प्रस्तावना
योग विद्या भारतीय संस्कृति के सुदृढ़ आधार स्तम्भों में से एक है । योग के द्वारा जहाँ भारतीय संस्कृति के दार्शनिक पक्ष की पुष्टि हुई है वहीं इसके द्वारा मनुष्य में आध्यात्मिक प्रवृत्ति का भी विकास हुआ है । गीता के आठवें अध्याय के बारहवें श्लोक के अर्थ को देखकर इसकी व्यापकता एवं जटिलता का पता चलता है, जिसमं कहा गया है कि योग की स्थिति सभी ऐन्द्रिय व्यापारों से विरक्ति में है । इन्द्रियों के सारे द्वारों को बन्द करके तथा मन को हृदय में एवं प्राण वायु को सिर की चोटी पर स्थिर करके मनुष्य अपने को योग में स्थापित करता है । मनुष्य को योग में सफलता या सिद्धि केवल तब मिलती है
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