ऋषि दयानन्द और आर्य समाज (2 भागों में)
Rishi Dayanand Aur Arya Samaj

700.00

AUTHOR: Dr. Jwalantakumar Shastri (डॉ. ज्वलन्तकुमार शास्त्री)
SUBJECT: Rishi Dayanand Aur Arya Samaj | ऋषि दयानन्द और आर्य समाज (2 भागों में)
CATEGORY: Arya Samaj
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2016
PAGES: 1209
PACKING: Hard Cover
WEIGHT: 1500 GRMS
Description

प्रस्तुत पुस्तक के सम्बन्ध में

ऋषि दयानन्द के सिद्धान्तों तथा मन्तव्यों के विशद विश्लेषण में यों तो सैकड़ों ग्रन्थ लिखे गये हैं परन्तु आलोच्य ग्रन्थ, जो लगभग छह सौ पृष्ठों का है, दयानन्दीय सिद्धान्तों की व्यापक चर्चा, आलोचना तथा मीमांसा प्रस्तुत करता है। इकत्तीस अध्यायों में विभक्त इस ग्रन्थ में कोई ऐसा विषय छूटा नहीं है जो दयानन्द के कार्य, चिन्तन या व्यवहार की परिधि में आया था। इस दृष्टि से ग्रन्थ का महत्त्व सुस्पष्ट है। लेखक ने वेद विषयक सभी प्रश्नों की सटीक मीमांसा प्रस्तुत करने के साथ-साथ पश्चिम के वेदज्ञों की उन दो श्रेणियों का स्पष्ट उल्लेख किया है।

इनमें से एक वेद के सायण कृत अर्थों को निर्विवाद मानकर उसकी याज्ञिक शैली को स्वीकार करती है जब कि दूसरा वर्ग सायण कृत वेदार्थ को दोषपूर्ण मानकर वेदों का अर्थ करने में तुलनात्मक भाषा विज्ञान, देवगाथावाद आदि की सहायता लेना अनिवार्य मानता है। लेखक ने दयानन्द सरस्वती की वेदार्थ प्रणाली के मूल तत्त्व की सतर्क मीमांसा की है जिसके अनुसार वेदों के दो प्रकार के अर्थ करना आवश्यक है- पारमार्थिक अर्थ तथा व्यावहारिक अर्थ।

दयानन्द के वेदवाद की विस्तृत समीक्षा करने के पश्चात् विद्वान् लेखक दयानन्द की दार्शनिक मान्यताओं की विवेचना में उतरता है। दयानन्द यथार्थवादी दार्शनिक थे जिन्होंने विश्व प्रपञ्च की सन्तोषप्रद व्याख्या में ईश्वर, जीव तथा जड़ तत्त्व प्रकृति की अनादि सत्ताओं को स्वीकार किया था। स्वामी दयानन्द की दार्शनिक जगत् को एक बड़ी देन थी – षड्दर्शनों को एक दूसरे का पूरक बताकर उनमें समन्वय के सूत्रों की तलाश। लेखक ने इन दर्शनों में आपाततः प्रतीत होने वाले विरोधों को भी निम्न प्रकार सूचीबद्ध किया है

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