वैदिक पुष्पांजलि
Vedic Pushpanjali

300.00

AUTHOR: Acharya Ramprasad Vedalankar (आचार्य रामप्रसाद वेदालंकार)
SUBJECT: Vedic Pushpanjali | वैदिक पुष्पांजलि
CATEGORY: Vedic Literature
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2016
PAGES: 580
PACKING: Hard Cover
WEIGHT: 1026 g.

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Description

प्राक्कथन

वैदिक पुष्पाञ्जलि पुस्तक के लेखक वेदरत्न प्रो० रामप्रसाद वेदालङ्कार भूतपूर्व उपकुलपति गुरुकुल काङ्गड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार हैं। इन्होंने वेदों के चुने हुए आध्यात्मिक मन्त्रों का संचय करके चार भागों में सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की है। आचार्य रामप्रसाद वेदालङ्कार आर्य जगत् के सुविख्यात वैदिक विद्वान् एवम् उच्चकोटि के प्रवक्ता थे। गुरुकुलीय जीवन में प्रारम्भ से ही वेदों को पढ़ना और पढ़ाना अपना कर्तव्य समझते थे।

गुरुकुल काङ्गड़ी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को एवम् आर्यसमाज के उत्सवों में दिन-रात, उठते-बैठते वेदों की ही चर्चा करते रहते थे। वेदों पर साधिकार पूर्वक प्रवचन देते थे, प्रवचन देने की शैली इतनी अच्छी थी कि श्रोता सुनकर मुग्ध होते और सभा में से उठने की इच्छा नहीं होती थी । प्रायः गृहाश्रम पर वेदों के स्वाध्यायार्थ जोर डालते रहते थे ।

पाठकों के लाभार्थ आपने “वैदिक पुष्पाञ्जलि” नामक अमर ग्रन्थ लिखकर देश जाति पर बड़ा भारी उपकार किया है। मैंने एक दिन आचार्य जी से पूछ लिया कि आप ने “वैदिक पुष्पाञ्जलि” नामक ग्रन्थ में १०० मन्त्रों को न रखकर १०५, १०२, १०१ क्यों रखे हैं ? उन्होंने उत्तर दिया कि भर्तृहरि नीति- शतक के आधार पर अनुकरण किया गया है।

मृत्यु से तीन दिन पूर्व आचार्य रामप्रसाद जी वेदालङ्कार ने “अनीता आर्ष प्रकाशन” पानीपत द्वारा प्रकाशित “वैदिक पुष्पाञ्जलि” को देखकर हृदय से गद्गद काफी प्रसन्न हुए और आर्यश्रेष्ठी लाला आदित्यप्रकाश जी आर्य और मुझ ब्र० नन्दकिशोर को पानीपत से प्रस्थान करते हुए ज्वालापुर तक याद करते रहे कि यह पुस्तक बहुत ही सुन्दर छपी है। विशिष्ट आयं साहित्य एवं वैदिक धर्म की सेवा के कारण मरणोपरान्त “वेद-वेदाङ्ग” पुरस्कार से आर्यसमाज सान्ताक्रूज मुम्बई तथा आर्यसमाज बड़ा बाजार पानीपत ने आप को सम्मानित किया ।

स्वाध्याय-प्रेमियों ने आचार्य जी द्वारा लिखित अमौलिक ग्रन्थ “वैदिक पुष्पाञ्जलि” प्रथम संस्करण को काफी पसन्द किया जिससे प्रथम संस्करण समाप्त हो गया, पाठकों की मांग पर पुनः श्री लाला आदित्यप्रकाश जी आर्य ने अनीता आर्ष प्रकाशन द्वारा प्रकाशित करके आचार्य रामप्रसाद वेदालङ्कार को सच्ची श्रद्धाञ्जलि अर्पित की है। इस पुस्तक को सुन्दर से सुन्दर “सत्यं शिवं सुन्दरम्” बनाने का श्रेय श्री रमेशचन्द आर्य कैलाशनगर दिल्ली को जाता है। आशा है जिज्ञासु पूर्व की भाति द्वितीय संस्करण को अपना कर अपने जीवन में आत्मसात् करेंगे ।

भवदीय :
आचार्य ब्र० नन्दकिशोर “कल्पतरु”
नेपाली फार्म पो० सत्यनारायण मन्दिर, जि० देहरादून (उत्तराखण्ड)

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