यह सब विद्वानों को विदित है कि हम सभी धर्म अनुयायियों के लिए वेद ही परम प्रमाण है जन्म से लेकर मरण पर्यंत सब संस्कार संबंधी सब व्यवहार वेदों पर ही आश्रित है अब भी धर्म प्रधान लोगों के लिए वेद ही परम प्रमाण है इसलिए हमारे ब्राह्मणों ने अभी तक बड़े यत्न से उनको ऐसे कंठस्थ करके सुरक्षित रखा है कि जिससे उनमें एक स्थान पर भी स्वर मात्रा वर्ण की कोई त्रुटि नहीं मिलती ऐसा होने पर यह विचार पैदा होता है कि ऐसा क्या कारण है कि जिससे वैदिक मत के अनुयाई प्रधानता से वेदों का ही आश्रय लेते हैं
यदि हम ऐतिहासिक दृष्टि से इस पर विचार करें तो हमें यह ज्ञात होता है कि पूज्य महर्षि ब्रह्मा से लेकर स्वामी दयानंद सरस्वती पर्यंत जो ऋषि मुनि और आचार्य हुए उन्होंने वेद सब विद्याओं की और वर्तमान, भूत, भविष्य के लिए उपयोगी ज्ञान की खान है ऐसा माना है वेदों मे जिस प्रकार का सूक्ष्म और जो इंद्रियों से जाना नहीं जा सकता ज्ञान है उस प्रकार का और कहीं नहीं है
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