भूमिका
भारतीय ज्ञान परम्पराओं में सबसे समृद्ध एवं शक्तिशाली स्रोत उपनिषद् हैं। भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ परम्पराओं का बीजारोपण प्रायः उपलब्ध सभी उपनिषदों में हुआ है। जिनमें से योग भी एक है, जो भारतीय संस्कृति की विश्व को एक अमूल्य देन है।
उपनिषदों में योग-विद्या का वर्णन किसी न किसी रूप में देखने को मिलता ही है। उपनिषदों की संख्या लगभग 108 मानी गई है, जिनमें कहीं-कहीं योग-विद्या का वर्णन किया गया है। किन्तु कुछ उपनिषद् ऐसे भी हैं जिनमें मुख्य रूप से केवल योग के विषयों का ही वर्णन विशेष रूप से किया गया है जैसे षडूंग योग, अष्टांगयोग (यम-नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि), हंसविद्या, प्रणवोपासना, नाद, नादानुसंधान, चक्र, नाड़ी, मुद्रा, बन्ध, कुण्डलिनी, मन, इन्द्रियादि, मंत्रयोग, लययोग, हठयोग, राजयोग- जिन्हें महायोग या चतुर्विध योग के नाम से अभिहित किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक उपनिषद योगविज्ञान में ऐसे दस उपनिषदों के कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की चर्चा की गई है जिनमें मुख्य रूप से योग के विभिन्न विषयों का वर्णन स्पष्ट रूप से किया गया है। इस पुस्तक उपनिषद योगविज्ञान की विषयवस्तु में प्रथम श्वेताश्वतरोपनिषद् के अन्तर्गत परिचय, ध्यानयोग विधि महत्त्व, योग के लिए उपयुक्त स्थान, प्राणायाम परिभाषा प्रकार क्रम प्रारम्भिक लक्षण, परमेश्वर का स्वरूप महत्ता, भगवत्प्राप्ति के उपाय, मोक्ष की प्राप्ति आदि विषयों का विशेष रूप से वर्णन किया गया है।
द्वितीय ध्यानबिन्दु उपनिषद् में परिचय, ध्यानयोग का महत्त्व, प्रणव का स्वरूप, प्रणव ध्यान की विधि, नादानुसंधान द्वारा आत्मदर्शन। तृतीय नादबिन्दु उपनिषद् में परिचय, हंसविद्या, ओंकार की बारह मात्राएं एवं प्राणों के विनियोग का फल, नादानुसंधान, नाद के प्रकार, मनोलय की स्थिति। चतुर्थ तेजोबिन्दु उपनिषद् में परिचय, ध्यान का स्वरूप, ध्यानयोग साधक के लक्षण, योगांग, योगसाधना में विघ्न, आत्मानुभूति, मोक्षदायक महामंत्र, जीवनमुक्त एवं विदेह मुक्त की लक्षण। षष्ठ योगकुण्डल्युपनिषद् में – परिचय, प्राणों पर विजय प्राप्त करने के उपाय, प्राणायाम एवं उसके भेद, ब्रह्मप्राप्ति के उपाय का उल्लेख किया गया है।
सप्तम योगचूडामण्युपनिषद् में – परिचय, षडूंगयोग वर्णन (आसन एवं उसका फल, प्राणायाम एवं उसका फल, प्रत्याहार एवं उसका फल, धारणा एवं उसका फल, ध्यान एवं उसका फल तथा समाधि एवं उसका फल)। अष्टम् योगतत्त्वोपनिषद् में – परिचय, योग के भेद (मंत्रयोग लययोग, हठयोग, राजयोग), आहार एवं दिनचर्या, योगसिद्धि के प्राथमिक लक्षण एवं सावधानियाँ। नवम योगराजोपनिषद् में – परिचय, चतुर्विध योग (मंत्रयोग, लययोग, राजयोग, हठयोग), नव-चक्रों का ध्यान एवं फलश्रुति, त्रिशक्ति। दशम योगशिखोपनिषद् में परिचय, योग की परिभाषा, महायोग (मंत्रयोग, लययोग, हठयोग, राजयोग), प्राणायाम एवं बन्च, षट् चक्र, नाड़ी चक्र आदि की सरल शब्दों में व्याख्या की गई है।
चूँकि इस पुस्तक उपनिषद योगविज्ञान में योगविज्ञान सम्बन्धी उपनिषदों का समावेश किया गया है। अतः इस पुस्तक का नामकरण “उपनिषद् योगविज्ञान” किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में योगविज्ञान से सम्बन्धित उन उपनिषदों एवं उनके मुख्य विषयों का चयन किया गया है जो विश्वविद्यालय स्तर पर योगविज्ञान पाठ्यक्रम एवं यू जी.सी. नेट (योग) परीक्षा पाठ्यक्रम में सम्मिलित किये गये हैं। अतः योग के सभी पाठ्यक्रम जैसे स्नातक/स्नातकोत्तर/यू.जी.सी. नेट परीक्षा के साथ साथ योग के क्षेत्र में शोधरत विद्यार्थियों के लिए भी यह सन्दर्भ पुस्तक के रूप में लाभदायक सिद्ध होगी और साथ ही योग के सामान्य जिज्ञासुओं की भी पथ प्रदर्शक साबित होगी, ऐसी मेरी आशा है।
‘मैं’ परमपिता परमात्मा के श्रीचरणों में श्रद्धापूर्वक नमन् करता हूँ जिनकी असीम अनुकम्पा से इस पुस्तक के लेखन का महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हुआ है। उपनिषद् वाड्मय की सम्पूर्ण ऋषिपरम्परा, प्राचीन आचार्यों एवं आधुनिक काल के उन सभी विद्वानों को विनय पूर्वक प्रणाम करता हूँ, जिनके ग्रन्थ एवं लेखन के द्वारा मेरे अध्ययन का मार्ग प्रशस्त हुआ और जिनकी विद्वत्तापूर्ण व्याख्यात्मक शैली को अपनाकर इस छात्रोपयोगी पुस्तक को पूर्ण किया गया।
प्रस्तुत पुस्तक उपनिषद योगविज्ञान का लेखन गहन अध्ययन और टंकन सावधानीपूर्वक किया गया है किन्तु ज्ञान असीम है और मनुष्य अल्प बुद्धि। अतः अल्पज्ञ मनुष्य के कार्य में त्रुटि का होना बहुत सहज एवं स्वाभाविक ही है। इसलिए विद्वतजनों से विनम्र निवेदन है कि मेरे दूरभाष एवं ई-मेल पर इस पुस्तक की विशेषताओं अथवा त्रुटियों के साथ पुस्तक के सम्बन्ध में अपने अमूल्य विचार या सुझाव से अवश्य अवगत करायें, जिससे पुस्तक के आगामी संस्करण को संशोधित करके और अधिक उपयोगी बनाया जा सके।
डॉ. अक्षय कुमार गौड़
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