वेदों की शिक्षाएँ (8 खंडों का सेट)
Teachings of Vedas (Set of 8 Volumes)

9,800.00

AUTHOR: Acharya Balakrishna
SUBJECT: वेदों की शिक्षाएँ | Teachings of Vedas
CATEGORY: Vedas
LANGUAGE: Sanaskrit – Hindi
EDITION: 2022
PACKING: 8 Volumes
PAGES: 10400
BINDING: Hard Cover
WEIGHT: 17,640 GRM
Description

सम्पादकीय

वेद परमात्मा द्वारा प्रदत्त प्राचीनतम ज्ञान है। विश्वसाहित्य में वेदों का सर्वोच्च एवं गौरवपूर्ण स्थान है। प्राचीनकाल से ही वेदों को ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति एवं सभ्यता का उद्गम स्थान माना जाता रहा है ‘वेदोऽखिलो धर्ममूलम्’ अर्थात् समस्त धर्म का मूल वेद है। वेदों की सर्वज्ञानमयता प्रतिपादित करते हुए मनुस्मृति में कहा गया है-

यः कश्चित् कस्यचित् धर्मो मनुना परिकीर्तितः । 
स सर्वोऽभिहितो वेदे सर्वज्ञानमयो हि सः ।।

हम इस संसार में कैसे रहें? हमारा अपने प्रति क्या कर्त्तव्य है? हमारा दूसरों के प्रति, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के प्रति क्या कर्त्तव्य है ? आदि का समाधान हमें वेदों से प्राप्त होता है। महर्षि मनु कहते हैं- ‘वेदश्चक्षुः सनातनम्’ अर्थात् वेद मानवमात्र के लिए सनातन चक्षु हैं सनातनशास्त्र वेद ही समस्त प्राणियों को धारण करते हुए भवसागर से पार होने के साधनभूत हैं।

इनमें आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ भौतिक विज्ञान की भी पराकाष्ठा है। वेदों के अर्थगाम्भीर्य को आत्मसात् कर जन-जन तक उस वैदिक ज्ञानगंगा को पहुंचाने में न जाने कितने साक्षात्कृतधर्मा ऋषियों ने अपने जीवन को समर्पित किया है।

जैसे महाराजा भगीरथ के विषय में कहा जाता है कि वे स्वर्ग से भगवती भागीरथी को गोमुख, गंगोत्री के मार्ग से धरती पर लेकर आये थे और तब से गंगा निरन्तर कल-कल निनाद करती हुई प्रवाहित हो रही है तथा सम्पूर्ण भारत भूमि को शस्य श्यामला बनाये रखने में गंगा का अद्भुत योगदान है, ऐसे ही वैदिक ऋषियों के अन्तःकरणों में सतत प्रवहमान वेदज्ञान गंगा आज भी कोटि-कोटि भारतीयों को श्रेष्ठ जीवन का अमृत पान करा रही है। वेदों के मन्त्रों में ज्ञान-विज्ञान एवं विविध विद्याओं को भिन्न-भिन्न शैलियों में प्रतिपादित किया है।

वेदमाता स्वयं कहती है- भण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्राः हे मेरे अमृत पुत्रो ! यदि तुम जीवन को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाना चाहते हो तो मेरी वेदवाणी को श्रद्धा से सुनो। श्रद्धावान् ही वेदों में निहित अर्थ को सार्थक कर सकता है।

वेदों का ज्ञान सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक है। वह केवल भारतवासियों के लिए नहीं अपितु मानवमात्र के लिए है। वेद का उद्घोष है- ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ अर्थात् संपूर्ण विश्व को आर्य, श्रेष्ठ बनाते हुए आगे बढ़ो। अथर्ववेद के भूमिसूक्त का यह अमर वाक्य कितना उदात्त है- ‘माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:’ अर्थात् यह भूमि मेरी माता है और मैं पृथिवी माता का पुत्र हूँ।
वेद का यह कथन सम्पूर्ण संसार के लिए है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया:, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्’- यह हमारी प्रार्थना है। इस प्रकार के उदात्त विचारों से सम्पूर्ण वैदिक साहित्य ओत-प्रोत है।

इस परमपवित्र वेदज्ञान से संसार को आलोकित करने के लिए अनेक विद्वानों ने वेदभाष्य किये अर्वाचीनकाल में वेदों की परम्परा में महर्षि दयानन्द सरस्वती एवं उनकी शिष्य परम्परा का महनीय योगदान रहा है। जितने भी विद्वानों ने वेदों पर कार्य किया है वे ऋषि दयानन्द से प्रभावित हैं।

वेदमन्त्रों की सुगम व्याख्या के लिए उन विद्वानों ने अनेक प्रयास किए हैं तथा एक ही मन्त्र की विभिन्न दृष्टिकोणों से व्याख्या कर जन-जन तक वेद की शिक्षाओं को पहुंचाने का अभिनन्दनीय कार्य किया है। विद्वानों द्वारा समय-समय पर वेदमन्त्र व्याख्याओं का जो कार्य किया गया है वह वर्तमान में या तो अप्रकाशित है

अथवा सुगमता से सबके लिए उपलब्ध नहीं है। इन सभी ग्रन्थों को एक साथ संगृहीत कर प्रकाशित करने का यह प्रयास है जिसमें एक मन्त्र की अनेक व्याख्याओं तथा भिन्न-भिन्न विद्वानों द्वारा की गई भिन्न भिन्न वेदमन्त्रों की व्याख्याओं का समावेश है। जिस मन्त्र पर जिन-जिन विद्वानों की व्याख्याएँ ली गई हैं उस सन्दर्भ में यथास्थान उनका नाम दिया गया है।

इस ग्रन्थ का संकलन वेदमन्त्रों की व्याख्या से सम्बन्धित लगभग 50 पुस्तकों के आधार पर किया गया है जिसमें लगभग 3500 मन्त्रों की व्याख्या है। यह ग्रन्थ वेदों की शिक्षाएँ 8 खंडों भागों में विभक्त है जिसमें मन्त्रों को अकारादिक्रम से रखा गया है। प्रथम भाग में मात्र ‘अ’ से आरम्भ होने वाले मन्त्र संगृहीत हैं। द्वितीय भाग में ‘आॠ’ पर्यन्त, तृतीय भाग में ‘ए-त’ पर्यन्त, चतुर्थ भाग में ‘द-प’ पर्यन्त, पंचम भाग में ‘बम’ पर्यन्त, षष्ठ भाग में मात्र ‘य’, सप्तम भाग में ‘रथ’ पर्यन्त तथा अष्टम भाग में ‘सह’ पर्यन्त अक्षरों से आरम्भ होने वाले मन्त्रों का संकलन है।

आज जबकि संपूर्ण विश्व वैश्विक महामारी से संत्रस्त है। मानव जीवन में अशान्ति है। आधुनिकता की दौड़ में संसार अपने जीवन मूल्यों तथा शान्ति, सन्तोष व आनन्द प्रदान करने वाले मार्ग से भटक रहा है ऐसे समय में परम कारुणिक प्रभु का वेदामृतरूपी प्रसाद ही हमारी रक्षा कर सकता है। वेदमाता हमें अमृत पान कराना चाहती है।

वेदों की शिक्षाएँ आज भी पूर्ण रूप से प्रासंगिक एवं अत्यन्त उपयोगी हैं यही सोचकर चारों वेदों के चुने हुए मन्त्ररूपी पुष्पों का यह स्तबक अपने श्रद्धालु आस्थावान् अध्येताओं के करकमलों में अर्पित करते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। इस ग्रन्थमाला को सुन्दरता के साथ अल्प समय में पूर्ण करने का कार्य डॉ. अमित कुमार चौहान के अथक प्रयास व सहयोग से ही सम्भव हो पाया है अतः उनका भूरिशः धन्यवाद करता हूँ।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि अपने जीवन को श्रेष्ठ और पवित्र बनाने की इच्छा वाले श्रद्धालुजन इसे पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे।

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