उपनिषद् एवं योगवाशिष्ठ सार
Upnishad Avm Yogvasishtha Saar

270.00

AUTHOR: Dr. Akshay Kumar Gaud (डॉ. अक्षय कुमार गौड़)
SUBJECT: Upnishad Avm Yogvasishtha Saar | उपनिषद् एवं योगवाशिष्ठ सार
CATEGORY: Yoga Book
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2020
ISBN: 9788192009261
PAGES: 307
BINDING: Paper Back
WEIGHT: 280 g.
Description

योग के पाठ्यक्रम के अनुसार

भूमिका

भारतीय वाङ्गमय में उपनिषदों का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वैदिक सूक्तों में जिस दार्शनिक विचारधारा का प्रारुप मिलता है उसका विकसित रुप उपनिषदों में दृष्टिगोचर होता है। वेदरुपी वृक्ष की ब्राह्मण यदि शाखाएँ हैं तथा आरण्यक उन शाखाओं से उत्पन्न पुष्प हैं तो यह भी मानना पड़ेगा कि उस आरण्यक रुपी पुष्प की सुगन्ध उपनिषद् ही है। सभी दार्शनिक एवं धार्मिक सम्प्रदायों की जन्मभूमि ये उपनिषद् ही है। उपनिषदों में अनेक ऐसे मौलिक विचार व उपदेश भरे पड़े हैं जो आज भी मानव की दार्शनिक जिज्ञासा को शान्त करने एवं उसे सत्य का दर्शन कराने में समर्थ हैं। उपनिषद् आरण्यकों के ही विशिष्ट अंग हैं किन्तु वेदों का अन्तिम सार-संग्रह होने से उन्हें वेदान्त की उपाधि प्राप्त है।

भारतीय वेदान्त साहित्य में योगवाशिष्ठ का स्थान भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस ग्रन्थ की प्रामाणिकता इस बात से ही सिद्ध होती है कि कई उपनिषदों के सूत्र इसी से लिए गये हैं। आदिजगद्‌गुरु शंकराचार्य जी ने भी इसके सिद्धान्तों का उपयोग किया है। इसमें अन्य ग्रन्थों की युक्तियों का सहारा नहीं लिया गया है। यह सारा ग्रन्थ प्रत्यक्ष प्रमाण पर आधारित है तथा समस्त मानव जाति के लिए अत्यन्त कल्याणकारी है। यह अद्भुत ग्रन्थ भारत की समस्त दार्शनिक मान्यताओं का सार (निचोड़) है। ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ग्रन्थ के अध्ययन के पश्चात अन्य किसी ग्रन्थ को पढ़ने की आवश्यकता नहीं रह जाती।

उपनिषद् एवं योगवाशिष्ठ दोनों ही ग्रन्थ अद्वैत मत के प्रमाणिक ग्रन्थ हैं। इन दोनों ही ग्रन्थों में अद्वैत धारणा का प्रतिपादन किया गया है। दोनों ग्रन्थों में जीव, जगत, ब्रह्म, अध्यात्म, बन्धन, मोक्ष एवं जीव तथा ब्रह्म का ऐक्य आदि विषयों पर मुख्य रुप से प्रकाश डाला गया है। ये दोनों अद्वैतवादी ग्रन्थ होने से एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में ईशादि दस उपनिषदों एवं योगवाशिष्ठ के मुख्य विषयों का सार रुप में वर्णन किया गया है, अतः इस ग्रन्थ का नामकरण ‘उपनिषद् एवं योगवाशिष्ठ-सार’ किया गया है।

इस ग्रन्थ की रचना योग और वेदान्त के जिज्ञासुओं तथा विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय स्तर पर संचालित योग के स्नातक/परास्नातक पाठ्यक्रम व यू.जी.सी. नेट परीक्षा पाठ्यक्रम के अनुरुप की गई है, साथ ही यह ग्रन्थ योग और दर्शन के क्षेत्र में शोधरत विद्यार्थियों के लिए भी अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा।

ग्रन्थ को पूर्ण करने एवं सरल तथा बोधगम्य बनाने की दृष्टि से क्रमबद्ध ढंग से विभिन्न विद्वानों के विचारों का संकलन किया गया है। हम उन सभी विद्वत्जनों के चरण कमलों में नतमस्तक हैं जिनकी विद्वतापूर्ण व्याख्यात्मक शैली को अपनाकर यह ग्रन्थ पूर्ण किया गया है। इस ग्रन्थ में महात्मा नारायण स्वामी, आचार्य रामनाथ वेदालंकार, स्वामी प्रखर प्रज्ञानन्द सरस्वती, डॉ. राममूर्ति शर्मा, श्री जगदीश चन्द्र मिश्र, श्री नन्दलाल दशोरा आदि के विचार एवं अन्य ग्रन्थों के सहयोग से लेखक द्वारा इस ग्रन्थ को पूर्ण करने का प्रयास किया है।

प्रस्तुत ग्रन्थ की विषयवस्तु को दो भागों में विभक्त किया गया है।

भाग-प्रथम में उपनिषद् का अर्थ एवं विषय-वस्तु, उपनिषदों का वर्गीकरण तथा रचनाकाल, उपनिषद् महावाक्य, उपनिषदों का वर्ण्य विषय, उपनिषदों में ध्यान का स्वरुप। इसके अतिरिक्त भाग-प्रथम में ही ईशावास्योपनिषद्, केनोपनिषद्, कठोपनिषद्, प्रश्नोपनिषद्, मुण्डकोपनिषद्, माण्डूक्योपनिषद, ऐतरेयोपनिषद्, तैत्तिरियोपनिषद्, छान्दोग्योपनिषद्, बृहदारण्यकोपनिषद् के मुख्य विषयों का प्रतिपादन किया गया है। भाग-द्वितीय में योगवाशिष्ठ के महत्त्वपूर्ण विषय जैसे योगवाशिष्ठ का परिचय, महत्त्व, आधि-व्याधि की अवधारणा, उत्पत्ति एवं नाश का उपाय, मोक्ष, आत्मज्ञानी पुरुष के लक्षण, मुक्ति के चार आयाम, ज्ञान का महत्व, ज्ञान प्राप्ति के साधन, ज्ञान की सात भूमिकाएँ, सुख द्वारा आनन्द की पराकाष्ठा, योगाभ्यास की बाधाओं को दूर करने के उपाय, सत्वगुण का विकास, ध्यान द्वारा परम पद की प्राप्ति आदि विषयों का उल्लेख किया गया है।

पाठकों एवं योग के विद्यार्थियों के लिए इस ग्रन्थ को सरल एवं बोधगम्य बनाने का यह मेरा छोटा सा प्रयास है। आशा है कि सुधीजन मेरी त्रुटि को क्षमा करते हुए अपने विचार एवं सुझाव प्रस्तुत करने की कृपा करेंगे, जिससे यह ग्रन्थ और अधिक सरल, बोधगम्य एवं उपयोगी हो सकेगा।

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