स्वाधीनता के पथ पर
Swadhinta Ke Path Per

150.00

Only 1 left in stock

Description

कलक्टर की हत्या

Swadhinta Ke Path Per टन टन टन टन । मन्दिर का घण्टा बज रहा था । देवता की आरती समाप्त हो चुकी थी । लोग चरणामृत पान कर अपने – अपने घर जा रहे थे । श्रद्धा , भक्ति , नमृता और उत्साह में लोग आगे बढ़कर , दोनों हाथ जोड़ , मस्तक नवा . देवता को नमस्कार करते और हाथ की अंजुली बना चरणामृत के लिए हाथ पसारते थे । पुजारी रंगे सिर , बड़ी चोटी को गाँठ दिये . केवल रामनामी ओढ़नी ओढ़े , देवता के चरणों के निकट चौकी पर बैठा अरघे से चरणामृत बाँट रहा था । पुजारी जब चरणामृत देता था तो आँखें नीची किये रखता था । उसकी दृष्टि अधिक – से – अधिक लोगों के हाथों पर ही जाती थी । धीरे – धीरे सब लोग चले गये । पुजारी यद्यपि लोगों को देख नहीं रहा था . पर अनुभव कर रहा था कि उसका काम समाप्त हो रहा है । अकस्मात् उनकी दृष्टि एक स्त्री के हाथों पर पड़ी । ये हाथ भी चरणामृत पाने के लिए ही आगे बढ़े थे । इन हाथों को देखते ही पुजारी के हाथ काँपने लगे । अरघा चरणामृत सहित उसके हाथ से याचक के हाथों में गिर गया । पुजारी ने अरघे को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया , परन्तु तब तक वे हाथ पुजारी की पहुँच से दूर हो चुके थे । पुजारी ने आँख उठाकर स्त्री को देखना चाहा , परन्तु स्त्री घूम गयी थी और पुजारी की और उसकी पीठ थी । वह चरणामृत पी रही थीं । उसने चरणामृत पिया और अरघे को अपनी साड़ी के आँचल में छिपा लिया । इसके बाद पीछे की ओर देखे बिना वह मन्दिर से बाहर निकल गयी । पुजारी हाथ फैलाये , अवाक् मुख मन्दिर से बाहर जाती हुई स्त्री की पीठ देखता रह गया । ऐसा प्रतीत होता था कि वह अरघा माँगना चाहता है , परन्तु मुख से शब्द नहीं निकलता । जब स्त्री आँखों से ओझल हो गई तो पुजारी की बुद्धि ठिकाने आई । उसे अपने हाथ फैलाने पर लज्जा प्रतीत हुई । उसने तुरन्त हाथ समेट लिये और मन्दिर में चारों और देखकर मन – ही – मन कहा . ओह ! चलो किसी ने देखा नहीं । “

 

( 2 )

यह मन्दिर नगर के एक मोहलते के बीच में था । राय साहब सेठ कुंजबिहारी लाल ने अपनी वृद्धा माता के आग्रह पर श्री श्यामाचरण को इसमें पुजारी नियुक्त कर दिया पं . श्यामाचरण अपने अकेले पुत्र मधुसूदन के साथ मन्दिर के पिछवाड़े वाले घर में रहता था । वह पुराने विचारों का रूढ़िवादी ब्राह्मण था । संसार की प्रगति से सर्वथा पृथक , सागर में द्वीप की भाँति , अपने विचारों पर दृढ़ , संसार सागर की तरंगों की अवहेलना करता हुआ , अपने में लीन था । मधुसूदन पिता का लाड़ला पुत्र था । उसकी माँ का देहान्त उसी समय हो गया था , जब उसने इस संसार की वायु में पहला साँस खींचा था । तब से माता से भी अधिक स्नेह से पिता बालक का लालन – पालन करता आ रहा था । उसने बहुत कठिनाई से उसे पालकर बड़ा किया था , परन्तु इस परिश्रम में भी वह माँ के भाग का प्रेम , स्नेह और वात्सल्य भूला नहीं था । मधुसूदन को यह कभी अनुभव नहीं हुआ कि वह मातृ – विहीन है । उसके लिए श्यामाचरण माता , पिता ओर मित्र सब कुछ था । मधुसूदन अति निर्मल बुद्धि का था । संस्कृत में शास्त्री , अंग्रेजी में बी.ए. हिन्दी में साहित्यरत्न , गायन – विद्या में आचार्य , चित्रकला में निपुण . तात्पर्य यह कि अनेक गुण- सम्पन्न था । चौबीस वर्ष की आयु में इन सब बातों में उच्च कोटि कि योग्यता प्राप्त करना कोई साधारण बात नहीं थी । यह उसकी प्रतिज्ञा विशेष का ही परिणाम था कि एक छोटे से मन्दिर के पुजारी का लड़का होकर भी वह इतनी योग्यता प्राप्त कर सका था । मधुसूदन की शिक्षा का भार राय साहब ही उठा रहे थे । राय साहब मधुसूदन की प्रतिभा को समझ गये थे । जब वह बालक ही था तब से मधुसूदन ने उनके मन पर अपनी विशेषता की छाप लगा दी थी । वह आरम्भ से ही उसकी शिक्षा का प्रबंध कर रहे राय साहब की अपनी कोई सन्तान नहीं थी । निःसन्तान मनुष्य प्राय : तोता , मेना , कुत्ता , बिल्ली वगेरह पालने में बहुत उत्साह दिखाते हैं , परन्तु राय साहब का यह पसन्द नहीं था । वह मधुसूदन के ही पालन और शिक्षा में अपने मन की रिक्तता को भरने का प्रयत्न करते थे । जानना था कि राय साहसकते हैं न इस कथा की सीमा कतनी लम्बी तोड़ी

श्यामाचरण जानता था कि राय साहब उसके पुत्र पर विशेष कृपादृष्टि रखते हैं , परन्तु इस कृपा की सीमा कितनी लम्बी – चौड़ी है . इसका अनुमान वह नहीं लगा सकता था । इस सीमा के जानने का उसने कभी यत्न भी नहीं किया । मधुसूदन अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त करने पर भी प्राचीन सभ्यता का कट्टर अनुयायी था । वह उसके संस्कृत साहित्य के पढ़ने और भारतवर्ष की विभूति , प्राचीन सभ्यता , को एक पुजारी की ऐनक से देखने का कारण नहीं था , प्रत्युत यूरोपीय सभ्यता को भारतीय न्याय और सांख्य के काँटे पर तोलने के कारण भी था । उसने शेक्सपियर , कीट्स और शैली पढ़े थे , परन्तु जब इनकी तुलना वह कालिदास और भवभूति तथा व्यास और पातञ्जलि से करता था तो उन्हें समुद्र के किनारे पर केवल कंकर बटोरते हुए पाता था । कुछ दिन से पुजारी को ज्वर आ रहा था । वह स्वयं ठाकुरजी की पूजा करने मन्दिर में नहीं आ सका था । मन्दिर का काम आजकल मधुसूदन को करना होता था । प्रातः काल चार बजे उठना , मन्दिर को धो – पोंछकर साफ करना , स्नान इत्यादि कर तिलक – छाप लगा . छ : बजे पूजा पर बैठना होता था । छः बजे से लोगों का आना आरम्भ हो जाता था । जब से मधुसूदन ने मन्दिर का काम आरम्भ किया था . पूजा तथा देव – दर्शन करने वालों की संख्या बढ़ रही थीं । मधुसूदन ऊँचे . मीठे , संगीत भरे स्वर से पूजा के मन्त्र तथा श्लोक पढ़ता था । उसकी वाणी में माधुर्य , रस और प्रभाव था । मुख पर पूर्ण यौवन का तेज था । आँखों में ब्रह्मचर्य की मस्ती थी । देखने तथा सुनने वालों के हृदय गद्गद् हो जाते थे । देवमूर्ति की अपेक्षा पुजारी की यह सजीव मूर्ति कहीं अधिक आकर्षण का केन्द्र बन रही थी । पूजा करने वालों में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कहीं अधिक होती थी . परन्तु मधुसूदन की आँखें देवमूर्ति के चरणों पर गड़ी रहती थीं और उसे पता नहीं रहता था कि मन्दिर में कौन आया है और कौन नहीं आया ।

उक्त घटना का दिन पूर्णिमा का दिन था । सत्यनारायण की कथा सुबह से ही आरम्भ होकर बारह बजे तक चलती रहती थी । मन्दिर में विशेष समारोह था । इसका कारण भी मधुसूदन ही था । पुजारी की बीमारी के कारण कथा भी उसे ही करनी थी । सदा से भिन्न , कथा में सरलता , मधुरता और रोचकता अधिक थी । दृष्टांत पर दृष्टांत दिये जा रहे थे , सूक्तियों की भरमार थी । बीच में एक – दो भजन भी हो गये थे । यद्यपि कथा सदा से लम्बी हो गयी थी , परन्तु किसी का जी नहीं उकताया , न ही कोई घबराया । समय से पूर्व अटकर नहीं गया । सब मूर्तिमान बने , मुग्ध मन से कथा की नवीन विवेचना सुनते रहे । भाषा की सरलता ने कथा के आशय को साधारण अपढ़ स्त्रियों पर भी स्पष्ट कर दिया था , मानो पलक की झपक में समय व्यतीत हो गया

Additional information
Author

Reviews (0)

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “स्वाधीनता के पथ पर
Swadhinta Ke Path Per”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About Gurudutt
वैद्य गुरुदत्त, एक विज्ञान के छात्र और पेशे से वैद्य होने के बाद भी उन्होंने बीसवीं शताब्दी के एक सिद्धहस्त लेखक के रूप में अपना नाम कमाया। उन्होंने लगभग दो सौ उपन्यास, संस्मरण, जीवनचरित्र आदि लिखे थे। उनकी रचनाएं भारतीय इतिहास, धर्म, दर्शन, संस्कृति, विज्ञान, राजनीति और समाजशास्त्र के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय शोध-कृतियों से भी भरी हुई थीं।
Shipping & Delivery