विश्वासघात
Vishwasghat

150.00

Description

सम्पादकीय उपन्यासकार गुरुदत्त का जन्म जिस काल और जिस प्रदेश में हुआ है उस काल में भारत के राजनीतिक क्षितिज पर बहुत कुछ विचित्र घटनाएँ घटित होती रही . हैं ।  vishwasghat गुरुदत्त जी इसके प्रत्यक्षद्रष्टा ही नहीं रहे अपितु यथासमय वे उसमें लिप्त भी रहे हैं । जिन लोगों ने उनके प्रथम दो उपन्यास ‘ स्वाधीनता के पथ पर और ‘ पथिक ‘ को पढ़ने के उपरान्त उसी शृङ्खला के उसके बाद के उपन्यासों को पढ़ा है । उनमें अधिकांश ने यह मत व्यक्त किया है कि उपन्यासकार आरम्भ में गांधीवादी था , किन्तु शनैः शनैः वह गांधीवाद से निराश होकर हिन्दुत्ववादी हो गया है । जिस प्रकार लेखक का अपना दृष्टिकोण होता है उसी प्रकार पाठक और समीक्षक का भी अपना दृष्टिकोण होता है । पाठक अथवा समीक्षक अपने दृष्टि कोण से उपन्यासकार की कृतियों की समीक्षा करता है । उसमें कितना यथार्थ होता है , यह विचार करने की बात है । इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि व्यक्ति की विचारधारा का क्रमशः विकास होता रहता है । यदि हमारे उपन्यासकार गुरुदत्त के विचारों में विकास हुआ है तो वह प्रगतिशीलता का ही लक्षण है । किन्तु हम उन पाठकों और समीक्षकों के इस मत से सहमत नहीं कि आरम्भ का गांधीवादी गुरुदत्त कालान्तर में गांधी – विरोधी रचनाएँ लिखने लगा । इस दृष्टि से गुरुदत्त की विचारधारा में कहीं भी परिवर्तन हमें नहीं दिखाई दिया । गांधी के विषय में जो धारणा उपन्यासकार ने अपने प्रारम्भिक उपन्यासों में व्यक्त की है , क्रमशः उसकी पुष्टि ही वह अपने अवान्तरकालीन उपन्यासों में करता रहा है । जैसा कि हमने कहा है कि गुरुदत्त प्रत्यक्षद्रष्टा रहे हैं । उन्होंने सन् १६२१ के असहयोग आन्दोलन से लेकर सन् १ ९ ४८ में महात्मा गांधी की हत्या तक की परिस्थितियों का साक्षात् अध्ययन किया है । उस काल के सभी प्रकार के संघर्षों को न केवल उन्होंने अपनी आँखों से देखा है अपितु अंग्रेजों के दमनचक्र , अत्याचारों और अनीतिपूर्ण आचरण को स्वयं गर्मदल के सदस्य के रूप में अनुभव भी किया है । अतः लेखक ने घटनाओं के तारतम्य का निष्पक्ष चित्रण करते हुए पाठक पर उसके स्वाभाविक प्रभाव तथा अपने मन की प्रतिक्रियाओं का अंकन किया है । ‘ स्वाधीनता के पथ पर ‘ , ‘ पथिक ‘ , स्वराज्यदान ‘ , ‘ दासता के नये रूप ‘ , ‘ विश्वासघात ‘ और ‘ देश की हत्या ‘ को जो पाठक पढ़ेगा उसको यह सब स्वयं स्पष्ट हो जाएगा ।

श्री गुरुदत्त के उपन्यासों को पढ़कर उनका पाठक यह सहज ही अनुमान लगा लेता है कि राजनीति के क्षेत्र में वे राष्ट्रीय विचारधारा के लेखक है । सच्चे राष्ट्रवादी की भांति वे देश के कल्याण की इच्छा और इस मार्ग पर चलते विघ्न संतोषियों पर रोष व्यक्त करते हैं । लेखक के राष्ट्रीय विचारों को ईर्ष्यावश साम्प्रदायिक कहनेवाले सम्भवतया यह भूल जाते हैं कि उनके किसी भी उपन्यास में कहीं भी किसी सम्प्रदाय विशेष की उन्नति या उत्तमता की चर्चा तथा अन्य सम्प्रदायों का विरोध नहीं किया गया है । हाँ , इसमें कोई सन्देह नहीं कि अपनी कृतियों में वे स्थान – स्थान पर राष्ट्रवादियों के लिए हिन्दुस्तानी अथवा भारतीय अथवा ‘ हिन्दू ‘ शब्द का प्रयोग करते हैं । यह सम्भव है कि भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकार , विशेषतया कांग्रेसी और कम्युनिस्ट ‘ हिन्दू ‘ शब्द को इसलिए साम्प्रदायिक मानते हों कि कहीं इससे मुसलमान रुष्ट न हो जाएँ । वास्तव में हमारा लेखक तो हिन्दुत्व और भारतीयता को सदा पर्यायवाची ही मानता आया इसके साथ ही इस उपन्यास में कांग्रेसी नेताओं और कांग्रेस सरकार के कृत्यों पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है । यह सब प्रसंगवशात् महीं अपितु कथानक की मांग को देखकर यह विशद वर्णन स्वाभाविक ही था । इस काल पर जिसने भी उपन्यास लिखे गये हैं , लेखक के दृष्टिकोण में होने के कारण नेताओं तथा दल की राजनीति पर विभिन्न प्रकार की आलोचना हुई हो किन्तु निष्पक्ष लेखक अथवा उपन्यासकार तथ्यों की अनदेखी नहीं कर सकता । यही मुरुदत्त जी ने अपने इस उपन्यास में किया है ।

विश्वासघात देश में नदी – नाले हैं , पहाड़ तथा झीलें हैं , फूलों से लदी घाटियाँ है , ये सब बहुत सुन्दर हैं परन्तु इनसे भी सुन्दर स्थान अन्य देशों में हो सकते हैं । देश – प्रेम नदी – नालों , पहाड़ तथा झीलों से प्रेम को नहीं कहते , देश – प्रेम देश में बसे लोगों से प्रेम को कहते हैं । देश की बहुसंख्यक समाज का अहित करना , उनकी सभ्यता तथा संस्कृति का विनाश करना देश के साथ द्रोह करना ही होगा । कांग्रेस को तन – मन – धन से सहायता दी देश की बहुसंख्यक समाज अर्थात् हिन्दू समाज ने परन्तु हिन्दुओं के साथ विश्वासघात करती रही है कांग्रेस । इसी विश्वासघात की यह कहानी है ।

Additional information
Author

Reviews (0)

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “विश्वासघात
Vishwasghat”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About Gurudutt
वैद्य गुरुदत्त, एक विज्ञान के छात्र और पेशे से वैद्य होने के बाद भी उन्होंने बीसवीं शताब्दी के एक सिद्धहस्त लेखक के रूप में अपना नाम कमाया। उन्होंने लगभग दो सौ उपन्यास, संस्मरण, जीवनचरित्र आदि लिखे थे। उनकी रचनाएं भारतीय इतिहास, धर्म, दर्शन, संस्कृति, विज्ञान, राजनीति और समाजशास्त्र के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय शोध-कृतियों से भी भरी हुई थीं।
Shipping & Delivery