आपकी पुस्तक “भारत – निर्माता” को जितने ध्यानपूर्वक मैंने देखा , उतनी ही वह मुझे विशेष रुची । लोक में संतत प्रवाहित मानवधारा के बीच – बीच में कौंधनेवाले शक्तिपुञ्ज ही महापुरुष हैं । लोक – जीवन की सोई हुई कुंडलिनी में जब नई चेतना की बाढ़ आती है , तभी महापुरुष का जन्म होता है । आपने निखरे हुए शब्दों में प्रत्येक का संक्षिप्त मार्मिक परिचय देकर पुस्तक को हृदयग्राही बना दिया –
( डॉ० ) वासुदेवशरण अग्रवाल
आपने जिन दो ज्योतिर्मय रत्नों का उपहार मुझे भेजा है , उनकी जगमगाहट और तेजस्विता से मैं मुग्ध बन गया हूँ । मुझे तो यह हार्दिक गर्व है कि अपनी मातृभूमि के आप जैसे सांस्कृतिक नररत्न हैं
(ज्योतिषाचार्य) सूर्यनारायण व्यास
आपका प्रयत्न सराहनीय है और आप हिन्दी – संसार के बधाई के पात्र हैं । –
क० मा० मुंशी ( उत्तरप्रदेश के राज्यपाल )
जिन लोगों ने इस ग्रंथ की महिमा पराधीनताकाल में भी परिलक्षित की , परखी , वे जानते हैं कि इसने देश में स्वतंत्रता , स्वराज्य की अग्नि जलाए रखने के साथ ही ” स्व ” को किस प्रकार उजागर किया है । यह “स्व” ही तो भारत की आत्मा है । देशवासी द्विवेदी जी के कितने ऋणी हैं –
( पं० ) वचनेश त्रिपाठी
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