विश्वेवेदाः
Vishveveda

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‘विश्वे देवाः’ पुस्तक लिखने का विचार ‘ विज्ञान और विज्ञान ‘ लिखते समय उत्पन्न हुआ था । उस पुस्तक को लिखते हुए ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के एक सो चौसठवें कुछ मंत्र पढ़ने को मिले थे । उनको पढ़कर ऐसा प्रतीत सूक्त के हुआ कि यह सूक्त विज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है । अतः इसका अनुवाद और इसका भाष्य पाठकों के सम्मुख रखने का मैंने निश्चय कर लिया । इस पुस्तक को पाठकों की सेवा में हुए मुझे प्रसन्नता है कि मैंने अपनी करते प्रस्तुत योग्यतानुसार इस विषय को स्पष्ट करने का प्रयास किया है । यह प्रयास सफल हुआ है अथवा असफल , इसका निर्णय अन्य विद्वानों के लिये छोड़ , यहाँ इस पुस्तक के लिखने में और प्रकाशित करवाने में जिन – जिन महानुभावों की सहायता मिली है , उनका धन्यवाद करना अपना कर्त्तव्य मानता हूँ । सबसे पहले महर्षि स्वामी दयानन्द जी ‘ सरस्वती ‘ के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करना चाहता हूँ । उन्होंने ही वेदों के सम्बन्ध में एक नवीन दिशा प्रदान की है जिससे यह सम्भव हो सका है कि वेद को ज्ञान – विज्ञान का ग्रन्थ समझ सका हूँ । ज्ञान – विज्ञान में ही आधिभौतिक , आधिदैविक और आध्यात्मिक भाव समाहित हैं । इस कारण वेद का नवीन स्वरूप मस्तिष्क में बना तो वर्त मान पुस्तक लिखी जानी सम्भव हो सकी । कुछ सहायता वेद के सायण भाष्य और श्री पण्डित जयदेव विद्यालंकार के हिन्दी भाष्य से भी प्राप्त हुई है । इस पुस्तक के लिखने में श्री पण्डित दीनानाथ सिद्धान्तालंकार ने भी बहुत सहयोग दिया है । इसके लिये मैं उनका आभारी हूँ ।

  •                                                                                                     भूमिका

विश्व के देवता से अभिप्राय विश्व में उपस्थित दिव्य शक्तियाँ है । विश्व का अर्थ यहाँ समस्त है । समस्त पृथिवी की ही नहीं , जगत् की ही नहीं , प्रत्युत पूर्ण व्योम में उपस्थित दिव्य शक्तियों से यहाँ अभिप्राय है : व्योम का शाब्दिक अर्थ है अवकाश अर्थात् पूर्ण स्थान ( space ) 1 अतः इस पूर्णं स्थान के देवताओं से अभिप्राय हुग्रा विश्वे देवाः : वेद में इनका वर्णन है । कई सूक्तों के देवता विश्वे देवा : हैं । अर्थात् वेद के उन सूक्तों में इन देवताओं का वर्णन है । वे देवता कौन – कौन से हैं और वे कहाँ से आये ? विश्व में वे क्या कर रहे हैं और कब तक करते रहेंगे ? यही इन सूक्तों का विषय है । ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के १६४ वें सूक्त का देवता मुख्य रूप से विश्वे देवा : है । कुछ एक मन्त्रों के अन्य देवता हैं परन्तु वे भी विश्वे देवाः के अन्तर्गत ही आ जाते हैं ।

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वैद्य गुरुदत्त, एक विज्ञान के छात्र और पेशे से वैद्य होने के बाद भी उन्होंने बीसवीं शताब्दी के एक सिद्धहस्त लेखक के रूप में अपना नाम कमाया। उन्होंने लगभग दो सौ उपन्यास, संस्मरण, जीवनचरित्र आदि लिखे थे। उनकी रचनाएं भारतीय इतिहास, धर्म, दर्शन, संस्कृति, विज्ञान, राजनीति और समाजशास्त्र के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय शोध-कृतियों से भी भरी हुई थीं।
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