॥16
मनः प्रसादः सोम्यत्वं से , मुनि परमपद को पाते है।
भाव शुचिता से मन की शुद्धि, आत्मदीप बन जाते है॥
श्रद्धा ही माता उनकी, ज्ञान पिता बन जाता है।
प्रेमभाव से पूरित मन, परमदेव को गाता है॥17
समाधि मधुशाला बन जाती, मन मधु प्याला है।
वासनाओं को भस्म करती, श्रद्धा की ज्वाला है॥
मधुसूदन – गीता की, यही गौरव गाथा है।
प्रभु मिलते उन्ही को, जो अर्जुन सा बन जाता है॥18
गीता मानव के लिए, कर्तव्य-पथ की पहचान है।
यह मात्र उपदेश नहीं, ये जीवन का अनुपम वरदान है॥
जिसने इसके रहस्य को जाना, वे देव बन जाते हैं।
हर युग में धर्म रक्षणारर्थ, कुरुक्षेत्र सजाए जाते है।। 19
Dr. Sandeep Acharya Assistant Professor Department of Veda Gurukula Kangri Vishwavidyalaya Haridwar, Uttrakhand |
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AUTHOR | 7906234374 |
बहुत ही अद्भुत पढ़कर आनंद आ गया जिनकी भी रचना है उनको शत्-शत् परिणाम
🙏🙏
बहुत ही सुंदर भाषाशाली शैली का प्रयोग किया गया है मैं संदीप आचार्य जी का बहुत-बहुत धन्यवाद करती हूं हमें इस प्रकार ज्ञान प्रदान करने के लिए
Bhut ui sunder
ऐसे विद्वान आज भी है भारत मे
संदीप गुरुजी को अद्भूत रचना के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏