पूज्यपाद स्वामी रामदेवजी के इस महान्, अनमोल एवं लोकप्रिय पुस्तकरत्न ‘योग-साधना एवं योग-चिकित्सा रहस्य’ का अति अल्प समय में पच्चीसवाँ संस्करण योगसाधक एवं साधिकाओं के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें अतीव हर्षानुभूति हो रही है। सन् २००२ ई० में इस कृति का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ था। उस समय अनुमान लगाना कठिन था कि आगामी दो वर्षों में ही लाखों लोग इसको सहर्ष स्वीकार कर हमारा उत्साह बढ़ायेंगे और सेवाकार्यों में सहभागी बनेंगे।
अब पहले से अधिक उत्तम कोटि के कागज पर बहुरंगी छपाई के साथ यह संस्करण प्रस्तुत किया जा रहा है। फोटो भी दोबारा खिंचवाकर दिये जा रहे हैं, जो पूर्व-संस्करणों के चित्रों से अधिक स्पष्ट एवं आकर्षक हैं। इतने परिवर्तन, संशोधन और मुद्रण-व्यय की वृद्धि के उपरान्त भी पुस्तक का मूल्य कम रखा गया है, जिससे अधिकतम लोग इससे लाभान्वित हो सकें।
योग एक पूर्ण विज्ञान है, एक पूर्ण जीवन-शैली है, एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है एवं एक पूर्ण अध्यात्म-विद्या है। योग की लोकप्रियता का रहस्य यह है कि यह लिंग, जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, क्षेत्र एवं भाषा-भेद की संकीर्णताओं से कभी आबद्ध नहीं रहा है। साधक, चिन्तक, वैरागी, अभ्यासी, ब्रह्मचारी गृहस्थ कोई भी इसका अभ्यास कर लाभान्वित हो सकता है। व्यक्ति के निर्माण और उत्थान में ही नहीं, बल्कि परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के चहुंमुखी विकास में भी यह उपयोगी सिद्ध हुआ है।
आधुनिक मानव-समाज जिस तनाव, अशान्ति, आतंकवाद, अभाव एवं अज्ञान का शिकार है, उसका समाधान केवल योग है। योग मनुष्य को सकारात्मक चिन्तन के प्रशस्त पथ पर लाने की एक अद्भुत विद्या है, जिसे करोड़ों वर्ष पूर्व भारत के प्रज्ञावान् ऋषि-मुनियों ने आविष्कृत किया था। इसे ही योगसूत्र में महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के रूप में ग्रन्थबद्ध किया है। इसी अष्टांग योग का उपदेश और अभ्यास पूज्य स्वामीजी अपने प्रवचन एवं योग-प्रशिक्षण में करते-कराते हैं। उनका निष्कर्ष है कि स्वस्थ व्यक्ति और सुखी समाज का निर्माण केवल योग की शरण में जाकर ही हो सकता है।
योग केवल कन्दराओं में रहने वाले वैरागियों, तपस्वियों एवं योगाभ्यासियों की विद्या नहीं है, बल्कि सामान्य गृहस्थ के लिए भी उसकी अतीव आवश्यकता है। यह कितने आश्चर्य का विषय है कि केवल दो सौ वर्ष पुरानी ऐलोपैथी चिकित्सा पद्धति में फँसकर हम अपना आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक शोषण कराने को तो सहज में तैयार हो जाते हैं, लेकिन युगों से चली आ रही उस अति प्राचीन योग-विद्या के प्रति उदासीन रहते हैं, अनभिज्ञ रहते हैं, जो एक प्रामाणिक ही नहीं, वरन् बहुत ही कारगर एवं निःशुल्क चिकित्सा-पद्धति भी है।
यदि योग केवल एक रहस्यमयी विद्या होती, तो योगिराज कृष्ण युद्धभूमि में इसका उपदेश अर्जुन को क्यों देते ? योगऋषि स्वामी रामदेवजी ने गहन गुफाओं में छिपी हुई इस योग-विद्या को भारतीय जनमानस में स्थापित कर, देश ही नहीं, मानवता का भी महान् उपकार किया है। अतः वे भारत सहित विश्व के करोड़ों लोगों की श्रद्धा एवं आस्था के केन्द्र हैं।
योग एवं आयुर्वेद-सहित प्राचीन अध्यात्मविद्या के शून्य से शिखर तक के आरोहण की यात्रा में आप सबका जो सहयोग मिला, उससे हम सहज ही उत्साहित और आश्वस्त हैं। आशा है, आपके निरन्तर सहयोग, सद्भाव, श्रद्धा एवं समर्पण से भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार का अभियान निरन्तर उत्कर्ष की ओर गतिशील होता रहेगा।
पच्चीसवें संस्करण पर विशेष-
हमें अतीव प्रसन्नता है कि भारतीयों में प्राचीन ऋषि-परम्परा के प्रति गौरव व स्वाभिमान बढ़ता जा रहा है निश्चित ही भारत-भाग्योदय का समय आ गया है। इसका प्रमाण है विगत मात्र तीन वर्षों में करोड़ों लोग योग को अपने जीवन में अपनाकर दूसरों को योग-मार्ग पर बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
अत्यल्प समय में ही इस ‘योग-साधना एवं योग-चिकित्सा रहस्य’ पुस्तक का बारह भाषाओं में लाखों की संख्या में छपना अपने आप में सुखद एवं संसार की एक आश्चर्यजनक घटना या परमात्मा की लीला ही कही जा सकती है। पुनः प्रबुद्ध पाठकों के प्रति आभार-प्रदर्शन एवं धन्यवाद ज्ञापन करते हुए यह कहना चाहूँगा कि सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक जागरण के इस पावन अनुष्ठान में हमें आपका प्रेम एवं स्नेह पूर्ववत् नित्य निरन्तर प्राप्त होता रहेगा।
आचार्य बालकृष्ण
Reviews
There are no reviews yet.