केवल इसके अभ्यासियों की संख्या के बल पर इस पद्धति की उपादेयता हम सिद्ध नहीं कर सकते । लेकिन यह सत्य है कि इतनी ख्याति प्राप्त करने से इतना स्पष्ट हो जाता है कि इसकी अपनी कुछ विशेषता अवश्य है ।
यह ध्यान देने की बात है
कि बहुत से चिकित्सक जो कि आरम्भ में इसकी ओर अविश्वास तथा निराशापूर्ण दृष्टि से देखते थे आज अनुभव हो जाने के बाद इसकी अच्छाइयां जान गये हैं । देश तथा विदेश में मनोकायिक ( Psycho – somatic ) चिकित्सा विशेषज्ञ तथा मनोविकारी चिकित्सक इस चिकित्सा प्रणाली में रुचि दिखाने लगे हैं ।
वे यह विश्वास करने लगे हैं कि योग द्वारा मनोशारीरिक तनाव दूर होते हैं , जो कि उनके रोगियों में मानसिक तथा स्नायु – दुर्बलता दूर हो जाने के बाद भी बने रहते हैं । बहुत से चिकित्सक अब यह समझ गये हैं कि मनोचिकित्सा तथा पुनर्वास के क्षेत्र में जीर्ण रोगियों के लिये यौगिक चिकित्सा महत्त्वपूर्ण योग दे सकती है ।
अतः यौगिक चिकित्सा को अवैज्ञानिक तथा बोथी कह कर तिरस्कृत करना अनावश्यक भूल ही होगी । केवल इसलिये इनकी तरफ मोहित होना ठीक नहीं है कि यह क्रियायें हमारे पूर्वजों द्वारा सौंपी गई थीं अथवा वे केवल संत – साधुओं की वस्तुऐं हैं , जिनके हृदय में केवल जनसाधारण की भलाई का ही ध्यान रहता है ।
इनके हितैषियों के हृदय में इन क्रियाओं के प्रति सद् – इच्छाएं और राष्ट्रीय तथा जातीय भावनायें ही इस चिकित्सा के प्रति हमें अन्धविश्वास की ओर न बहा ले जायें । इनके परिणामों तथा मनोकायिक यांत्रिक प्रणाली की जांच करना हमारा कर्तव्य हो जाता है , जिनके द्वारा हमें यह परिणाम प्राप्त हुये हैं ।
भाग्य से आधुनिक विज्ञान जिस तेजी से बहुमुखी प्रगति कर रहा है , उससे हमें इन क्रियाओं के बारे में विस्तृत ज्ञान पाने में मदद मिलती है
हो सकता है लेखक का योग के प्रति पूर्वाग्रह भी इस लेख में झलका हो , लेकिन उनका प्रयत्न यही रहा है कि यह वस्तुगत ही रहे ।
पुस्तक का मुख्यभाग अधिकतर आधारभूत , सर्वमान्य जीवविज्ञानीय सिद्ध तथ्यों से संबंधित है । अतएव इसमें इनको लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी । जब कभी किसी विशेष विचारधारा या लेखक का सिद्धान्त या कोई विवादस्पद विषय लाया गया है , यह संदर्भों द्वारा प्रमाणित किया गया है , इसमें लेखक का या तो नाम या ठीक वही पेसेज उद्धृत किया गया है । कभी – कभी अपने ज्ञान तथा अनुभव पर आधारित व्याख्या देने का भी लेखकों ने साहस किया है ।
यद्यपि दोनों ही लेखकों ने पुस्तक को दोहराने तथा भूल सुधार करने में भाग लिया है । पर जहां कहीं भी एक की यदि सैद्धान्तिक स्थिति या उसका दृष्टिकोण बलवान था तो दूसरे लेखक ने मूलप्रति के लेखक से अपनी असहमति प्रकट कर दी ।
मूलपाठ उपलेखक के द्वारा प्रधान लेखक की देख – रेख में तैयार किया गया है ।
इस पुस्तिका का उद्देश्य जैसा कि ऊपर कहा गया है हमको यह बताना है कि योग की विभिन्न क्रिया – विधि किन सिद्धान्तों पर आधारित हैं । ( वे सिद्धान्त जो आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से मापे जा सकते हैं । ) चिकित्सा क्षेत्र में अपने प्रयोग की इसकी अपनी सीमायें व दिशायें हैं । जहां तक सम्भव हो सका , सामान्य जनता की भाषा में योग चिकित्सा का वैज्ञानिक पहलू प्रस्तुत करना हमारा प्रयत्न रहा है ।
लेकिन मूल पाठ में न चाहते हुए भी कुछ तकनीकी शब्दों का प्रयोग करना पड़ा है
पुस्तिका के अन्त में ऐसे शब्दों की सूची दी गई है ।
हम केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा श्री डी . पी . करमरकर को हृदय से धन्यवाद देना चाहते हैं । उन्होंने ही इस विषय को जनता के सामने रखने का गौरवपूर्ण अवसर दिया है ।
हम कैवल्यधाम श्रीमत माधव योग – मंदिर समिति के कर्मचारी वर्ग को भी उनकी सार्थक आलोचना के लिये उनका तथा विभिन्न ग्राफ तथा मानचित्र जो इस पुस्तिका में दिये गये हैं , तैयार करने के लिये धन्यवाद देते हैं । –
कुवलयानन्द
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