निरुक्त-पूर्वार्ध
Nirukta-Purpardha

1,250.00

AUTHOR: Pro. Gyan Prakash Shastri
SUBJECT: निरुक्त-पूर्वार्ध | Nirukta-Purpardha
CATEGORY: Vedang
PAGES: 788
EDITION: 2024
LANGUAGE: Sanskrit-Hindi
BINDING: Hardcover
WEIGHT: 1450 g.
Description

प्रस्तावना

षट् वेदा‌ङ्गों में निरुक्त एक वेदाङ्ग है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वेद के अध्ययन के लिये इसकी उपयोगिता है, क्योंकि अंगों (वेदांगों) को विना जाने अंगी (वेद) के स्वरूप को नहीं जाना जा सकता। आचार्य दुर्ग वेदा‌ङ्गों की उपयोगिता प्रतिपादित करते हुए कहते हैं ‘कि वेद और वेदाङ्‌ङ्गों की प्रवृत्ति का कारण यह है कि इससे समस्त सांसारिक कामनाओं से लेकर मोक्ष पर्यन्त पुरुषार्थ की सिद्धि होती है।

जो शास्त्र इतना महत्त्वपूर्ण है, उसका परिज्ञान कराने के लिये वेदाङ्ग प्रवृत्त हुए हैं और ये सभी वेदाङ्ग प्रतिनियत (निर्धारित) विषय में वेद का अध्ययन करते हैं।” मन्त्र की उच्चारणविधि हम शिक्षा ये जानते हैं, वहीं मन्त्रों के छन्दों का ज्ञान कराने के लिये छन्दःशास्त्र है, मन्त्रविहित कर्म का अनुष्ठान करने के लिये कल्प है, कर्महेतु कालविशेष का प्रतिपादित करने वाला शास्त्र ज्योतिष है, व्याकरण की प्रवृत्ति शब्द तक सीमित है। इन पाँच में से कोई भी वेदाङ्ग मन्त्रार्थ तक ले जाने के लिये अस्तित्व में नहीं आया है।

जैसे शब्द ध्वनिरूप में सुनने के लिये नहीं होता, उसकी सफलता अर्थ के सम्प्रेषण में निहित है। इसी प्रकार छन्दरूप में गाकर सुनाने, विभक्ति आदि परिवर्तन, अर्थ विना जाने कर्म में विनियोग या किस काल में कर्म प्रारम्भ किया जाए, इसके लिये वेद नहीं है, क्योंकि ध्वनिरूप वेद से लाभ अर्थ जानकर ही प्राप्त किया जा सकता है। यह कार्य निरुक्त करता है।

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