सफलता के लिए निरंतरता जरूरी है

सफलता के लिए निरंतरता जरूरी
दोस्तो ! आप , हम या और कोई भी हो , सभी का लक्ष्य एक ही है , और वो है ‘ सफलता पाना । बेशक क्षेत्र अलग – अलग हो सकते हैं , लेकिन सफलता तो सभी चाहते हैं । जीवन में जो कुछ भी हम पाना चाहते हैं , यकीनन वो सब सफलता के माध्यम से ही तो पाते हैं । और इसी से हमारी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं । सफलता प्राप्ति का चौथा साधन है निरंतरता ( continuity ) । प्रथम तीन साधन हैं , श्रद्धा , अभ्यास और समय । गोल्ड मैडल जीतना हो , व्यापार में शिखर तक पहुंचना हो , स्वास्थ्य को उन्नत बनाना हो , या फिर ऊँचे वेतनमान की नौकरी प्राप्त करनी हो , इन लक्ष्यों को यदि पाना चाहते हैं . तो किए जा रहे प्रयासों में , निरंतरता होनी ही चाहिए । यदि हम किसी वस्तु – विशेष , पद या कुछ और पाने की निरंतर कोशिश करते रहेंगे , बीच में मैदान नहीं छोड़ेंगे , तो इसी से हम लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहेंगे । और बिना रुकावट के अवश्य ही , लक्ष्य तक पहुँच जाएंगे । क्या है निरंतर अभ्यास ? निरंतर अभ्यास का अर्थ है , लक्ष्य को पाने के लिए सतत् प्रयास करना , लगातार कोशिश करना , बराबर चलते रहना , दोहराना , जो किया , उसे फिर करना , करते ही रहना , बार – बार , वही करते जाना । कोई भी कार्य जो नियम से , निश्चित समय पर , निश्चित क्रम से बिना रुके बार – बार किया जाता है , जिस प्रयास के होने में नियमितता , अनुशासन और लयबद्धता होती है , वही निरंतर अभ्यास कहलाता है । यह फिर से होने वाला , धारावाहिक क्रम से चलने वाला दोहराव है , या यूं कहें , कि नल से लगातार निकलते हुए पानी के समान , प्रयास का जो निरंतर प्रवाह है , यही है निरंतर अभ्यास । इस प्रकार , निरंतरता , एक अटूट धारा के समान है , धारा – प्रवाह क्रिया है । केसेसे ‘ नैरन्तर्य या निरंतरता शब्द किसी कार्य के एक नियत समय पर बार – बार होने का परिचायक है । जैसे कोई व्यक्ति सुबह की सैर पर रोज़ – रोज़ जाता है । वह एक निश्चित समय पर , एक निश्चित दूरी तक जाता है , रोज़ – रोज़ सैर पर जाना , यह है उसकी सैर की निरंतरता । इसलिए एक ही काम को रोज़ , लगातार बिना रुके किया जाए ,तो वह निरंतर होने वाले कार्य की श्रेणी में रखा जाएगा । और यह स्थिति अभ्यास में निरंतरता की स्थिति कहलाएगी । जैसे आसमान में सूरज रोज अपने समय पर उगता है , और अपने समय पर ही अस्त हो जाता है । दिन के बाद रात , और रात के बाद दिन बराबर आता है । यह करोड़ों वर्षों से होता आ रहा है । इसलिए यह निरंतर हो रहा एक कार्य माना जाएगा । ये झरने , ये नदियां , ये पृथ्वी , ये घड़ी की टिकटिक , सभी तो अपने आप में निरंतरता को समाए हुए हैं । जैसे झरने और नदियां निरंतर बहते रहते हैं , सूरज निरंतर रोशनी देता रहता है , पृथ्वी निरंतर अपनी धुरी पर घूमती रहती है , और समय भी निरंतर चलता रहता है । इनकी निरंतरता हमें यही प्रेरणा देती है।
बारिश की छोटी छोटी बूंदों का लगातार गिरना , तालाब को जल्दी भर देता है , वैसे ही निरंतर , छोटी – छोटी कोशिशें भी , लक्ष्य रूपी तालाब को भर दिया करती हैं । निरंतरता पहले से तय होती है निरंतरता की स्थिति निरंतरता के साथ यानी बिना ठहरे अभ्यास करने वाले को यह पहले से पता होता है कि अगले दिन या अगले सप्ताह इतने समय पर इतने बजे से इतने बजे तक , इतनी देर तक प्रयत्न करना है । इसलिए उसके आगे बढ़ने के अभ्यास में , सतत्ता – निरंतरता होती है । इसी निरंतरता की वजह से एक अभ्यास , दूसरे अभ्यास दूसरा अभ्यास तीसरे से एक निश्चित अंतराल पर क्रमानुसार जुड़ा ही रहता है । ध्यान , व्यायाम या कोई अन्य अभ्यास हम शुरू करते हैं । और रोज 15 मिनट ध्यान करना है , ये तय करते हैं । तो रोज 15 मिनट हम देते ही हैं , या 20 मिनट व्यायाम करने के विषय में सोचते हैं , तो हम रोज 20 मिनट तक व्यायाम करते ही हैं । यही अभ्यास , निरंतर अभ्यास है । भले ही आपने सोचा हो , हफ्ते में सातों दिन मैं ध्यान करूँगा , व्यायाम भी करूँगा । तो भी किसी हफ्ते में देखेंगे , कभी मेहमानों के कारण नहीं हो पाया , तो किसी दिन बीमारी के कारण नहीं हो पाया , तो कभी कोई दूसरा काम आ गया । मगर हफ्ते के अंत में पाँच दिन तो ध्यान हुआ , व्यायाम हुआ । लक्ष्य तो हमारा सौ फीसदी निरंतरता बनाना था , लेकिन सातों दिन निरंतरता बनाना हमारे हाथों में नहीं था , इसलिए इन पस्थितियों में अभ्यास में इतनी निरंतरता भी उचित है । बाधा रहित निरंतरता , सफलता में सहायक ध्यान रहे कि , प्रयत्न करना अलग बात है , और निरन्तर प्रयत्न करना अलग । प्रयत्नशील होना सामान्य सी बात है , लेकिन निरन्तर प्रयत्नशील होना , एक खास बात है