प्रकाशकीय
कीचड़ में से कमल उत्पन्न होने की लोकोक्ति हमने पढ़ी व देखी है। जीवन में अनेकों बार ऐसा घटित होता है कि विश्वास नहीं होता। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि चुनौती भी प्रायः शक्तिवान् ऊर्जावान् जनों से सृजन करवा लेती है। ऐसा ही कुछ इस ग्रन्थरत्न के लेखन में हुआ। चिन्तनधर्मा आचार्य श्री अभयदेवजी जब विदेशी शासनकाल में कारागार में बन्द थे तब इसके लेखन का प्रारूप लेखक के मन में बना और इसका बहुत-सा भाग वहीं लिखा गया।
वैदिक विनय ग्रन्थ कई बार प्रकाशित हुआ है। लग्नशील प्रकाशकों ने पाठकों के लाभार्थ इसका प्रकाशन किया है। प्रत्येक समय की अपनी परिस्थितियाँ होती हैं और उनके चलते जो जितना समाजहित में सृजन कर सके उसका सकारात्मक मूल्याङ्कन किया जाना चाहिए।
अब प्रकाशन जगत् में विकसित हो रही तकनीक का लाभ हमें मिल रहा है जो भूतकाल में नहीं था। वैदिक विनय के इस संस्करण को पाठकों की क्रम शक्ति की पहुँच तक बनाये रखने के प्रयास तक जितना सुन्दर इसे बनाया जा सकता, हमने करने का यत्न किया है। वैदिक विनय की लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हमारे द्वारा इसका यह आठवाँ संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है।
विक्रम सम्वत् की तिथियों के अनुसार प्रतिदिन वेद के एक मन्त्र का वाचन और मनन करने से निश्चितरूप से पाठकों को शान्ति मिलेगी तथा जीवन का सकारात्मक पक्ष दर्शन होकर अनेकों गुत्थियाँ खुलेंगी । आशा है आप इसके अध्ययन-मनन करने के साथ परिचितों को इसे भेंट देकर उनको भी लाभ पहुँचायेंगे ।
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