स्वाध्याय संदोह
Swadhyay Sandoh

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स्वाध्याय संदोह – ऋग्वेद में उल्लिखित गृहस्थधर्म, लोकव्यवहार, विज्ञान और आध्यात्म के मन्त्रों का पदशः अर्थ और व्याख्या कर्ता ग्रन्थ है। आत्मा और परमार्थ का जो ज्ञान वेद में समाहित है, वैसा ज्ञान विश्व की किसी भी पुस्तक में सोचा भी नहीं गया। लेखक ने उस आत्मतत्त्व और परमार्थत्त्व को विभिन्न शास्त्रों से एकत्रित करके मुख्यतः ३६७ मन्त्रों की व्याख्या की है। उन ३६७ मन्त्रों की व्याख्या करते हुए इस ग्रन्थ में अनेक मन्त्रों, उपनिषद् वाक्यों, मनुस्मृति के श्लोक, महात्मा गांधी और दयाननंद सरस्वती जी के वचनों को स्थान-स्थान पर उद्धृत किया गया है। सत्यार्थ प्रकाश को भी विभिन्न स्थानों पर सन्दर्भ के रूप में उद्धृत किया है।

भारत-पाकिस्थान के विभाजन के पूर्व निर्मित इस ग्रन्थ के सभी उद्धरणों को ग्रन्थ के नाम, अध्याय, श्लोक, सङ्ख्या और आवश्यकतानुसार पृष्ठ सङ्ख्या दे कर प्रमाणित किया गया है। इस प्रकार ३६७ मन्त्रों की “संदोह” प्रक्रिया में सहस्रों श्लोक, मन्त्र और वाक्य इस ग्रन्थ में आबद्ध हुए हैं। एक ही स्थान पर किसी मन्त्र के विषय में विभिन्न शास्त्रों, उपनिषद् वाक्यों और महापुरुषों के वाक्यों के सन्दर्भ में समझने के लिये यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है।

ऋग्वेद में स्थित ज्ञान को आज के व्यवहारिक परिप्रेक्ष्य में जानने में यह ग्रन्थ अतीव सहायक सिद्ध हुआ है।

पुस्तक का नाम – स्वाध्याय संदोह
लेखक – स्वामी वेदानंदजी तीर्थ
स्वामी श्री वेदानंदजी तीर्थ जीवनभर वेदों में रमण करते रहे तथा वेद स्वाध्याय से नवीन से नवीन ऊर्जा ग्रहण करते हुए मानव मात्र के कल्याण के लिए बांटते रहे | वेद वैदिक संस्कृति का मूलाधार है | वेदज्ञान और विज्ञान का आदि स्त्रोत है | भारतीय ऋषि मुनियों ने वेदों की महिमा के गीत गाये है | भगवान मनु ने लिखा है –
“ सर्वज्ञानमयो हि: “- वेद ज्ञानमय है |वे ज्ञान के भंडार है |
वैशेषिक दर्शनकार महर्षि कणाद ने लिखा है –
“ बुद्धिपूर्वा वाक्यकृतिर्वेदे “ अर्थात वेद की रचना बुद्धिपूर्वक है |
महर्षि दयानंद जी के पश्चात आर्यसमाज के अनेको विद्वानों ने वेद के सम्बन्ध में अतिमहत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे | ऋषि के पश्चात जिन्होंने भी वेद के सम्बन्ध में कार्य किया उनमे से स्वामी वेदानन्द जी तीर्थ का स्थान सर्वोपरि है | स्वामी जी ने अनेको ग्रंथो की रचना की उनमे से प्रस्तुत ग्रन्थ स्वाध्याय संदोह सबसे विशालकाय ग्रन्थ है |
इसमें मन्त्रो के रहस्यों का उद्घाटन ,भाषा की प्राञ्जलता ,सरसता ,सरलता ,रोचकता स्पष्ट झलकती है |
इस पुस्तक में वेदों के ३६७ मन्त्र है किन्तु जब आप इसका स्वाध्याय करोगे तो आप देखोगे कि मन्त्रो की व्याख्या में प्रसंग में अनेक मन्त्र ,मन्त्रखंड , उपनिषदों के वाक्य ,मनुस्मृति के श्लोक ,ऋषि दयानंद के वचन तथा अन्य महात्माओ के वचन उद्धृत हुए है | इस प्रकार इस पुस्तक में सैकड़ो मन्त्रो तथा श्लोको का समावेश है | निसंदेह इस संग्रह में अध्यात्म सम्बन्धित सामग्री अधिक है ,किन्तु लोकव्यवहार की भी स्वामी जी ने उपेक्षा नही की है ,सदगृहस्थो के लिए कई उपयोगी मन्त्र आप इसमें पायेंगे | इस प्रकार यह संग्रह बहुत ही सुंदर है जिससे आप वर्षभर प्रतिदिन वेद रूपी अमृत का पान कर सकते है | इसी पुस्तक में स्वामी वेदानन्द तीर्थ जी के जीवन परिचय को आर्य समाज के विद्वान राजेन्द्र जी जिज्ञासु ने लिखा है जिससे स्वामी वेदानन्द तीर्थ जी की ऋषि भक्ति ,वेद भक्ति का परिचय मिलता है |
पुस्तक के प्रस्तुत संस्करण की विशेषता –
१ मन्त्रो को १६ पाइंट के स्वर टाइप मे छापा है |
२ व्याख्या में आने वाले सभी प्रमाणों को मोटे टाइप में रखा गया है |
३ अशुद्ध शब्दों को शुद्ध किया है तथा प्रेस की गडबड से जो शब्द छुट गये थे उन्हें ठीक किया है |
४ सभी प्रमाणों को उन उन ग्रंथो से मिलाकर शुद्ध किया है |
५ ईक्ष्यवाचन अत्यंत सावधानी पूर्वक किया गया है ।
६ जिन प्रमाणों के पते नही थे उन्हें पाद टिप्पणियों में दर्शाया गया है |
७ कठिन शब्दों के अर्थ और कही कही उपयोगी टिप्पणी भी दी गयी है |
८ कम्पुटर से कम्पोज कराया है |
९ सम्पूर्ण पुस्तक दो रंगो में प्रकाशित की गयी है | जिससे पुस्तक का सौन्दर्य बढ़ गया है |
इस ग्रन्थ की विशेषताओं को शब्द सीमा में बताना बहुत क्लिष्ट है अत: स्वामी जी ने दिन रात परिश्रम से जो दुग्ध वेद धेनु से प्राप्त किया है उसी का पान इस ग्रन्थ के अध्ययन द्वारा कीजिये और आत्मिक ,शारीरिक ,सामजिक शक्ति प्राप्त कीजिये |

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