प्राक्कथन
परोपकारिणी सभा आर्य जाति को ‘वैदिक इस्लाम’ नाम की यह मौलिक व खोजपूर्ण पुस्तक भेंट कर रही है। यह पुस्तक सभा के डॉ० धर्मवीर युग की अन्तिम देन है। आपने इसकी पाण्डित्यपूर्ण भूमिका लिखना स्वीकार कर लिया था। आपके दुःखद और असामियक निधन से ही इसके प्रकाशन में बहुत विलम्ब हो गया।
देश-विदेश में वैदिक विचारधारा के अनुकूल तथा प्रतिकूल क्या-क्या लिखा व कहा जा रहा है, इसकी आप पूरी-पूरी जानकारी प्राप्त करते थे। सभा के सब विद्वानों को ऐसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर लिखने की प्रेरणा देकर पठनीय लेख दिलवाते रहते थे। उनकी सजगता पं० लेखराम जी, पं० धर्मदेव जी, पं० गंगाप्रसाद उपाध्याय पर्यन्त आर्य विचारकों व पत्रकारों का स्मरण करवाती थी। वैदिक धर्म विषयक प्रत्येक शंका व प्रश्न का परोपकारी में उत्तर देने की जो तत्परता आपने दिखाई यह पुस्तक उसी श्रृंखला की एक कड़ी है।
उनके जीवन काल में भी इस विषय में कई बार परोपकारी में लिखा गया। उन्हीं से विचार करके ऐसी दो-चार पुस्तकें लिखने व प्रकाशित करने की योजना बनाई गई। इस पुस्तक का लेखन कार्य हैदराबाद में क्रान्तिवीर पं० नरेन्द्र जी की कुटी के द्वार पर बैठकर आरम्भ किया गया। आर्यसमाज के युवा विचारक श्री शत्रुञ्जय जी के निवास पर इसे लगभग पूरा किया गया। अन्तिम तीन चार पृष्ठ भी उसी यात्रा में अपनी ज्येष्ठ पुत्री श्रीमती प्रतिभा के निवास पर मुम्बई में लिखे गये।
लेखक ने पं० लेखराम, स्वामी दर्शनानन्द, श्रद्धेय लक्ष्मण आर्योपदेशक, पं० चमूपति तथा पं० गंगाप्रसाद उपाध्याय की साहित्यिक परम्परा को अखण्ड बनाय रखने का भरपूर प्रयास किया है। गुणीजन इसे परखें। इसका मूल्याङ्कन करें। आर्य जनता इसकी सहस्रों लाखों प्रतियों का वितरण व प्रसार करके वैदिक धर्म व ऋषि दयानन्द की दिग्विजय का डंका बजाकर गौरवान्वित अनुभव करेगी, ऐसा हमें विश्वास है।
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