आर्यों का आदि देश और उनकी सभ्यता Aryo Ka Aadi Desh Aur Unki Sabhyata
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AUTHOR: | Swami Vidhyanand Saraswati (स्वामी विद्यानंद सरस्वती) |
SUBJECT: | आर्यों का आदि देश और उनकी सभ्यता | Aryo Ka Aadi Desh Aur Unki Sabhyata |
CATEGORY: | Aryasamaj |
LANGUAGE: | Hindi |
EDITION: | 2021 |
PAGES: | 246 |
BINDING: | Paper Back |
WEIGHT: | 276 GM |
भूमिका
आज देश में विघटनकारी तत्त्वों द्वारा प्रादेशिकता, जातीयता आदि पर आधारित संकीर्ण विचारों को बढ़ावा देकर जनमानस को भ्रमित करने का जो प्रयास किया जा रहा है उसे रोकने के लिए आवश्यक है कि हम अपने भारत देश और उसकी सभ्यता के अतीत का सही मूल्यांकन करें । स्वामी विद्यानन्द सरस्वती ने, अपनी कृति ‘आर्यों का आदिदेश और उनकी सभ्यता’ में इस कर्त्तव्य को भलीभांति निभाया है। निश्चय ही उनकी यह सामयिक रचना राष्ट्र में एकता की भावना को उभारने में सहायक होगी ।
स्वामीजी ने इस मत की पुष्टि में अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये हैं कि आर्यजन इसी देश के आदिवासी हैं और वेद मानव को ईश्वर द्वारा प्रदत्त आदि ज्ञानपुंज है। वैदिककालीन सभ्यता अति उन्नत थी। उस काल में नारी की स्थिति अति उच्च, सम्मानित् तथा गौरवमयी थी। यद्यपि वैदिककालीन शासन व्यवस्था मूलतः राजतन्त्रात्मक थी, परन्तु वह लोकतन्त्र पर आधारित थी।
स्वामी विद्यानन्द सरस्वती की इस कृति के बारे में अपने मनोद्गार व्यक्त करते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। मुझे पूर्ण विश्वास है स्वामीजी की इस शोधपूर्ण कृति का विद्वानों के बीच समादर होगा।
प्रस्तावना
विश्वप्रसिद्ध इतिहासवेत्ताओं ने अलग-अलग समय में आर्यों के आदिदेश के बारे में अलग-अलग धारणाएँ निरूपित की हैं। स्वामी विद्यानन्द सरस्वती ने अपने -शोधकार्य ‘आर्यों का आदिदेश और उनकी सभ्यता’ में इन धारणाओं का विश्लेषण किया है।
आर्य भारत के बाहर से आक्रामक के रूप में आये या वे यहाँ के मूल निवासी थे-इसकी तह में जाने के लिए लेखक ने वेदों, पुराणों, उपनिषदों, शतपथ ब्राह्मण, मनुस्मृति, वाल्मीकि रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों का ही अध्ययन नहीं किया, बल्कि इस दिशा में काम करनेवाले सभी सुप्रसिद्ध भारतीय और पाश्चात्य इतिहास- बेत्ताओं द्वारा रचित ग्रन्थों का भी अनुशीलन किया है। भारत में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में किये गये उत्खनन में प्राप्त सामग्री उन्हें अपने निष्कर्ष पर पहुंचने में काफ़ी सहायक हुई।
उनका स्पष्ट मत है कि आर्य लोग इसी देश के मूल निवासी है और उनसे पहले यहाँ कोई जाति नहीं रहती थी। कला, संस्कृति और सभ्यता की दृष्टि से उनका जीवन स्तर वैदिक काल से ही काफ़ी ऊँचा था। उत्तर और दक्षिण भारत की भाषाओं का उद्गमस्रोत प्रायः संस्कृत ही रहा है जिसका उपयोग वैदिक काल से ही होता चला आया है। लेखक के अनुमार आर्यों और द्रविड़ों के बीच सम्बन्धों के बारे में यह धारणा निमूल है कि ये दोनों एक-दूसरे से भिन्न है या इनमें से किसी एक ने दूसरे पर आक्रमण किया था।
लेखक का यह शोधकार्य भारत के आदिकालीन इतिहास पर एक ऐसा प्रकाश डालने का प्रयास है जिससे भारत में रहनेवाली सभी जातियों, धर्मों और भाषाओं के लोग अपने आपको वैदिक काल के सभ्य और सुसंस्कृत समाज से सम्बद्ध होने पर निःसन्देह गौरवान्वित अनुभव कर सकें ।
इतिहासवेत्ताओं को यह पुस्तक रुचिकर लगेगी, क्योंकि इसमें हमारे इतिहास की एक नई व्याख्या की गई है। एक इतिहासवेत्ता न होने के कारण इस विषय पर जिसके सम्बन्ध में विद्वानों में विभिन्न मत है, अधिकारपूर्वक कोई निर्णायक दृष्टिकोण अपनाने की चेष्टा करना मेरे लिए धृष्टता होगी, परन्तु इतना तो सर्व- मान्य है कि हमारे अनुभवों ने हमें विभिन्न देशों के बीच मैत्री एवं सौहार्दपूर्ण ढंग से रहने की शिक्षा दी है।
मैं समझता हूँ कि यह पुस्तक भारत की एकता को और पन्थ-निरपेक्षता के सिद्धान्त को बल देने के अपने उद्देश्य में सफल होगी।
कृष्णचन्द्र पन्त
(रक्षामन्त्री, भारत)
१० सितम्बर १६८६
Weight | 276 g |
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