प्राक्कथन
जन्मना जायते शूद्रः, संस्काराद् द्विज उच्यते।
प्राचीन ग्रन्थों में कथन है कि, मनुष्य शूद्र के रूप में उत्पन्न होता है तथा संस्कार से ही द्विज बनता है। संस्कार हमारे चित्त पर पड़ी वे शुभ व दिव्य छाप हैं, जो हमें अशुभ की ओर जाने से रोकती है तथा और अधिक शुभ व दिव्यता की ओर जाने के लिए प्रेरित करती हैं।
ऋषियों ने हमारे अन्तःकरण को हर क्षण संस्कारों से आप्लावित किए रखने के लिए कुछ नित्यकर्मों का विधान किया है, जिनमें प्रातः जागरण से लेकर रात्रि-शयन पर्यन्त हमारी सारी दिनचर्या आ जाती है। यदि हम इन नित्यकर्मों को अपने दैनिक जीवनचर्या का अङ्ग बना लेते हैं तो हमारा जीवन साधारण मनुष्य की चेतना से ऊपर उठकर देवताओं की दिव्य चेतना की ओर अग्रसर होने लगता है। यह ही हमारे ‘पतंजलि योगपीठ संस्था’ का लक्ष्य है कि मनुष्य अपने व्यक्तित्व के प्रत्येक भाग को दिव्य बनाए, चाहे वह उसका शरीर हो, उसकी वाणी हो या फिर उसका मन हो।
इसी लक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए प्रस्तुत ‘वैदिक नित्यकर्म-विधि’ पुस्तिका में ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ आदि नित्यकर्मों के मन्त्रों को सरलार्थ सहित प्रस्तुत किया गया है ताकि हम मन्त्र के अन्तर्गत दिये जाने वाले सन्देश, आदेश या शिक्षा को जान सकें और उसे अपने जीवन का अङ्ग बनाकर जीवन को सच्चे अर्थों में सार्थक कर सकें।
– स्वामी रामदेव
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