- प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश
कथानक का आधार – विषय राजनीति में लैफ्टिस्ट ( वामपक्षीय ) भले ही पार्लियामेन्टरी सिस्टम की उपज हों , वास्तव में वामपक्षीय विचारधारा के लोग तो मानव – इतिहास के आदि काल से चले आ रहे हैं । जब से मनुष्य ने अपनी निज की , समाज की तथा संसार की समस्याओं पर विचार करना आरम्भ किया है , तब से ही दो प्रमुख विचार मनुष्य के मन को आन्दोलित करते रहे हैं । वर्तमान और भविष्य ये उन दो विचारधाराओं की धुरी रहे है । लैफ्टिस्ट ( वामपक्षीय ) केवल वर्तमान की ओर ध्यान रखने वाले रहे हैं । उनका दृष्टि – क्षेत्र सदा जन्म से मरण तक सीमित रहा है । राजनीति में सभी लैफ्टिस्ट सामयिक सफलता को ही मुख्य मानते हैं । प्रायः राजनीतिक लेफ्टिस्ट , जब सीमित काल में सफलता नहीं पा सकते , तो क्रान्ति की माँग करने लगते हैं । उन्हें सफलता में देरी असह्य हो जाती है । सफलता प्राप्त करने के लिए समय अल्प होने के कारण , वे उचित और अनुचित उपायों का विचार भी छोड़ बैठते हैं । इसके विपरीत राईटिस्ट ( दक्षिणपंथीय विचार के लोग ) वर्तमान जीवन को विराट् जीवन का एक बहुत छोटा भाग मानते हैं । इनका दृष्टि – क्षेत्र अति दूर तक फैला हुआ और गम्भीर होता है । उनको सफलता प्राप्त करने के लिये घबराहट , उतावली , निराशा नहीं होती । वे क्रान्ति को आवश्यक और लाभदायक नहीं मानते और न ही वे सफलता करने में अनुचित उपाय प्रयोग करना उचित समझते हैं । निज समाज की अथवा संसार की उन्नति उपादेय मानते हुए भी , उसको झूठ , दगा अथवा पाप के मार्ग से प्राप्त करने में हानि मानते हैं । यह है सिद्धान्तात्मक भेद वामपक्ष और दक्षिण पक्ष में वाममार्ग मत , मज़हब के क्षेत्र में लैफ्टिज़्म ( वामपक्ष ) है । मज़हब मनुष्य के आचरण तथा मनुष्य और समाज के सम्बन्ध के विषय की बात बताता है । मनुष्य क्या है ? इसका आदि – अन्त कहाँ है ? संसार के साथ इसका क्या सम्बन्ध है ? मानव समाज और व्यक्ति के अधिकारों में सीमा कहाँ है ? इन सब और इसी प्रकार की अनेक अन्य बातों में विवेचना करने कि समय , जो मनुष्य जीवन को जन्म से मरण तक ही मानते हैं , न इसके पहले कुछ था , न इसके पश्चात कुछ रहने को है , अर्थात् संसार के बहते पानी पर एक बुदजबुदा मात्र ही यह है , वे वाम मार्ग के अनुयायी माने जाते हैं । इनके दृष्टिकोण में एक विशेषता यह आ जाती है कि वे जो कुछ भी शरीर के भोग हैं , उनको ही प्रमुख मानते हैं और उनके भोगने के लिए एक अल्प समय ही अपने पास समझते हैं । इनके विपरीत शुद्ध विचारधारा मानने वाले शरीर को गौण मान आत्मा को अपना एक मुख्य अंग मानते हैं । आत्मा को अमर मानते हैं और एक जन्म के कर्मों का फल अगले जन्म तक चलने वाला मानते हैं । उनके लिये किसी दुस्तर – से – दुस्तर कार्य साधन में भी न तो उतावली की आवश्यकता होती है , न ही अनुचित उपायों के प्रयोग की । वे जन्म के पश्चात जन्म तक , किसी भले कार्य के फलीभूत होने की प्रतीक्षा कर सकते हैं । उनके लिये मरण , जीवन के अधिष्ठाता आत्मा के अन्त का सूचक नहीं । यह तो केवल जीर्ण वस्त्र बदलना मात्र है । इस विवेचना को आधार बनाकर इस पुस्तक की रचना की गई है । इस सब का क्या लाभ होगा , इसका मूल्यांकन लेखक ने पुस्तक में किया है । शेष पाठकों के समझने की बात है । जहाँ तक उपन्यास का सम्बन्ध है , सब पात्र और स्थान काल्पनिक है । उपन्यास होने से रोचकता का ध्यान रखा गया है और इस अर्थ किसी बात में कहीं अतिशयोक्ति हो गई हो तो क्षम्य है ।
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