योग बीज
Yoga Bija (Text with English-Hindi Translation)

195.00

AUTHOR: Siddha Guru Gorakhnath (Author), Swami Anant Bharti
SUBJECT: Yoga Bija (Text with English-Hindi Translation) | योग बीज
CATEGORY: Yoga Books
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2020
PAGES: 131
BINDING: Paper Back
WEIGHT: 157 g.

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Description

Author :- Siddha Guru Gorakhnath (Author), Swami Anant Bharti (Editor), Swami Anant Bharti & Abhay Kumar Shandilya (Translator)

भूमिका

योगबीज ग्रन्थ की रचना कब और किसके द्वारा हुई है, इस विषय में प्रमाणपूर्वक कुछ भी कह पाना अद्यावधि सम्भव नहीं है। यह स्वतन्त्र गवेषणा का विषय है, किन्तु इतना निश्चित कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ गुरुपरम्परा में पर्याप्त समय से प्रचलित रहा है, और इसका उल्लेख समय-समय पर नवीन और प्राचीन आचार्यों ने अनेक बार किया है।

यह भी स्मरणीय है कि उपनिषद् संग्रह में मोतीलाल बनारसी दास द्वारा प्रकाशित एक सौ अ‌ट्ठासी उपनिषदों में अन्यतम योगशिखोपनिषद् के प्रथम अध्याय से इसका पर्याप्त साम्य है। इस साम्य को हम किसी एक द्वारा दूसरे की शब्दावली का संकलन भी कह सकते हैं, क्योंकि दोनों में अन्तर मुख्य प्रतिपाद्य अर्थ की प्रतिपादक शब्दावली में प्रायः नहीं है। अन्तर केवल प्रतिपाद्य की उपस्थापक शब्दावली, जिसे दूसरे शब्दों में भूमिका शब्दावली भी कह सकते हैं, में ही प्राप्त है। उदाहरणार्थ-

1. अचिन्त्यशक्तिमान्योगी नाना रूपाणि धारयेत्। यो.बी. 54, यो.शि. 1. 14

2. अजरामरपिण्डो यो जीवन्मुक्तः स एव हि। यो.बी., 193 यो.शि. 1. 167

3. अणिमादिपदं प्राप्य राजते राजयोगतः। यो.बी. 163 यो. शि. 1.138

4. अधस्तात्कुञ्चनेताशु कण्ठसंकोचने कृते। यो.बी. 116, यो.शि. 111.

इस प्रकार समान शब्दावली और कहीं-कहीं एक दो शब्दों के अन्तर के साथ साम्य वाले श्लोकार्थ 364 में से 266 अर्थात् तिहत्तर प्रतिशत (73%) से कुछ अधिक ही है। जिसके आधार पर यह कल्पना करना कि इनके लेखकों में से अन्यतम ने द्वितीय का अनुहरण ही नहीं अनुकरण किया है, अनुचित न होगा।

इस ग्रन्थ में वक्ता के रूप में ईश्वर, जिन्हें आदिनाथ एवं शिव भी कहा जाता है, एवं श्रोता के रूप में देवी पार्वती, जिन्हें कभी-कभी सुरेश्वरी के नाम से भी सम्बोधित किया गया है, निबद्ध है। ग्रन्थ का प्रतिपाद्य यद्यपि योग सामान्य कहा जा सकता है, किन्तु ग्रन्थकर्त्ता का सर्वाधिक बल प्राणायाम साधना है, उसकी मान्यता है, कि मोक्ष ज्ञान से नहीं योग से ही प्राप्त होता है, और योग के विविध मार्गों में प्राणायाम सर्वोत्तम उपाय है।

उसके बिना मोक्ष की प्राप्ति की बात सोचना निरर्थक है’ तथा प्राणजय सिद्ध होने पर जीवात्मा और परमात्मा का लय स्वतः हो जाता है, जिसके फलस्वरूप साधक को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

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